Raja Ram Mohan Ray-राजा राममोहन रॉय का जीवन परिचय

राजा राममोहन रॉय का जीवन परिचय- Biography of Raja Ram Mohan Ray in Hindi ब्रम्हा समाज के संस्थापक ,महान समाज सुधारक सती प्रथा के साथ इनका नाम अग्रणी है ।

Raja Ram Mohan Ray-उन्नीसवीं शताब्दी के समाज-सुधारकों में राजा राममोहन राय का नाम अग्रगण्य है । उन्हें हम सुधारकों का अग्रदूत कह सकते हैं। उन्होंने समाज तथा धर्म-सुधार को जो ज्योति जगाई और चेतना उत्पन्न की वह अन्य सुधारकों को प्रोत्साहित करती रही और सुधार का कार्य अक्षुण्ण गति से निरन्तर चलता रहा।

Biography of Raja Ram Mohan Ray in Hindi

राजा राममोहन राय का जन्म 1774 ई० में एक कुलीन, धर्मनिष्ठ परिवार में हुआ था । जब उनकी अवस्था केवल पन्द्रह वर्ष की थी तभी उन्होंने मूर्ति पूजा के विरुद्ध एक पुस्तक की रचना कर दी। इसकी तीव्र आलोचना आरम्भ हो गई और इसके फलस्वरूप उन्हें अपना घर छोड़ देना पड़ा ।

अरबी तथा फारसी का ज्ञान उन्हें पहले से ही था । अब उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी फ्रेंच, ग्रीक, लैटिन आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया। विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता होने के कारण उन्हें अपने ज्ञान-कोष की वृद्धि करने में बड़ी सुविधा हुई।

1805 ई० में उन्होंने ईस्ट-इण्डिया कम्पनी में नौकरी कर ली और 1814 ई० तक वे वहां काम करते रहे। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता में आकर अस्थायी रूप से वहीं निवास करने लगे । अब वे अपना सारा समय समाज सेवा के कार्य में लगाने लगे। आजीवन वे इसी कार्य में लगे रहे और समाज तथा धर्म-सुधार के उन्होंने अनेक सराहनीय कार्य किये ।

1831 ई० में वे मुगल-सम्राट के पक्ष का समर्थन करने के लिए इंग्लैंड गये और वहीं पर 1833 ई० में उनका परलोकवास हो गया।

राममोहन राय के सुधार आन्दोलन Socialism Of Raja Ram Mohan Ray

राजा राममोहन राय न केवल एक बहुत बड़े सुधारक थे वरन् वे देश-भक्त भी थे। अपने राष्ट्र में उनकी बड़ी अनुरक्ति थी और उनके गौरव की अभिवृद्धि में वे सदैव संलग्न रहे। उन्होंने जनमत को शिक्षित करके अपने देशवासियों के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया ।

अपने देश की राजनीतिक,सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं की ओर उनका ध्यान गया और उनके सुलझाने का उन्होंने प्रयास किया।

राजनीतिक क्षेत्र में वे ब्रिटिश-शासन को उदार तथा सहानुभूतिपूर्ण बनाने और भारतीयों को ऊँची-ऊंची नौकरियों के दिलाने में सचेष्ट रहे। उन्होंने इस बात का प्रयत्न किया कि न्यायालयों की भाषा फारसी के स्थान पर अंग्रेजी कर दी जाय।

आर्थिक क्षेत्र में जमींदारों के अत्याचारों का उन्होंने घोर विरोध किया और लगान को कम करा कर किसानों को शोचनीय दशा के सुधारने का उन्होंने प्रयास किया। सामाजिक क्षेत्र में उनकी सेवाएं बड़ी ही सराहनीय हैं।

उन्हीं के प्रयास के फलस्वरूप लार्ड विलियम बेंटिक ने 1826 ई० में सती प्रथा को बन्द करवाया था। विधवा-विवाह को प्रोत्साहन देने तथा बाल-हत्या बन्द करवाने का भी इन्होंने प्रयास किया। सांस्कृतिक क्षेत्र में भी इनकी सेवाएं सर्वथा सराहनीय हैं । 1830 ई० में समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता में बाधक नियमों के विरुद्ध इन्होंने आन्दोलन चलाया और उसमें सफल रहे।
इस प्रकार प्रेस की स्वतन्त्रता में आपका बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह अंग्रेजी शिक्षा के बहुत बड़े समर्थक थे । इनका विश्वास था कि बिना अंग्रेज़ी शिक्षा के देश में विज्ञान को उन्नति नहीं हो सकती और बिना विज्ञान के उन्नति से देश में जागृति नहीं आ सकती और देश का पुनरुत्थान नहीं हो सकता ।

फलतः कलकत्ते में इन्होंने एक शिक्षण-संस्था की स्थापना की जो आगे चलकर प्रेसीडेन्सी कालेज बन गया।
धार्मिक-क्षेत्र में भी इनकी देन अतुलनीय है। यह एकेश्वरवादी थे और मूर्ति-पूजा के घोर विरोधी थे। वे अद्वैतवादी थे और सभी धर्मों में मौलिक एकता के दर्शन करते थे। अपने इन विचारों का जनता में प्रचार करने के लिए 1828 ई० में इन्होंने एकसंस्था की स्थापना की जो ब्रह्म-समाज के नाम से प्रसिद्ध हुई।

राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म-समाज ( Bramha Society ) की स्थापना 

इस संस्था की स्थापना राजा राममोहन राय ने 1828 ई० में की थी। 1842 ई० में श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर इसके सदस्य हो गये । वे जीवन-पर्यन्त इसके प्रचार में संलग्न रहे । सन् 1857 ई० में श्री केशवचन्द्र सेन भी ब्रह्म-समाज में सम्मिलित हो गये। कुछ दिनों तक देवेन्द्रनाथ तथा केशवचन्द्र में बड़ा मेल रहा परन्तु बाद में इनमें भारी मतभेद हो गया ।


फलतः केशवचन्द्र जी ने एक अलग समाज को स्थापना को जो भारतीय ब्रह्म-समाज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कालान्तर में इसमें फिर दो दल हो गये। एक दल केशवचन्द्र के अनुयायियों का और दूसरा उनके विरोधियों का जिन्होंने एक नया समाज बनाया जो साधारण ब्रह्म-समाज कहलाया। इस प्रकार राजा राममोहन राय द्वारा प्रचलित ब्रह्म-समाज तीन शाखाओं में विभक्त हो गया।

राजा राम मोहन राय Raja Ram Mohan Ray द्वारा संचालित ब्रह्म-समाज के मूल-सिद्धान्त निम्नांकित हैं :-

(1) ब्रह्म-समाजी एकेश्वरवादी होते हैं। वे केवल एक ईश्वर में विश्वास करते हैं । वही इस सृष्टि की रचना करता है और वही इसका संरक्षक है । वह सर्वशक्तिमान तथा सर्व-व्यापक है। मोक्ष की प्राप्ति केवल उसी की कृपा से हो सकती है।
(2) ब्रह्म-समाजी प्रार्थना में विश्वास करते हैं। उनके विचार में आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना करना आवश्यक है। परन्तु ईश्वर की उपासना प्रेम तथा सत्य से होनी चाहिये ।
(3) ब्रह्म-समाजी ईश्वर के पितृत्व तथा मानव के भ्रातृत्व में विश्वास करते हैं। वे परमात्मा को इस जगत का पिता और सभी मनुष्यों को बन्धु या भाई मानते थे।
(4) ब्रह्म-समाजी कर्म-फल में विश्वास करते हैं । उनका कहना है कि ईश्वर पुण्यात्माओं तथा पापियों को उनके कर्मनुसार फल देता है।
(5) ब्रह्म-समाज आत्मा के अमरत्व में विश्वास करता है। उनका कहना है कि आत्मा अमर है और अपने कार्यों के लिए वह ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है।
(6) ब्रह्म-समाजी सत्य का अन्वेषण करते हैं और वे सभी धर्मों से सत्य को ग्रहण करने के लिए उद्यत रहते हैं।
(7) ब्रह्म-समाजी मूर्ति-पूजा के घोर विरोधी होते हैं। उनका कहना है कि ईश्वर मान कर किसी वस्तु की पूजा नहीं करनी चाहिए।
(8) ब्रह्म-समाजी जाति-प्रथा तथा छुआछूत के भेदभाव को नहीं मानते ।

प्रार्थना समाज

राजा राममोहन राय के धर्म तथा समाज-सुधार आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य भागों पर पड़ा। ब्रह्म-समाज के प्रभाव से 1837 ई० में महाराष्ट्र में प्रार्थना-समाज की स्थापना की गई। न्यायाधीश महागोविन्द रानाडे,सर आर० जी० भण्डारकर तथा नारायण चन्द्रावरकर इसके प्रमुख सदस्य थे । धर्म के सम्बन्ध में प्रार्थना-समाज के मूल सिद्धान्त वही थे जो ब्रह्म-समाज के थे ।

प्रार्थना समाज विधवाओं के पुनर्विवाह तथा स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहन देना तथा बाल-विवाह को रोकना । इस संस्था ने जन-कल्याण तथा समाज-सुधार के अनेक कार्य किये। इसने अनेक अनाथालय, विधवाश्रम तथा समाज का प्रधान लक्ष्य था जाति-प्रथा का अन्त करना,कन्या-पाठशालाओं की स्थापना की।

अछूतोद्धार का भी इसने प्रयास किया।श्रमजीवियों को शिक्षित बनाने के लिए इसने रात्रि के स्कूल भी खोले । इस प्रकार राजा राम मोहन राय भारतीय इतिहास के समाज सुधार के एक प्रमुख व्यक्ति थे।

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