Prachin Bharatitya Itihas Source of Ancient India (Historical ) , Important Knowledge For Exam प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साधन क्या है?
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साधन-Prachin Bharatitya Itihas ko Janine Ka Sadhan
(1) पुरातात्विक साधन
(2) साहित्यिक साधन
(3) विदेशी यात्रियों की टिप्पणियाँ
पुरातात्विक साधन-Prachin Bharatitya Itihas-प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साधन
Coins मुद्राएँ-
जो सिक्के अपठनीय हैं-(206 B.C.) आहत सिक्के (Punch Marked Coins)
जिन सिक्कों पर बुद्ध का नाम व चित्र मिलता है-कनिष्क के सिक्के (Kanishk Period)
सोने के सिक्के सर्वप्रथम् चलाए-कुषाण राजा विमकटपिसेज ने
रोमन इतिहासकार जिसने भारत को स्वर्ण भेजने पर दुःख प्रकट किया-प्लिनी (Pliny)
सर्वप्रथम् चाँदी व ताम्बे के सिक्के चलाने वाला-Indo-Greek Eomperor Dematies
Lead & Potash Coins—SatVahan kings.
सर्वाधिक मात्रा में स्वर्ण सिक्के चलाए-गुप्तों ने
स्वर्ण सिक्कों में सर्वाधिक शुद्धता-कुषाण शासकों के समय
गुप्तों में स्वर्ण सिक्के चलाए-चन्द्रगुप्त-प्रथम् तथा रामगुप्त ने
गुप्तों में चाँदी के सिक्के चलाए-चन्द्रगुप्त-द्वितीय विक्रमादित्य ने
सिक्कों पर वीणा बजाते हुए-समुद्रगुप्त
वह शासक जिसके कुछ सिक्कों पर युप तथा अश्वमेध पराक्रमः उत्कीर्ण है-समुद्रगुप्त
अभिलेख
(ii) सर्वाधिक प्राचीन पठनीय अभिलेख-मौर्य सम्राट अशोक के
सर्वप्रथम् अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता मिली-जेम्स प्रिसेप(1837) को
देवानामप्रिय-देवताओं को प्रिय-प्रियदर्शी राजा-अशोक
अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख करते अभिलेख-
(1) मास्की-आन्ध्रप्रदेश
(2) गुजरा-मध्यप्रदेश
सर्वप्रथम् अशोक के अभिलेख का पता कहाँ व किसके द्वारा लगा- दिल्ली में (1750) टीकेन्थेलर द्वारा
अशोक के अभिलेखों की भाषा-प्राकृत
अशोक के अभिलेखों की लिपि-
पाकिस्तान में-खरोष्ठी
भारत में-ब्राह्मी
अफगानिस्तान में-आरमाइक
सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख जो अपठनीय हैं-हड़प्पा कालीन
जिस अभिलेख में समुद्रगुप्त के बारे में (अशोक द्वारा स्थापित) वर्णन मिलता है-प्रयाग प्रशस्ति
प्रयाग प्रशस्ति का रचनाकार-समुद्रगुप्त का सन्धि विग्रहक मन्त्री हरिषेण
जिन दो अभिलेखों में स्कन्दगुप्त का वर्णन मिलता है-(1) भितरी स्तम्भ लेख, (2) जूनागढ़ स्तम्भ लेख
जिस अभिलेख में अशोक, चन्द्रगुप्त II विक्रमादित्य व रुद्रदामन के बारे में वर्णन मिलता है-जूनागढ़ अभिलेख
प्रयाग प्रशस्ति की रचना-हरिषेण द्वारा
अशोक के कुल अभिलेख-सात
पुष्यमित्रों एवं हूण के बारे में जानकारी देने वाला अभिलेख-भितरी स्तम्भ लेख
सातवाहन नरेश पुलमावी (गौतमीपुत्र शातकर्णी) का अभिलेख-नासिक गुहालेख (नानाघाट, कार्ले)।
यशोधर्मन का अभिलेख -मंदसौर अभिलेख
पुलकेशिन द्वितीय का अभिलेख-ऐहोल अभिलेख
रुद्रदामन का अभिलेख-गिरनार अभिलेख
अयोध्या अभिलेख-पुष्यमित्र शुंग का अभिलेख
नागार्जुनी गुहालेख-दशरथ का अभिलेख
प्रतिहार नरेश भोज का अभिलेख-ग्वालियर अभिलेख
यवन राजदूत हैलियोडोरस (हैलियोडोरल) का गरुड़ स्तम्भ (विदिशा)
जिस अभिलेख से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने बंगाल पर शासन किया-महास्थान अभिलेख
जिस अभिलेख से पता चलता है कि सौराष्ट्र के गर्वनर पर्णदत्त व उसका पुत्र चक्रपालित रह चुके हैं-जूनागढ़ अभिलेख
मध्यवर्ती समय का एकमात्र शासक जिसके अभिलेख प्राप्त हुए हैं-जहाँगीर
जिस अभिलेख से पता चलता है कि नन्दवंश पहला राजवंश था,जिसने कलिंग पर राज्य किया-खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख
शासक विजयसेन का अभिलेख-देववाड़ा अभिलेख
मेहरोली स्तम्भलेख है-चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का (अधिकांश इतिहासकारों का मत, यद्यपि अनेक इससे सहमत नहीं हैं।)
(iii) स्मारक एवं भवन-Prachin Bharatitya Itihas-प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के साधन
उत्तर भारतीय मंदिरों की कला शैली-नागर शैली
दक्षिण भारतीय मंदिर कला शैली-द्रविड़ शैली
नागर एवं द्रविड़ दोनों शैली का प्रयोग-वेसर शैली
जावा में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता प्रमाणित होती है-बोरोबुदुर मंदिर से
सुदर्शन झील का निर्माण करवाया-चन्द्रगुप्त मौर्य ने (जूनागढ़ में)
सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया-रुद्रदामन (शक शासक)
जिस शासक के समय में सुदर्शन झील में बाढ़ आई-स्कन्दगुप्त
चित्रकला–
‘माता और पुत्र’ एवं ‘मरणासन्न’ राजकुमारी जैसे चित्र विद्यमान हैं-अजन्ता गुहा में
अवशेष–
देश में लोहे का प्रयोग 1000 ई.पू. के लगभग प्रारम्भ हुआ, ये जिन खुदाइयों से पता चलता है-अतरंजीखेड़ा
साहित्यिक स्रोत-Prachin Bharatitya Itihas -Sahitya
(i) वैदिक साहित्य
वेद का शाब्दिक अर्थ-ज्ञान
वेदों के श्रुति कहलाने का कारण-श्रवण परम्परा में सुरक्षित होने के कारण (गुरु-शिष्य परम्परा)
सर्वाधिक प्राचीन वेद-ऋग्वेद
प्राचीन ऋग्वेद में ‘ऋक्’ का अर्थ-छन्दों तथा चरणों से युक्त मंत्र ,ऋग्वेद की स्तुति यज्ञों के समय की जाती थी। ऋग्वेद में कुल 1028 सूक्त एवं 10 मंडल हैं। ऋग्वेद के जिस मंडल एवं सूक्त में वर्गों का उल्लेख है-दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में
ऋग्वेद की कुल शाखाएँ-पाँच
(1) शाकल
(2) वाष्कल
(3) आश्वलायन
(4) शंखायन
(5) मांडक्य
ऋग्वेद के कुल मंत्रों की संख्या-10,600
ऋग्वेद के जो मंडल प्रमाणिक हैं-दो से सात
देवता सोम का उल्लेख जिस मंडल में है-नवाँ
गायत्री मंत्र का उल्लेख जिस वेद में है-ऋग्वेद
सामवेद में ‘साम’ का तात्पर्य है-संगीत, गायन (वे मंत्र जो गेय हैं)
सामवेद के मंत्रों को यज्ञ के समय गाने वाला-उद्गाता
ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण-होतृ (होता) ऋषि द्वारा
सामवेद के प्रथम दृष्टा-वेदव्यास के शिष्य जैमिनी
-सामवेद की प्रमुख शाखाएँ-(1) कोथुमीय (2) जैमिनीय (3) राणानीय
-सामवेद में कुल ऋचाएँ-1549 ऋचाएँ
भारतीय संगीत का जनक-सामवेद
-यजुर्वेद में यजुष का अर्थ-यज्ञों को सम्पन्न कराने में सहायक मंत्र
यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला-अध्वर्यु
यजुर्वेद के भाग-दो-कृष्ण और शुक्ल
कृष्ण यजुर्वेद-छन्दबद्ध मंत्र तथा गद्यात्मक वाक्य
कृष्ण यजुर्वेद की शाखाएँ-(1) तैतरीय (2) काठक (3) मैत्रायणी (4) कपिष्ठल
शुक्ल यजुर्वेद-केवल मन्त्र
शुक्ल यजुर्वेद की शाखाएँ-(1) माध्यन्दिन (2) काण्व
शुक्ल यजुर्वेद की संहिताओं को वाजसनेय कहा जाता है, क्योंकि वाजसनेयी के पुत्र याज्ञवल्क्य इसके दृष्टा थे।
अथर्ववेद अन्य तीन वेदों के समान पारलौकिक फल न देकर लौकिक फल प्रदान करता है।
‘अथर्ववेद’ का नाम इसके प्रथम दृष्टा ‘अथर्वा’ ऋषि पर पड़ा है।
अथर्ववेद के दूसरे दृष्टा आंगिरस ऋषि थे, इसलिए इसे ‘अथर्वाङ्गिरस’ वेद भी कहा जाता है।
अथर्ववेद की दो शाखाएँ-पिप्पलाद एवं शौनक
अथर्ववेद में कुल 20 कांड 731 सूक्त तथा 5987 मंत्र हैं।
अथर्ववेद के लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से उद्धृत हैं।
अथर्ववेद को ब्रह्मवेद कहा जाता है, क्योंकि यह ब्रह्मविद्या विषयक है।
जादू-टोना, औषधि-अनुसंधान, प्रेम, विवाह, आयुर्वेद आदि जिस वेद से सम्बन्धित हैं-अथर्ववेद
कुल उपनिषदों की संख्या-108
शंकराचार्य द्वारा प्रामाणिक उपनिषद्-12
ब्राह्मण ग्रन्थ-
यज्ञीय विषयों के प्रतिपादक ग्रन्थ ब्राह्मण कहे गये।
ब्राह्मण ग्रन्थ अधिकांशतः गद्य में लिखे गये हैं।
प्रत्येक वेद हेतु पृथक् ब्राह्मण ग्रन्थ हैं-
(1) ऋग्वेद-ऐतरेय तथा कौषीतकी
(2) सामवेद-पंचविश, तांड्य, षड़विंश, अद्भुत व जैमिनी
(3) यजुर्वेद-तैत्तिरीय एवं शतपथ
(4) अथर्ववेद-गोपथ ब्राह्मण
आरण्यक ग्रन्थ-अरण्यों अर्थात् वनों में जिनका अध्ययन किया जाता है।
कालान्तर में आरण्यकों से दार्शनिक ग्रन्थ उपनिषदों का विकास हुआ।
उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ-उप + नि + सद्
उप अर्थात् समीप, नि अर्थात् निष्ठापूर्वक, सद् अर्थात् बैठना अत: उपनिषद् से तात्पर्य है :
रहस्य ज्ञान प्राप्त करने हेतु गुरू के समीप निष्ठापूर्वक बैठना।
सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक उपनिषद-12 थे।
ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डुक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय,छांदोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताम्बर, कौषितकी।
‘सत्यवमेव जयते’ मुण्डोपनिषद् से उद्धृत हैं।
वेदांग–
वैदिक साहित्य को समझने हेतु जिस सहायक साहित्य का प्रतिपादन किया गया वह वेदांग के नाम से जाना जाता है।
वेदांग की संख्या छ: है-
(1) शिक्षा, (2) कल्प, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) छंद, (6)ज्योतिष
शिक्षा-वैदिक मंत्रों के शुद्ध उच्चारण एवं शुद्ध स्वर, क्रिया की विधियों केज्ञानार्थ लिखित साहित्य ‘शिक्षा’ कहा जाता है।
वैदिक शिक्षा सम्बन्धी प्राचीनतम् साहित्य प्रतिशाख्य है।
कल्पसूत्र-कल्प नामक वेदांग में छोटे-छोटे वाक्यों में सूत्र बनाकर विधि-विधानों को प्रस्तुत किया गया है।
व्याकरण–
शब्दों की मीमांसा करने वाला शास्त्र।
व्याकरण की सर्वप्रमुख रचना-पाणिनी कृत अष्टाध्यायी
कात्यायन द्वारा रचित व्याकरण-वार्तिक एवं तोलकापियम्
पतंजलि द्वारा रचित व्याकरण-महाभाष्य
निरुक्त-शब्दों के संकलन, निघण्टु की व्याख्या हेतु यास्क ने निरुक्त की रचना की, जो भाषाशास्त्र का प्रथम् ग्रन्थ है।
छन्द-वेदों के मन्त्र प्रायः छन्दबद्ध होते हैं। छन्दशास्त्र पर पिंडलमुनि का ग्रन्थ ‘छन्द-सूत्र’ है।
ज्योतिष-शुभ मुहूर्त में याज्ञिक अनुष्ठान करने के लिए ग्रह-नक्षत्र का अध्ययन करके सही समय ज्ञात करने की विधि।
ज्योतिष की सर्वप्राचीन रचना-मगधमुनि कृत वेदांग ज्योतिष
वेदांग ज्योतिष में 44 श्लोक हैं।
वेदों पर आधारित-दर्शनों की संख्या-छ:
(1) सांख्य, (2) योग, (3) न्याय, (4) वैशेषिक, (5) पूर्व-मीमांसा, (6) उत्तर-मीमांसा
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक-कपिल
योग दर्शन के प्रवर्तक-पतंजलि
न्याय दर्शन के प्रवर्तक-गौतम
वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक-कणाद
पूर्वमीमांसा दर्शन के प्रवर्तक-जैमिनी.
उत्तरमीमांसा दर्शन के प्रवर्तक-बादरायण
पुराण का शाब्दिक अर्थ-प्राचीन आख्यान
मुख्य पुराणों की संख्या 18 है, जो महापुराण कहलाते हैं।
पुराणों के संकलनकर्ता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रवा थे तथा वेदव्यास ने उन्हें लिपिबद्ध किया।
चार कल्प सूत्र-(600 से 300 ई. पूर्व)
(1) श्रोत सूत्र- -वेदों में वर्णित यज्ञ भागों का क्रमबद्ध विवरण, उस काल की परम्पराओं तथा धार्मिक रुढ़ियों का ज्ञान।
ऋग्वेद में दो, यजुर्वेद में सात। } श्रोत सूत्र
सामवेद में तीन, अथर्ववेद में एक
(2) गृह सूत्र-गृहस्थाश्रम से सम्बन्धित धार्मिक अनुष्ठान।
(3) धर्म सूत्र-वupर्ण धर्म, राजा के कर्त्तव्य-प्रायश्चित विधान, न्यायालयों की स्थापना, कराधान नियोग, नियम तथा गृहकर्त्तव्यों का विवरण।
(4) शुल्व सूत्र-शुल्व का तात्पर्य है नापने की डोरी। इसमें यज्ञीय वेदियों को नापने, स्थान, चयन व निर्माणादि का वर्णन है। ये आर्यों के ज्यामितिक ज्ञान के परिचायक हैं।
धर्मशास्त्र–
धर्मसूत्र साहित्य से कालान्तर में स्मृति ग्रन्थों का विकास होने के कारण इन्हें धर्मशास्त्र की संज्ञा दी जाती है।
सर्वाधिक प्राचीन तथा प्रमाणिक स्मृति-मनुस्मृति
विष्णु स्मृति के अतिरिक्त शेष स्मृतियाँ श्लोकों में लिखी गई हैं।
(ii) बौद्धि साहित्य-
त्रिपिटिक-गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को विभिन्न संगतियों में संकलित कर तीन भागों में विभाजित किया गया-
त्रिपिटक पाली भाषा में है
त्रिपिटक-(1) विनय, (2) सूत्त, (3) अभिधम्म
विनयपिटक-संघ से सम्बन्धित नियमों दैनिक आचार-विचारों व विधि निषेधों का संग्रह है।
सुत्त पिटक-इसमें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों व बुद्ध के उपदेशों के संग्रह हैं।
अभिधम्म पिटक-इसमें दार्शनिक सिद्धान्तों का संग्रह है। सबसे बाद की रचना।
जातक कथाएँ-बुद्ध के पूर्वजन्म की कथाएँ।
अभिधम्म पिटक का संकलन चौथी बौद्ध संगति (कुषाण काल) में हुआ।
(iii) विदेशी यात्रियों के विवरण-
विदेशियों के वृत्तान्त भी साहित्यिक साक्ष्य हैं जिनकी धर्मेत्तर घटनाओं में विशेष रुचि थी, अतः उनके वर्णनों से राजनीतिक और सामाजिक दशा पर अधिक प्रकाश पड़ता है।
इन लेखकों का समय भी प्रायः निश्चित है,इसलिए
उनके वर्णन भारतीय लेखकों के वर्णनों की अपेक्षा अधिक उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
परन्तु यूनानी लेखक भारतीय परिस्थितियों तथा भाषा से अपरिचित थे, अतः उनके सभी वर्णन पूर्णतया ठीक नहीं है।
इसी प्रकार चीनी यात्री प्रत्येक घटना का वर्णन बौद्ध दृष्टिकोण से करते थे, अतएव उनका वर्णन एकपक्षीय अधिक है।
अलबिरुनी ने भी प्रायः उपलब्ध भारतीय साहित्य के आधार पर लिखा, अपने अनुभव के आधार पर नहीं। विदेशियों के वृत्तान्तों को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है-(1) यूनान और रोम के लेखक,
(2) चीन के लेखक, तथा (3) अरब के लेखक।
(1)यूनान और रोम के लेखकों में सबसे प्राचीन हिरोडोटस और टीसियस हैं।
यूनानी ग्रन्थ -यूनानी राजदूत
पेरिप्लस ऑफ दी एरिथ्रियसन सी -अज्ञात लेखक
हिस्टोरिका -हिरोडोट्स
इण्डिका -मेगस्थनीज
ज्योग्रेफी -टॉलेमी
नेचुरल हिस्ट्री- प्लिनी (Pliny)
डायमेक्स (यूनानी राजदूत)-बिन्दुसार के दरबार में राजदूत
डायोनिसियस (यूनानी राजदूत) -अशोक के दरबार में राजदूत
(2) चीन के लेखकों में फाह्यान (ग्रन्थ-‘फो-क्वो की’), ह्वेनसांग (ग्रन्थ-‘सी-युकी’) एवं इत्सिंग प्रमुख हैं।
(3) अरब लेखकों में सुलेमान (नवीं शती ई.), अलमसूदी (941 ई. से 943 ई. तक भारत में रहा) और महमूद गजनवी का समकालीन अलबिरुनी प्रमुख हैं।