भारतीय इतिहास -वैदिककाल GK

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ऐतिहासिक काल– जिसका लिखित रूप में साक्ष्य उपलब्ध है

वैदिक सभ्यता 1500 – 600 ई.पू.

वैदिककाल का विभाजन दो भागों में किया गया –

i. ऋग्वैदिक काल – 1500 – 1000 ई.पू.

ii. उत्तर वैदिककाल – 1000 – 600 ई.पू.

वैदिक काल के संस्थापक आर्य थे । इनके आगमन पर कई विद्वानों द्वारा विचार प्रकट किए गए हैं –

डॉ. अविनाश चंद्र दास –सप्तसैंधव प्रदेश

दयानंद सरस्वती -तिब्बत (आधार- शारिरीक संरचना वनस्पति के आधार)

बाल गंगाधर तिलक– उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक होम ऑफ दी वेदाज ग्रंथ में।)

मैक्समूलर -मध्य एशिया (भाषायी एवं जेंदावस्ता (ईरानी ग्रंथ) में समानता के आधार पर ।)

कार्डन स्टाइन, नेहरिंग – दक्षिण रूस (आधार- मृदभांड, उत्खनन।) •

वेदों का संकलन कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास द्वारा किया गया । आर्यों की भाषा संस्कृत थी ।

ऋग्वैदिक काल (1500 – 1000 ई.पू.)

ऋग्वेद का विस्तार सात नदियों के आस-पास होने के कारण इसे सप्तसैंधव प्रदेश/काल कहा जाता है । ये सात नदियाँ सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज, सरस्वती हैं।

इस युग में “ऊँ’ शब्द का सबसे अधिक – 1028 बार, पिता शब्द का – 335 बार, इंद्र शब्द का -250 व पृथ्वी, राजा, गंगा, शूद्र, वैश्य का 1-1 बार उपयोग हुआ है ।

राजनैतिक स्थिति

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आर्यों के प्रशासनिक इकाई आरोही कम से पॉच भागों में बॅटा था – कुल, ग्राम, विश, जन, राष्ट्र ।

कुल -कुलपति

विश -विशपति

ग्राम -ग्रामीण

जन -राजन एवं राष्ट्र का सम्राट

पूरप – दुर्गपति, स्पश- जनता की गतिविधियों को देखने वाला गुप्तचर, वाजपति – गोचर भमि का अधिकारी व उग्र – अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था (पुलिस)।

ऋग्वैदिक काल में तीन राजनैतिक संस्थाएँ थी – विदथ, सभा, समिति ये तीनों संस्थाएँ राजा के चयन के कार्यों में मुख्य रूप से भाग लेते थे । आर्यों की सबसे प्राचीन संस्था विदथ थी।

दसराज्ञ यद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मण्डल में है, यह युद्ध परूषणी नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बीच लड़ा गया, जिसमें सुदास विजयी हुआ ।

ऋग्वैदिक काल की सामाजिक स्थिति –

आर्यों का समाज पितृसत्तात्मक था । समाज 4 वर्गों में बंटा था – बाम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र–

समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी, जिसका मुखिया पिता हो था जिसे कुलप कहा जाता था । स्त्रियाँ इस युग में अपने पति के साथ यज्ञ-कार्य में भाग लेती थी।

अंतर्राजातीय विवाह, विधवा विवाह होता था जिसमें विधवा अपने मृतक पति के छोटे भाई से विवाह कर सकती थी । स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करता था | बाल-विवाह व पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।

इस यग में दहेज प्रथा व बलिप्रथा प्रचलन में थी इसके अतिरिक्त यहाँ दास प्रथा का भी प्रचलन था ।

जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को अमाजू कहा जाता था।

गाय को अधन्या -न मारे जाने योग्य पशु की श्रेणी में रखा गया था। इनका प्रिय पशु घोड़ा था।



आर्थिक स्थिति

आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था । इनकी प्रमुख फसल जौ (यव) थी।

हल रेखा को सीता कहते थे । लेन-देन में वस्तु विनिमय की प्रणाली प्रचलित थी।

व्यापार हेतु दूर-दूर तक जानेवाला व्यक्ति को पणि कहते थे तथा ऋण देकर ब्याज लेने वाले व्यक्ति को।

वेकनॉट (सूदखोर) कहा जाता था । इस युग में गाय भी विनिमय का एक माध्यम थी।

अन्य –

प्रमुख देवता इंद्र थे जिन्हें पुरंदर भी कहते थे ।ऋग्वैदिक काल में लोग हाथी से अपरिचित थे।

मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानेवाले देवता के रूप में अग्नि की पूजा की जाती थी। तथा वरूण भगवान की भी पूजा की जाती थी । पवित्र एवं प्रमुख नदी- सरस्वती।

उत्तर वैदिक काल-भारतीय इतिहास -वैदिककाल GK

• इस काल में यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद का संकलन हुआ । विस्तार – नर्मदा नदी, सरस्वती और गंगा। राजनैतिक स्थिति

ऋग्वैदिक काल में राजा को स्वेच्छा से जो भेंट दिया जाता था वह उत्तर वैदिक काल में कर में परिवर्तित

हो गया था । उत्तर वैदिक काल में उच्च अधिकारी थे – रत्नी, बली

सामाजिक स्थिति

चार वर्ण थे – ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र (जबाल उपनिषद, ऐतरेय अभिलेख में उल्लेख)

ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों को द्विज कहा जाता था तथा इन्हें उपनयन संस्कार का अधिकार था इसके विपरीत शुद्र को कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे।

उत्तर वैदिक काल में कर्म वर्ण के आधार पर तथा वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर हो गये थे ।। स्त्रियों को उपनयन संस्कार का अधिकार नहीं था । इसी काल में आश्रम व्यवस्था प्रारंभ हुई ।

व्यक्ति की आयु 100 वर्ष आधार मानकर उसका निम्न विभाजन किया गया ।

1. ब्रम्हचर्य – 25 वर्ष

ii. गृहस्थ – 25-50 वर्ष

iii. वानप्रस्थ -50-75 वर्ष

iv. सन्यासआश्रम – 75 वर्ष

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अन्य –

लोहे का उपयोग सर्वप्रथम उत्तर वैदिक काल में हुआ लोहे को श्याम अथवा कृष्ण अयस्क कहा जाता था तथा तांबे को लोहीन अयस्क कहा जाता था ।

उत्तर वैदिक काल में प्रजापति (ब्रम्हा) जी की पूजा सबसे अधिक होती थी।

त्रिमूर्ति (ब्रम्हा, विष्णु, महेश) की धारणा की इसी समय शुरूआत हुई।

• पूरे भारत में उत्तर वैदिक काल में कुल 16 महाजनपद थे –

1. अंग – चंपा (बिहार)

2 काशी – वाराणसी (उ.प.)

3 अवंति – उज्जैन (म.प्र.)

4 कोशल – श्रावस्ती (उ.प्र.)

5 अस्मक – पोटन (आ.प्र.)

6 कुरू – इंद्रप्रस्थ (हरियाणा)

7 वज्जी – वैशाली (मिथला, उ.प्र.)

8 कंबोज – लाजपुर (घटक, कश्मीर)

9 वत्स – कोशाम्बी (इलाहाबाद,उ.प्र.)

10 मगध – राजगीरि (बिहार)

11 सूरसेन – मथुरा (उ.प्र.)

12 मत्स्य –विराटनगर (जयपुर, राजस्थान)

13 गंधार – तक्षशीला (पाकिस्तान)

14 मल्ल – कुशावती (उ.प्र.)

15 – चेदी – सूक्ति (म.प्र.)

16 पांचाल – अहिक्षेत्र

स्थित था बाकी 15 महाजनपद उत्तर भारत में स्थित

केवल अस्मक ही दक्षिण में गोदावरी नदी के किनारे स्थित था बाकी 15 महाजनपद उत्तर भारत में स्थित थे । वज्जी 8 राज्यों का संघ। वज्जी और मल्ल ही दो गणतंत्र थे।

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