Mangal Pandey भारतीय स्वतंत्रता के महानायकों में अग्रणी तौर पर गिने जाते हैं उनको इस लेख के माध्यम से सादर नमन
मंगल पांडे का जीवन परिचय Biography of Mangal Pandey
Mangal Pandey का जन्म फैजाबाद जिले की अकबरपुर तहसील के ‘सुरहरपुर’ नामक गाँव में सन् 1827 के जुलाई की 19वीं तारीख को अर्थात् अषाढ़ शुक्ल द्वितीया शुक्रवार विक्रमीय संवत् 1884 में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘दिवाकर पाण्डे’ था। वस्तुतः वह फैज़ाबाद तहसील के दुगवां रहीमपुर नामक ग्राम के रहने वाले थे और अपने ननिहाल की संपत्ति के उत्तराधिकारी होकर सुरहुरपुर में जाकर बस गये थे। वहीं पर उनकी पत्नी अभ्यरानी देवी के गर्भ से मंगल पाण्डे का जन्म हुआ।
उनकी लम्बाई 9 फुट ढ़ाई इंच थी। 22 वर्ष की आयु में अर्थात् 10 मई 1849 में ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ की सेना में भरती हुए। किसी काम से आप सुरहुरपुरा से अकबरपुर आये हुए थे उसी समय कम्पनी की सेना बनारस से लखनऊ को ग्रांड ट्रंक रोड होती हुई जा रही थी। आप सेना का मार्च देखने के लिए कौतुहलवश सड़क के किनारे आकर खड़े हो गये। सैनिक अधिकारी ने आपको हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ देखकर सेना में भरती हो जाने का आग्रह किया, आप राजी हो गये। बस! यहीं से आपका सैनिक जीवन प्रारम्भ हुआ।”
बैरकपुर छावनी में Mangal Pandey
फरवरी सन् 1857 को 19वीं नेटिव इन्फेन्ट्री को चर्वी लगे कारतूस दिए गये। इन्फेन्ट्री के हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों ने इन कारतूसों का इस्मेमाल करने से मना कर दिया। अंग्रेज फौजी अफसरों को इस इंकार में विद्रोह की गूंज आने लगी। उन्होंने गोरी पलटन की सहायता से 19 वीं नेटिव इन्फेन्ट्री के हिन्दुस्तानी सिपाहियों से हथियार रखवा लेने का विचार किया। इस काम के लिए एक गोरी रेजीमेंट बर्मा से विशेष तौर पर मंगवाई गई।
29 मार्च 1857 दिन रविवार दोपहर के समय 19 वी नेटिव रेजीमेंट के सैनिक परेड ग्राउण्ड फैं बुलवाये गये। इन हिन्दुस्तानी सैनिकों को यह खबर लग गई थी कि उनका निःशस्त्रीकरण करने के लिए एक यूरोपियन रे नीट वैरकपुर पहुँचने वाली है। इस खबर ने हिन्दुस्तानी सिपाहियों को आंदोलित कर दिया था, परन्तु उन्हें 31 मई 1857 से पहले विद्रोह करने के लिए मना किया गया था। इन्ही सैनिकों में मंगल पाण्डे’ भी थे। वह अपने आप को रोक न सके। जैसे ही 19 वी रेजीमेंट परेड ग्राउण्ड में आकर खड़ी हुई, उसी समय मंगल पाण्डे, हाथ में बन्दूक लेकर ‘सारजेन्ट पेजर ह्यूसन’ के सामने आ खड़े हुये। वह चीख कर हिन्दुस्तानी सिपाहियों को अपने धर्म और ईमान की हिफाजत के लिए लड़ने को उकसाने लगे।
मंगल पांडे का विद्रोह
मेजर यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया, मगर कोई भी सिपाही उन्हें पकड़ने के लिए आगे नहीं बढ़ा सिवाय ‘शेख पलटू के। शेख पलटू ने भी मंगल पाण्डे को पकड़ने के बाद फौरन छोड़ दिया। सारजेन्ट पेजर ह्यूसन इससे पहले कि कुछ समझ पाता मंगल पाण्डे ने उसे गोली मार दी। वह घायल होकर वहीं गिर पड़ा। तभी एक अन्य फौजी अफसर लेफ्टिनेन्ट वाघ मंगल पाण्डे की और बढ़ा। मंगल पाण्डे ने गोली चला दी ।
लेफ्टिनेन्ट वाघ घोड़े से जमीन पर आ टपके। मंगल पाण्डे, की बन्दूक में गोली खत्म हो गई थी। वह उसे दोबारा भरने लगे तभी घायल ‘ वाघ ‘ ने अपनी पिस्तौल से पाण्डे पर गोली चलाई। पाण्डे वार बचा ले गये। उन्होंने बन्दूक में गोली भरने का इरादा छोड़ कर तलवार निकाल ली। पाण्डे के एक ही बार में वाघ ढेर हो गया। कर्नल ‘स्वीलर’ ने पुनः पलटन के सिपाहियों को हुक्म दिया कि वे ‘ मंगल पाण्डे’ को गिरफ्तार करें, मगर कोई तैयार ही नहीं हुआ। सभी बुत बने खड़े रहे। ‘कर्नल ह्वीवलर’ ने जब अपनी जान को भी खतरे में देखा तो भाग कर ‘जनरल हीयरसे’ के बंगले पर पहुँचा। जनरल मंगल पाण्डे को गिरफ्तार करने के लिए चल पड़ा।
इस बीच मंगल पाण्डे ने परेड ग्राउण्ड पर खड़े सभी हिन्दोस्तानी सिपाहियों को विद्रोह करने के लिए पुनः ललकारा, मगर 31 मई से पूर्व वे कुछ भी नहीं करना चाहते थे। तभी मंगल पाण्डे को जनरल हीयरसे, कर्नल स्वीलर और जनरल का पुत्र जो फौज में ही अफसर था आते दिखाई दिये। मंगल पाण्डे अंग्रेजों के हाथ गिरफ्तार होना नहीं चाहते थे। उन्होंने बन्दूक के कुन्दे को जमीन पर रखा और नाल को सीने से लगाया, ट्रिगर पर उनके अंगूठे का दवाव जैसे ही बढ़ा एक गोली उनके सीने के पार हो गई। वह घायल अवस्था में वहीं गिर गये।
मंगल पाण्डे जमीन पर मूर्छित पड़े थे। किसी भी अंग्रेज फौजी अफसर यहाँ तक कि रेजीमेन्टल डाक्टर की भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह उनके पास जायें। घाव ज्यादा गहरा नहीं था। किसी तरह मंगल पाण्डे को अस्पताल लाया गया। इलाज होने के बाद वे पूरी तरह ठीक हो गये। हिन्दोस्तानी सिपाही हालाँकि मंगल पाण्डे के कहने पर नहीं चले, परन्तु उनके प्रति हिन्दोस्तानी सिपाहियों का प्रेम कम न था। पाण्डे से जब ‘हयुसन’ और ‘वाघ’ एक साथ लड़ रहे थे तो क्वाटर गार्ड के कुछ सिपाहियों ने उन पर बन्दूक के कुंदों से हमला भी किया था। यही नहीं किसी सिपाही ने उन दोनों अंग्रेज फौजी अफसरों पर गोली भी चलाई थी, मगर दोनों बच गये थे। मंगल पाण्डे जब घायल होकर गिरें तो हिन्दोस्तानी सिपाहियों ने चिल्लाकर यह चेतावनी दी कि कोई भी अंग्रेज पाण्डे का शरीर नहीं छुएगा।
मंगल पाण्डे को फाँसी
Mangal Pandey जब पूरी तरह ठीक हो गये तो 6 अप्रैल 1857 को उनका कोर्ट मार्शल हुआ। कोर्ट मार्शल के लिए जो समिति बनाई गई थी उसमें सूबेदार मेज़र जवाहर लाल तिवारी (अध्यक्ष) के अतिरिक्त 15 अन्य सदस्य थे। मुकदमा चला।
पाण्डे ने अपने सहयोगी षड़यंत्रकारियों का नाम बताने से साफ इंकार करते हुए कहा कि मुझे अपने बचाव में कुछ नहीं कहना है।
सारजेन्ट मेज़र ह्यूसन, लेफ्टीनेन्ट वाघ और हवलदार शेख पलटू सरकारी गवाह थे। पाण्डे पर हथियार लेकर परेड ग्राउण्ड में आने, सिपाहियों को क्रान्ति के लिए भड़काने और फौजी अफसरों को जान से मारने के आरोप लगे। सैनिक कोर्ट ने 6 अप्रैल की शाम को ही मंगल पाण्डे को फाँसी की सज़ा सुना दी। प्रेसीडेन्सी डिवीजन के कमांडिंग ऑफिसर जनरल ‘जॉन हीयरसे’ ने फाँसी की सजा को स्वीकृति प्रदान की।
फाँसी सुबह 8 ताराख को दी जानी थी। बैरकपुर का कोई भी जल्लाद Mangal Pandey को अपने हाथों फाँसी देने के लिए राजी न हुआ। आखिरकार कलकत्ता से चार जल्लाद फाँसी देने के लिए बुलवाये गये। इस प्रकार मंगल पाण्डे को 8 तारीख की सुबह फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
‘फोर्थटी बन इयर्स इन इण्डिया‘ में ‘लार्ड राबर्ट‘ लिखते हैं-8 अप्रैल सन् 1857 के साथ ही पाण्डे’ शब्द सभी क्रान्तिकारी सिपाहियों की पहचान बना।’
‘केई‘ ने ‘Mangal Pandey’ के लिए कहा है कि-‘पाण्डे भाँग के नशे के आदी थे। भाँग खाने के बाद वह आपे में नहीं रहते थे। भाँग की उत्तेजना में ही उन्होंने 29 मार्च को परेड ग्राउण्ड पर यह काण्ड किया। “केई” जैसे अंग्रेज परस्त व्यक्ति के इस वक्तव्य का डा. सेन‘ ने खण्डन किया है। उनका कहना है कि-‘शराब के नशे में डूबा व्यक्ति ही अपना दिमागी संतुलन खोता है भाँग के नशे में नहीं…।’
फाँसी के बाद
किताब ‘गदर के फूल‘ में लिखते हैं-कर्नल मार्टिन ने एक रिपोर्ट फैजाबाद के सैनिक अधिकारी कर्नत हण्ट’ के पास उस समय भेजी, जब कि फैजाबाद जिले में विद्रोहियों की जबरदस्त सभाएं हो रही थी और एक दिन समस्त जिले भर में अंग्रेजों को मौत के घाट उतार देने के लिए रोमांचकारी सैनिक तैयारियों के साथ कार्यक्रम बनाया जा रहा था।’
मार्टिन लिखता है-मंगल पाण्डे’ को जब से फाँसी दे दी गयी है तब से समस्त भारत की सैनिक छावनियों में जबर्दस्त विद्रोह आरंभ हो गया है। फैज़ाबाद जिले में बलवाइयों का इतना अधिक जोर है कि एक प्रकार से बागियों का वहाँ सैनिक अड्डा ही कायम हो गया है। फैज़ाबाद में विद्रोहियों का सैनिक अड्डा कायम हो जाने की वजह यह है कि मशहूर बागी मंगल पाण्डे…फैज़ाबाद जिले की अकबरपुर तहसील के सुरहरपुर गाँव का रहने वाला था…।’
मंगल पाण्डे के खानदान में जो भी मिला उसे तोप के मुँह पर धर कर अंग्रेजों ने उड़ा दिया। फिर भी मंगल पाण्डे के कई एक निकट संबंधी बच गये, जिनमें मंगल पाण्डे के सगे भतीजे बुझावन पाण्डे भी थे। वह अपनी जमात के सभी रिश्तेदारों, खानदानियों और साथियों को साथ लेकर क्रान्तिकारी दल में मिल गये। 25 अगस्त को इन सबने मिल कर फैज़ाबाद की सैनिक छावनी पर रात में धावा बोल दिया, जिसके फलस्वरुप सभी हिन्दुस्तानी सैनिक उनसे मिल गये और छावनी के सभी अंग्रेज या तो मार डाले गये या बलवाइयों के हाथ बन्दी हो गये।
यह लेख मूलतः पवन कुमार सिंह द्वारा लिखा गया है सामान्य जानकारी के लिए अक्षरशः प्रकाशित किया गया है
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