साबुन(Soap) किसे कहते हैं Sabun साबुन का रासायनिक समीकरण,साबुनीकरण प्रक्रिया क्या है,साबुन कैसे बनता है, साबुन कितने प्रकार के होते हैं ,भारतीय साबुन के नाम की जानकारी
Sabun किसे कहते हैं
साबुन (Soaps)-उच्च वसीय अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण को साबुन कहते हैं, जैसे-सोडियम स्टीयरेट, पोटैशियम पामिटेट आदि। ये तेल व वसा को क्षार द्वारा जल-अपघटित करके बनायेजाते हैं। इस प्रक्रम को साबुनीकरण (saponification) कहते हैं।
तेल + क्षार→ ग्लिसरीन + साबुन
साबुनीकरण प्रक्रिया क्या है
मिट्टी के तेल से साबुन नहीं बनाया जा सकता। मिट्टी का तेल हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है जो किसी प्रकार से ऊँचे अम्लों के धातु लवणों (साबुन) में बदला नहीं जा सकता है।
जब तेल या वसा को क्षार के साथ गर्म करते हैं तो यह जल-अपघटित होकर ग्लिसरीन तथा साबुन देते हैं। इस प्रतिक्रिया को साबुनीकरण (saponification) कहते हैं।
तेल अथवा वसा + क्षार → ग्लिसरीन + साबुन
साबुन किसे कहते हैं
तेल और वसा ऊँचे वसीय अम्लों के ग्लिसराइड होते हैं, जो कॉस्टिक सोडा या पोटाश के साथ इन अम्लों के सोडियम या पोटैशियम लवण बनाते हैं, जिन्हें साबुन कहते हैं।
Sabun का रासायनिक समीकरण

उपर्युक्त प्रतिक्रिया में स्टियरिन के उविच्छेदन द्वारा बना सोडियम स्टियरेट साबुन ही है।
Sabun कैसे बनता है
साबुन बनाना (Manufacture of Soap)—साबुन बनाने के लिए आवश्यक अवयव तेल तथा क्षार हैं।
(i) तेल वानस्पतिक होते हैं, जैसे नारियल व महुँये का तेल, वसा जैसे सुअर, भैंस की चर्बी भी प्रयोग होती है।
(ii) क्षार-कास्टिक सोडा (NaOH) तथा कॉस्टिक पोटाश (KOH) ये क्रमशः कड़े साबुन (hard soap) व मुलायम साबुन (soft soap) के लिये प्रयोग होते हैं।
इसे बनाने की साधारणत: दो विधियाँ हैं-
गर्म विधि (Hot Process)
(i) तेल या वसा लोहे के बड़े बर्तनों में हल्के कॉस्टिक सोडा के घोल के उचित मात्रा के साथ उबालते रहते हैं जब तक साबुनीकरण की क्रिया पूरी नहीं हो जाती।
(ii) फिर इसमें नमक का संतृप्त घोल डालते हैं, जिससे साबुन नमक के घोल के ऊपर दही के रूप में तैरने लगता है और ग्लिसरीन इसमें घुल जाती है।
ग्लिसरीन घुले नमक के घोल को स्पेन्ट लाई (spent lye) कहते हैं, जो ग्लिसरीन को व्यापारिक मात्रा में बनाने में प्रयोग होता है।
(iii) साबुन को स्पेन्ट लाई से अलग कर लेते हैं और पानी में घोलकर थोड़े कॉस्टिक सोडा के साथ उबालते हैं, जिससे साबुनीकरण पूर्ण हो जाये। पहले की तरह इसमें नमक का पानी डालकर इसे अलग कर लेते है।
(iv) इसे पानी से धोकर क्षार तथा नमक निकाल लेते हैं और सुखा लेते हैं। इसमें सुगन्ध व मैदा मिलाकर साँचों में ठण्डा होने देते हैं ।
अन्त में इसकी बट्टियाँ काट लेते हैं। यह विधि बहुत अच्छी है, क्योंकि-
(a) साबुन बहुत शुद्ध रहता है। क्षार अथवा तेल की अधिकता नहीं रह पाती।
(b) ग्लिसराल जो प्रतिक्रिया का उपफल भी है, प्राप्त हो जाता है।
(c) यह विधि सस्ती है।
ठण्डी विधि (Cold Process)
इस विधि में तेल या वसा को थोड़ा गर्म करके एक बर्तन में लेते हैंऔर फिर इसमें सान्द्र कॉस्टिक सोडा की उचित मात्रा में, धीरे-धीरे डालकर खूब हिलाते हैं।
जब तेल व NaOH अच्छी प्रकार से मिश्रित हो जाते हैं तो इस मिश्रण को साँचे में भरकर एक-दो दिन के लिये रख देते हैं जिससे यह कड़ा हो जाता है।
इसे साँचों में से निकालकर बट्टियों के रूप में काट लेते हैं। इस विधि में समय तो कम लगता है, परन्तु बने हुए साबुन में-
(a) मुक्त क्षार अथवा तेल रह जाता है।
(b) ग्लिसरीन जो एक उपयोगी पदार्थ है, प्राप्त नहीं हो पाता।
(c) तेल में उपस्थित अशुद्धियाँ साबुन में आ जाती हैं।
Sabun बनाने में प्रयुक्त होने वाले तेल
उच्च वसीय अम्लों के सोडियम अथवा पोटैशियम लवणों को साबुन कहते हैं। अत: केवल वही तेल प्रयुक्त हो सकते हैं जो कि वसीय अम्लों के ग्लिसराइड हैं ।
इसलिये खनिज तेल का, जैसे-मिट्टी का तेल, जो कि हाइड्रोकार्बन का मिश्रण है और वसीय अम्लों के ग्लिसराइड अनुपस्थित हैं, साबुनीकरण नहीं किया जा सकता है।
इसी प्रकार सुगन्ध तेल का जैसे टर्पिनटाइन तेल, जो कि टर्पिन का मिश्रण है और वसीय अम्लों के ग्लिसराइड अनुपस्थति हैं, को साबुनीकृत नहीं किया जा सकता।
Sabun बनाने की आधुनिक विधि
बनाने की आधुनिक विधि (Modern Process)—यह विधि हाल ही में विकसित हुई है, इसमें उत्प्रेरक की उपस्थिति में दाब के अन्तर्गत गर्म जल के साथ वसा को जल अपघटित किया जाता है,
उदाहरण लाइम या जिंक ऑक्साइड (itner process) या तनु सल्फ्यूरिक अम्ल व एरोमेटिक सल्फोनिक अम्ल (twitchel process) जल-अपघटन के परिणामस्वरूप उत्पन्न मुक्त अम्ल को कास्टिक सोडा या सोडियम कार्बोनेट के साथ उदासीनीकृत किया जाता है।
यह विधि अपेक्षाकृत सस्ती व साधारण है।
वसा के लगातार जल-अपघटन के लिए बड़े पैमाने पर उपकरण का उपयोग किया जाता है जो कि लगभग 65 फीट ऊँची टॉवर का बना होता है।
वसा को टॉवर की तली से प्रवेश कराया जाता है जबकि गर्म जल को लगभग 250°C पर ऊपर से प्रवेश कराया जाता है व उत्प्रेरक की उपस्थिति में इसे जल-अपघटित किया जाता है ।
टॉवर के लगातार प्रक्रम में टॉवर के ऊपरी भाग से वसा अम्ल साबुन में उदासीनीकृत हो जाते हैं। तनु ग्लिसरॉल टॉवर की तली में बचा रहता है जिसका उपयोग ग्लिसरॉल की पूर्ति के लिये किया जाता है।
साबुन से कपड़ों की गंदगी के कण कैसे दूर होते है
साबुन की सफाई क्रिया (Cleansing Action of Soap) साबुन में दो असमान सिरे होते हैं।
इसका एक सिरा हाइड्रोकार्बन श्रृंखला का, जो कि नॉन-पोलर व तेल-विलेय (lyophilic or lipophlilic) है जबकि इसका दूसरा सिरा कार्बोक्सिलेट आयन, जो कि पोलर व जल-विलेय (hydrophilic) है।
C17H35-COO+Na
Non Polar POLAR
Lyophilic hydrophilic
Sodium stearate -a Soap
जब साबुन को जल में मिलाया जाता है तो इसके अणु अपने कार्बोक्सिल समूह से जल की सतह पर एक समआण्विक (unimolecular) फिल्म बना लेते हैं व इसकी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला सिरे पर हाइड्रोकार्बन पर्त बना लेती है।
जब गन्दे-मैले कपड़ों को साबुन के विलयन में डुबाया जाता है, तब साबुन गंदगी को घोल देता है (fator oil with dust etc. adsorb in it) व मिसेल बना लेता है, जिसमें तेल या वसा गोले के केन्द्र पर साबुन की वसा-विलेय हाइड्रोकार्बन श्रृंखला घुली रहती है।
जल-विलेय कार्बोक्सिलिक आयन इस गोले के चारों ओर एक हाइड्रोफिलिक सतह बनाते हैं।
यह प्रेक्षित किया गया है कि साबुन की प्रवृति विलयन की सतह पर सान्द्रित होने की होती है व इस प्रकार से ये इसके पृष्ठ तनाव को कम करती है, जो कि झाग उत्पन्न करता है, ये कपड़े में प्रवेश करने में सहायता करता है।
यह गन्दगी बनाने वाली मिसेल में वसा को पायसीकृत करता है व सभी जल-विलेय मिसेल को खण्डित करती है। गन्दगी इस प्रकार से जल द्वारा साफ हो जाती है
Syndrome meaning in Hindi सिंड्रोम क्या है – अनुवांशिक बीमारियां