Plate Vivartaniki Siddhant प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत Plate tectonic in Hindi

Plate tectonic in Hindi प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत-Plate Vivartaniki Siddhant प्लेट-विवर्तनिकी पर संक्षिप्त निबन्ध

प्लेट-विवर्त्तनिकी सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।

अथवा

प्लेट-विवर्तनिकी पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिये।

आइए इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानते हैं –


प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत Plate Vivartaniki Siddhant

पृथ्वी के विभिन्न महाद्वीपों के आकार-प्रकार एवं स्थिति के अवलोकन से कई वैज्ञानिक इस धारणा से सहमत पाये गये कि प्रारम्भ में केवल एक महाद्वीपीय समूह था जो कि कालान्तर में विभिन्न भागों में विच्छिन्न (टूटकर )होकर एक दूसरे से क्रमश: पृथक होते गये एवं इन भागों के स्थानान्तरण के फलस्वरूप वर्तमान महाद्वीपों की रचना हुई ।
भूकम्प तरंगों के अध्ययन एवं विश्लेषण से प्राप्त तथ्यों की सहायता से प्लेट-विवर्तनिकी (Plate tectonics) के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया।

इस सिद्धान्त के अन्तर्गत भू-विज्ञान संबंधी समस्त अभिक्रियाओं की पुष्टि की जा सकी।
पृथ्वी पर निम्नलिखित ऐसे दो कटिबन्ध हैं जहाँ भूकम्प अधिकतर आते हैं–

(1) परिप्रशान्त कटिबन्ध (pacific zone)
(2) भू-मध्यीय भूकम्पी कटिबन्ध (आल्पस हिमालय क्षेत्र)

पृथ्वी के इन दो भूकम्प कटिबन्धों में अधिकांश भूकम्प आल्पस हिमालय क्षेत्र में तथा परिप्रशान्त कटिबन्ध के तरुण वलय पर्वतों एवं खाइयों के क्षेत्र में तथा महासागर के मध्य स्थित पर्वत श्रेणियों के क्षेत्र में आते हैं। पृथ्वी के शिखर कटक( peak ridge )तथा नतिलम्ब सर्पण भ्रंश क्षेत्रों (Elevated Serpent Fault Zones) से सम्बन्धित सक्रियता मूलत: कम गहराई अर्थात् 10 से 20 कि.मी. की गहराई तक के क्षेत्र में ही निहित रहती है। तरुण वलय पर्वत (young ring mountain )क्षेत्रों तथा चोटी समूह क्षेत्रों में अल्प गम्भीरता वाले सामान्य उद्गम केन्द्र के भूकम्प होते हैं।
मध्यवर्ती तथा गंभीर उद्गम केन्द्र के भूकम्प, जिनकी गहराई प्राय: 700 कि.मी. तक होती है, इन क्षेत्रों में होते हैं।
समुद्र तल प्रसारण सिद्धान्त के अनुसार ये दोनों भूकम्पी प्रक्षेत्र प्रथम अलग गम्भीरता अथवा सामान्य उद्गम केन्द्र के भूकम्प तथा द्वितीय मध्यवर्ती एवं अति गम्भीर उद्गम केन्द्र के भूकम्प दो विभिन्न प्रक्रियाओं के द्योतक हैं।

महासागर के मध्य स्थित शिखर क्षेत्रों से नवीन समुद्र तलीय पर्पटी की सृष्टि होती है, जो कि अंशत: कटक( चोटी ) समूह क्षेत्र में विलीन हो जाती है।
साधारणत: पृथ्वी की सतह को कई अभूकम्पी प्लेटों में विभक्त किया जा सकता है जो कि संलग्न शिखर कटक भ्रंश, पर्वत समूहों की भूकम्पीय सक्रियता वाले क्षेत्रों से घिरे हों।
ये प्लेट पूर्णत: महाद्वीपीय पर्पटी या महासागरीय पर्पटी या दोनों प्रकार की पर्पटियों से बने हो सकते हैं। समुद्र तल-प्रसारण सिद्धान्त (sea ​​level diffusion theory)के अनुसार ये प्लेट सतत् रूप से आपेक्षिक गतिशीलता प्रदर्शित करते हैं तथा इनके बीच भूकम्पीय परिसीमा क्षेत्र निर्मित होते हैं। इन भूकम्पीय परिसीमा क्षेत्रों में महासागरीय पर्पटी की सृष्टि एवं विनाश, महाद्वीपीय पर्पटी का संकुचन या प्रसारण तथा पर्पटीय प्लेटों के क्षेत्रफल में परिवर्तन हुए बिना भ्रंशों के फलस्वरूप पाश्र्वय संचलन (side movement) परिलक्षित होता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुरूप तीन सुस्पष्ट समतलीय स्तर पाये जाते हैं।

प्रथम समतलीय स्तर भू-पर्पटी तथा प्रावार (Mantle) के सर्वोच्च भाग से बना होता है एवं इस स्तर में यथेष्ट सामर्थ्य (Strength) होता है। इस स्तर की मोटाई प्राय: 100 कि.मी. होती है। इस स्तर को स्थलमण्डल (Lithosphere) कहते हैं।
द्वितीय समतलीय स्तर जिसमें प्रभावी सामर्थ्य प्राय: शून्य होता है एवं जो स्थलमण्डल के तल से कई सहस्त्र कि.मी. की गहराई तक फैला रहता है दुर्बलता मण्डल (Asthenosphere) कहलाता है।

तृतीय समतलीय स्तर जिसमें सामर्थ्य हो सकता है एवं प्रावार के निचले शेष भाग से बना होता है मध्यमण्डल (Mesosphere) कहलाता है।
मध्यमण्डल में सापेक्ष निष्क्रियता एवं विवर्तनिक प्रक्रमों की अक्रियता होती है।

Plate Vivartaniki Siddhant Diagram


चित्र में स्थल मण्डल में लगे तीर के निशान संलग्न प्लेटों की गति दर्शाते हैं। दुर्बलता मण्डल के तीर के निशान स्थल मण्डल खण्ड के अधोगति (downgrade )के फलस्वरूप उत्पन्न प्रतिकारी प्रभाव दर्शाते हैं।

बायीं ओर सम्मुखीय द्वीपीय चापों के मध्य उत्पन्न चाप से चाप तक रूपान्तर भ्रंश दर्शाया गया है। मध्य में महासागरीय कटक के अनुरूप कटक से कटक तक उत्पन्न दो रूपान्तर भ्रंश दर्शाये गये हैं तथा दाहिनी ओर सामान्य चाप संरचना दर्शायी गई है।
पृथ्वी के गर्भ में इन स्तरों की सीमाएं प्रवणित होती हैं। दुर्बलता-मण्डल, भूकम्प विज्ञान के निम्न वेग (Low velocity) स्तर के समरूप होता है।

यह, भूकम्प तरंगों, विशेषकर अपरूपण (Shear) तरंगों को प्रभावी रूप से क्षीणता प्रदान करती है। स्थलमण्डल तथा मध्यमण्डल में अपेक्षाकृत उच्च भूकम्पीय वेग होता है एवं भूकम्प तरंगों के प्रचार में कोई विशेष क्षीणता उत्पन्न नहीं करता है।

पृथ्वी के अन्दर स्थित प्रमुख विवर्तनिक सक्रियता वाले क्षेत्रों में महासागरीय कटकों, द्वीपीय चापों (island arcs) तथा वृहत नतिलम्ब सर्पण भ्रंशों (Elevated Serpent Fault ) में स्थलमण्डल असंतत (discontinues) होता है एवं अन्यत्र यह सतत् होता है।
फलस्वरूप, स्थलमण्डल अपेक्षाकृत पतले खण्डों से बना हुआ होता है एवं पाश्वर्दीय दिशा में अत्यन्त दृढ़ होता है। इन खण्डों के सापेक्ष संचलन एवं पारस्परिक क्रियाओं के फलस्वरूप प्रमुख विवर्तनिकं लक्षणों की सृष्टि होती है।

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