यहाँ तारे का जन्म विकास तथा अंतिम चरण (Star’s Birth, Evolution and Final Stage)आदि तारा (Protostar),लाल दानव तारा (Red Giant star)श्वेत वामन तारा (White Dwarf),न्यूट्रान तारा( Neutron star)कृष्ण विवर (Black holes) के बारे में जानेगे
किसी तारे का जीवन चक्र आकाशगंगा में हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस के संघनन से प्रारंभ होता है जो अंततः छोटे-छोटे घने बादलों के रूप धारण कर लेते है। आकार बढ़ने पर स्वयं के गुरूत्वाकर्षण के कारण इनका निपात (Collapse) होने लगता है। इन बादलों में मुख्यतः हाइड्रोजन
तथा हीलियम होती है तारे का जीवन चक्र निम्नानुसार होता है।
तारे का जन्म विकास तथा अंतिम चरण Star’s Birth, Evolution and Final Stage

Star’s Birth, Evolution and Final Stage तारे का जन्म के बाद अब आप अंतिम अवस्था के बारे में सामान्य जानकारी
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आदि तारा (Protostar)
द्रव्य में समस्त कण एक दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा इस बल को गुरुत्वाकर्षण का बल कहते है, यदि हाइड्रोजन के बादल का विस्तार कम हो तथा उसके अणु परस्पर बहुत पास न हो तो वे अन्य अणुओं द्वारा लगातार आकर्षण का अनुभव इस सीमा तक नहीं कर पाएंगे कि उनके व्यवहार पर कोई प्रभाव न पड़े,
यदि किसी बादल का आकार पर्याप्त बड़ा हो तब प्रत्येक अणु का व्यक्तिगत गुरूत्वाकर्षण पर्याप्त बलशाली हो जाता है। आकर्षण के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण बादल सिकुड़ने लगता है। तत्पश्चात् बादल स्वयं के गुरूत्वाकर्षण के कारण सिकुड़ता चला जाता है अर्थात उसका निपात होता है और एक नाटकीय प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है जो गैस के इस विशाल बादल को तारों में परिवर्तित कर देती है
यह सिकुड़ता हुआ घना गैस पिंड आदि-तारा (Protostar) कहलाता है। इसका ताप 173°C होता है।
पूर्ण विकसित तारा
सिकुड़ने (Compress)की प्रक्रिया लगभग एक अरब वर्ष तक चलती रहती है। इस दौरान आंतरिक ताप 173°C से बढ़कर लगभग 10,000,000 (10)°C हो जाता है, इस अत्यधिक उच्च ताप पर हाइड्रोजन के नाभिक संलयित होकर हीलियम नाभिक बनाने लगते है।
साथ-साथ विभिन्न तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के रूप में असीमित परिमाण में ऊर्जा विमोचित (Release) होती है इससे अन्दर का ताप तथा दाब और अधिक बढ़ जाता है। आदि-तारा अब दीप्त हो जाता है और एक तारा बन जाता है।
लाल दानव तारा (Red Giant star)
जैसे-जैसे तारे के अंतरंग में संलयन अभिक्रियाएँ होती जाती हैं, उनकी हाइड्रोजन, हीलियम में परिवर्तित होती जाती है। अतः कुछ समय पश्चात् इसके क्रोड (Core) में केवल हीलियम शेष रह जाएंगी। इससे क्रोड में दाब कम हो जाएगा और (तारा फिर स्वयं गुरुत्वाकर्षण के कारण सिकुड़ने लगेगा परन्तु बाह्य कवच (Shell) में हाइड्रोजन का संलयन होता रहेगा और ऊर्जा विमोचित होती रहेगी।
इसलिए कवच का आकार बढ़ने लगेगा और उसकी सतह का क्षेत्र बढ़ने लगेगा। जिससे विकिरित ऊर्जा की तीव्रता घट जाएगी इस अवस्था में तारा लाल दानव चरण (Red Giant Stage) में प्रवेश करता है।
अब इसका वर्ण (रंग) बदल जाएगा और यह लाल दिखाई देगा। अब से लगभग 5,000 अरब वर्ष के बाद हमारे सूर्य की अन्तिम अवस्था में भी ऐसा ही होगा। प्रसारित होता हुआ इसका कवच बुध, शुक्र तथा यहाँ तक कि पृथ्वी को भी निगल लेगा।
तारे के जीवन Star’s Birth के अंतिम चरण (Final Stages of Star’s Life) तारे की वृद्धावस्था
श्वेत वामन तारा (White Dwarf)
लाल दानव चरण में पहुँचने के बाद तारे का भविष्य उसके प्रारम्भिक द्रव्यमान पर निर्भर करता है। जब तारे का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के 1.44 गुना कम हो, तब लाल, दानव तारे के अंदर हीलियम गैस संलयन की प्रक्रिया के द्वारा ऊर्जा उत्सर्जित कर उच्च द्रव्यमान वाले नाभिक में बदल जाती है।
इस प्रक्रिया में अपार ऊर्जा उत्सर्जित होने के कारण तारा श्वेत रंग का चमकता है। इस तारे का आकार कम होने के कारण और रंग श्वेत होने के कारण इसे श्वेत वामन तारा कहते है। वर्तमान में श्वेत वामन तारा सिरियस-बी है।
न्यूट्रान तारा Neutron star)
यदि सूर्य के द्रव्यमान की तुलनामें तारे का द्रव्यमान 1.44 गुणा से अधिक हो तो उसका अन्त अत्यधिक रोचक हो सकता है, लाल दानव चरण के दौरान बना हीलियम का क्रोड सिकुड़ता चला जाता है जिससे ताप बढ़ता चला जाता है। सिकुडने के दौरान विमोचित ऊर्जा के कारण बाह्य कवच विस्फोट के साथ ध्वंस हो जाता है। इस विस्फोट के साथ अत्यन्त दीप्त दमक उत्पन्न होती है।
आवरण का यह विस्फोट इतना शक्तिशाली हो सकता है कि इनमें एक सेकण्ड में लगभग इतनी ही ऊर्जा विमोचित हो सकती है जितनी सूर्य लगभग एक सौ वर्ष में करता है। इसके कारण आकाश बहुत दिनों तक जगमगा उठता है ऐसे विस्फोटक तारे को अधिनवतारा या सुपर्नोवा (Super Nova) कहते हैं
सुपर्नोवा विस्फोटक में गैसों के बादल अंतरिक्ष में विमोचित हो जाते है ये गैसें नए तारों के निर्माण हेतु कच्चे पदार्थ प्रदान करती हैं। सुपर्नोवा विस्फोट के पश्चात् केवल क्रोड बचा रहता है जो निरंतर सिकुड़ता चला जाता है।
विशाल गुरुत्वाकर्षण बल क्रोड को संपीडित कर उसके पदार्थ का घनत्व, असीमित परिमाण में बढ़ा देता है। अत्यधिक संघनित द्रव्य का यह पिंड न्यूट्रॉन तारा (Neutron Star) कहलाता है।
कृष्ण विवर (Black holes)
न्युट्रान तारे में अत्याधिक द्रव्यमान अन्ततः एक ही बिन्दु पर संकुचित हो तो ऐसे असीमित घनत्व के द्रव्य युक्त पिंड को कृष्ण विवर (Black hole) कहतें है।
कृष्ण विवर से किसी भी द्रव्य का यहाँ तक कि प्रकाश का भी पलायन नहीं हो सकता, इसलिए कृष्ण विवर दिखाई नहीं देता है। फिर
भी यदि हम किसी तारे को किसी ऐसे वृत्ताकार पथ में परिक्रमा करते देखें जिसके केन्द्र में कोई तारा दिखाई न दे तो हम इस वृत्ता कार पथ के केन्द्र में कृष्ण विवर की उपस्थिति की कल्पना कर सकते है।
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