Sanskrit Mein Muhavare-संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे Famous Sanskrit Idioms and Phrases -संस्कृत सुविचार हिंदी अर्थ के साथ जिनका लोक जीवन में उपयोग किया जाता है ।
Sanskrit Mein Muhavare संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे
(1) निर्वाणदीपे किमु तैलदानम् ।
अर्थ-दीपक बुझ जाने पर तेल देने से क्या लाभ ।
प्रयोग-आवश्यकता के समय उसकी पूर्ति न होने पर उसके बाद कुछ देने का महत्व नहीं रहता।
(2) मूर्खस्य नास्त्यौषधम्।
अर्थ-मूर्ख की कोई दवा नहीं होती ।
प्रयोग-मूर्ख को समझाना व्यर्थ है।
(3) चिन्ता समं नास्ति शरीरशोषणम् ।
अर्थ-चिन्ता के समान शरीर का शोषण कोई नहीं करता।
प्रयोग-मनुष्य का चिंता करने से ही शरीर का अधिक शोषण होता है ।
(4) अति सर्वत्र वर्जयेत्।
अर्थ-अति का हर स्थान पर त्याग करना चाहिए।
प्रयोग- वस्तु की अधिकता से उसका महत्व कम हो जाता है।
(5) यादृशं वपते बीजं तादृशं लभते फलम्।
अर्थ-जिस प्रकार का बीज बोते हैं, उसी प्रकार का फल प्राप्त होता है।
(6) मानो हि महतां धनम्।
अर्थ-महापुरुषों का स्वाभिमान ही धन है ।
प्रयोग-महापुरुषों का धन उनका स्वाभिमान एवं सम्मान है।
(7) लोचनाभ्यांविहीनस्य दर्पण: किं करिष्यति ।
अर्थ-नेत्र रहित (व्यक्ति) के लिए दर्पण क्या करेगा।
प्रयोग–अंधे व्यक्ति को दर्पण की आवश्यकता नहीं होती,उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति के लिए शास्त्रज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं।
(8) जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
अर्थ-जल की एक-एक बूंद से क्रमश: घड़ा भर जाता है।
प्रयोग-थोड़ा-थोड़ा संग्रह करने से व्यक्ति बहुत अधिक वस्तु का संग्रह कर सकता है ।
(9) किमिवहि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम् ।
अर्थ—सुन्दर आकृतियों के लिए कौन-सी वस्तु अलंकार नहीं होती है।
प्रयोग -सुन्दर व्यक्तियों के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती।
(10) आज्ञा गुरूणां हविचारणीया।
अर्थ-बिना किसी सोच-विचार के ही गुरुजनों की आज्ञा माननी चाहिए।
प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे
(11) वरमे को गुणी पुत्रो न च मूर्ख शतान्यपि ।
अर्थ-सौ मूर्ख पुत्रों से एक गुणवान पुत्र ही अच्छा होता है।
प्रयोग- सौ मूर्ख पुत्रों के होने से कोई लाभ नहीं होता है। जबकि एक ही गुणवान पुत्र के होने से पूरे कुल का नाम रोशन हो जाता है।
(12) न्यायात्पथ: प्रविचलन्ति तदं न धीराः।
अर्थ-न्याय के पथ से धीर पुरुष तनिक भी विचलित नहीं होते हैं।
प्रयोग- जिन पुरुषों का स्वभाव गम्भीर और धैर्य रखने वाला होता है वे कभी की न्याय के मार्ग से विचलित नहीं होते हैं।
(13) अलङ्घनीया खलु सङ्घशक्तिः ।
अर्थ संगठन में शक्ति होती है कि इस पर विजय नहीं पाई जा सकती।
प्रयोग-एकता में सबसे बड़ी शक्ति होती है।
(14) केशरस्य कटुतापि नितान्त रम्यम्।
अर्थ-केसर की कटुता भी आनन्दायक होती है।
प्रयोग-नीति युक्त कठोर वचन भी हितकारी होते हैं।
(15) मतिरेव बलाद गरीयसी।
अर्थ-बुद्धि बल से बढ़कर है।
प्रयोग-शरीर से कमजोर व्यक्ति बुद्धि के बल से निर्बुद्धि बलवानों को परास्त कर देगा।
(16) य: क्रियावान् स: पण्डितः ।
अर्थ-जो क्रियाशील है वही पण्डित है।
प्रयोग-क्रियाशील होना ही विद्वता का परिचायक है।
(17) चक्रवत् परिवर्तन्ते सुखानि दुःखानि च।
अर्थ-सुख और दुःख पहियों की तरह बदलते रहते हैं।
प्रयोग-सुख और दुःख एक समान नहीं होते । सर्वदा कभी दुःख आता है तो कभी सुख ।
(18) परोपदेशे पाण्डित्यम् सर्वत्र सुकरं नृणाम् ।
अर्थ-दूसरों के लिए उपदेश देने में विद्वता दिखाना सर्वत्र आसान है।
प्रयोग-दूसरों के लिए आचरण व नीति के वचन कहना आसान होता है ।
(19) हितं मनोहरि च दुर्लभं वचः ।
अर्थ-हितकर एवं मनोहर वचन दुर्लभ है।
प्रयोग-जो प्रिय वचन होगा वह कल्याण या हित नहीं करेगा अर्थात् हितकारी वाणी कड़वी होती है।
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