आइये जानते हैं Mahabharat in Hindi | महाभारत को किसने लिखा ? महाभारत कब लिखी गए थे , लेखकऔर कविओं के विचार Hindi Sahitya के अनुसार कैसा है ?
Old Mahabharat कब लिखा गया | महाभारत का इतिहास
“महाभारत’ के रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कहे जाते है। यह प्रसिद्ध है कि इस ग्रन्थ में एक लाख अनुष्टय छन्द हैं तथा इसे “शतसहस्त्री संहिता” भी कहा जाता है।
इसका यह स्वरूप कम से कम डेढ़ हजार वर्ष से अवश्य है क्योंकि गुप्तकालीन शिलालेखों में भी इसे “शतसहस्त्री संहिता” कहा गया है। परन्तु अनेक विद्वानों का कहना है कि महाभारत का यह रूप अनेक शताब्दियों में विकसित हुआ। यहाँ यह भी स्मरणीय है कि हापकिन्स का कहना है कि इस महान् ग्रन्थ का कोई रचयिता न था और यह व्यास नाम जो प्रयुक्त हुआ है वह केवल अपनी सुविधा के लिए तथा व्यास वास्तव में उसका रचयिता न होकर संपादक था।
स्वयं”महाभारत” में भी कहा गया है कि व्यास ने तीन वर्ष तक लगातार परिश्रम कर इस अद्भुतआख्यान”महाभारत” की रचना की। इस प्रकार व्यासने “महाभारत की कथावैशम्पायन नामक अपने शिष्य को सुनाई और यही कथा वैशम्पायन ने अर्जुन के प्रपौत्र जनमेजय के सर्वसत्र में कहीं तथा बाद में लोकोमहर्षण के पुत्र सौति ने उसे शौनकादि ऋषियों को तीसरी बार सुनाया। इस प्रकार”महाभारत” तीन बार तीन वक्ताओं द्वारा तीन श्रोताओं को सुनाया गया और यहाँ यह भी सहज ही स्पष्ट हो जाता है कि जो प्रश्नोत्तर वैशम्पायन व जनमेजय कथा सौत व शौनकादि ऋषियों के मध्य हुए होंगे।
उनके फलस्वरूप मूल ग्रन्थ निःसन्देह परिवर्तित हो गया होगा। अतः व्यास के ग्रन्थ को वैशम्पायन ने और वैशम्पायन के ग्रन्थ को सौति ने बढ़ाकर एक लाख श्लोकों का कर दिया।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि “महाभारत” के तीन रूपान्तर हुए और विचारक उसके निम्नलिखित तीन क्रमिक स्वरूप मानते हैं-
जय– Mahabharat को Jai कहा गया ?
विद्वानों की खोज के अनुसार महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास ने जिस कथा को कहा उसका नाम “जय” था और”महाभारत” के आदि पर्व की इस उक्ति“तय नामेतिहासो यं श्रोतव्यो निजीगुषणा” के अनुसार यह नाम ऐतिहासिक है। सम्भवतः इस ग्रन्थ में केवल कौरव पाण्डव का युद्ध का ही वर्णन रहा होगा और पाण्डवों की विजय के कारण उसे”जय” नाम दिया होगा, साथ ही यह भी उल्लेख मिलता है कि इस”जय” नामक ग्रन्थ में 8,80,000 श्लोक थे

अष्टौ श्लोक सहस्त्राणि अष्टौ श्लोकशतानि च।
अहं वैद्वि शुको वेत्ति संजयों वेत्ति वान वा।।
भारत- Mahabharat का नाम Bharat
वैशम्पायन द्वारा जो कथा कही गयी उसका नाम भारत था और इसमें उपाख्यानों का समावेश न होकर युद्ध वर्णन को ही प्रधानता प्राप्त थी तथा उसमें केवल चौबीस हजार श्लोक थे-
चतुर्विशतिसाहस्त्रो चक्रे भारत संहिताम्।
उपख्यानैविना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः।

महाभारत Mahabharat किसने कहा
सौति ने विभिन्न आख्यान उपाख्यानों और परिशिष्ट रूप में हरिवंश को भी संयुक्त कर उक्त दोनों को तीसरा रूप प्रदान किया तथा अठारह पदों में विभाजित, एक लाख श्लोक का यह ग्रन्थ “महाभारत” कहलाया। परन्तु “महाभारत” के अनुसार उसकी वास्तविक श्लोक संख्या हरिवंश संहिता 96,224 और कुछ प्रतियों में तो पूरे एक लाख तथा इससे अधिक श्लोक भी मिलते हैं।
इस प्रकार महाभारत के कर्ता, वक्ता एवं प्रवक्ताओं का अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि उसका निर्माण अनेक व्यक्तियों द्वारा विभिन्न समयों में हुआ और उसके काल निर्णय के सम्बन्ध में देशी-विदेशी विद्वानों की जो पृथक्-पृथक स्थापनाएँ
हैं वे कुछ इतनी अधिक भिन्न हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि महाभारत का निर्माण कब हुआ।
Mahabharat कब लिखा गया
यों तो विक्रम से लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व विरचित आश्वलायन गृह्यसूत्र में “भारत” के साथ“महाभारत” का नाम निर्दिष्ट है और 445 ई. (502 वि.) के एक शिलालेख में महाभारत का निर्देश इरा प्रकार है- “शतसाही संहिताओं वेदव्यासेनोक्तम‘ । अतः इससे
प्रतीत होता है कि इससे कम से कम 200 वर्ष पूर्व इसका अस्तित्व अवश्य होगा।
इसी प्रकार कनिष्क के सभी पंडित अश्वघोष ने “वज्रसूची’ में महाभारत से कुछ श्लोक उद्धृत किये हैं तथा बौधायन के “ह्यसूत्र” में महाभारत के श्लोक उद्धृत हैं। चूकि बौद्धायन और आश्वलायन का समय ई० से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व माना जाता है। अतः मूल महाभारत की रचना उससे कम से कम दो वर्ष पूर्व (400 ई० पू०) ही अवश्य हुई होगी लेकिन महाभारत के कुछ अंश वैदिक युगीन भी हैं।
इसी प्रकार चिन्तामणि विनायक वैद्य ने “महाभारत मीमांसा’ में Mahabharat के दो रूप स्वीकार कर व्यासकृत “भारत” की रचना 3100 ई० पू० और सौति द्वारा”महाभारत” का निर्माण काल 2000 ई० पू० माना है। अतः उनके कथनानुसार वर्तमान महाभारत का रचना काल दो हजार ई० पू० है परन्तु सेठ कन्हैया लाल पोद्दार उनके इस मत से सहमत नहीं हैं। उनका तो यही कहना है कि इन कल्पनाओं के आधार पर महाभारत का न तो समय बढ़ाया जाना ही सिद्ध हो सकता है और न ही उसके परिवर्तन होने का काल ई० सन् के दो चार शताब्दियों के पूर्व प्रमाणित हो सकता है। अतएव महाभारत का निर्माण काल बतलाना कठिन है। जैसा
कि महाभारत के अन्तः प्रमाणों से स्पष्ट है, इसके बिना कोई भी विश्वसनीय प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है। इस प्रकार महाभारत के रचनाकाल के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट हो जाते हैं-
Mahabharat के तथ्य
(1) महाभारत के कुछ अंश वैदिक युगीन भी हैं परन्तु यहाँ पर स्मरणीय है कि वैदिक युग प्रागैतिहासिक और चतुर्थ सहस्त्रों तक प्रसारित है।
(2) महाभारत 500 ई० पू० में अवश्य रहा होगा और इसके पूर्व संस्करण भारत व जय क्रमशः 800 ई० पू० तथा 1000 ई० रचे गये होंगे।
(3) चौथी शती ई. तक महाभारत का प्रायः आधुनिक रूप सम्पन्न हो चुका था।
महाभारत के पर्व – Mahabharat के Part या भाग
महाभारत में अठारह खण्ड हैं। यह खण्ड पर्व कहे जाते हैं और उनके नाम इस प्रकार हैं-
(1) आदि पर्व, (2) सभा पर्व, (3) वन पर्व, (4) विराट पर्व, (5) उद्योग पर्व, (6) भीष्म पर्व, (7) द्रोण पर्व, (8) कर्ण पर्व, (9) शल्प पर्व, (10) सौप्तिक पर्व, (11) स्त्री पर्व, (12) शान्ति पर्व, (13) अनुशासन पर्व, (14) अश्वमेघ पर्व, (15) आश्रमवासी पर्व, (16) मौसल पर्व,
(17) महाप्रस्थानिक पर्व और (18) स्वर्गारोहण पर्व।
आदि पर्व में चन्द्रवंश का विस्तृत इतिहास तथा कौरव पाण्डवों की उत्पत्ति का वर्णन है। सभा पर्व में ध्रूत क्रीडा, वन पर्व में पाण्डवों का वनवास, विराट पर्व में पाण्डवों का अज्ञातवास, उद्योग पर्व में श्रीकृष्ण का दूत बनकर कौरवों की सभा में जाना तथा शान्ति का प्रयास करना, भीष्म पर्व में अर्जुन को गीता का उपदेश, युद्ध पर्व में युद्ध का आरम्भ, भीष्म का युद्ध और शर शैय्या पर पड़ना, द्रोण
पर्व में अभिमन्यु का वध, द्रोणाचार्य का युद्ध और वध, कर्ण पर्व में कर्ण का युद्ध और वध, शल्य पर्व में शल्य की अध्यक्षता में लड़ाई और अन्त में वध, स्त्री पर्व में स्त्रियों का विलाप, शान्ति पर्व में भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को मोक्ष धर्म का उपदेश, अनुशासन पर्व में धर्म तथा नीति की कथाएँ, अश्वमेघ पर्व में युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ करना, आश्रमवासी पर्व में धृतराष्ट्र गान्धारी आदि का वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना, मौसल पर्व में यादवों का मुसल के द्वारा नाश, महाप्रस्थानिक पर्व में पाण्डवों की हिमालय यात्रा तथा स्वर्गारोहण पर्व में पाण्डवों का स्वर्ग जाना वर्णित है।
साथ ही महाभारत में अनेक रोचक और शिक्षाप्रद उपाख्यान भी हैं जिनमें शाकुन्तलोपाख्यान, मत्स्योपाख्यान, रामोपाख्यान, शिवि
उपाख्यान, सावित्री उपाख्यान और नलोपाख्यान विशेष प्रसिद्ध हैं।
इनके अतिरिक्त हरिवंश भी महाभारत का अंश समझा जाता है और इसमें यादवों की कथा विस्तार पूर्वक दी गयी है तथा इसके तीन पर्व हैं- (1) हरिवंश पर्व- जिसमें श्रीकृष्ण के पूर्वजों का वर्णन है, (2) विष्णु पर्व- जिसमें श्रीकृष्ण लीला का अत्यन्त विस्तृत वर्णन किया गया है और (3) भविष्य पर्व-जिसमें कलयुग के प्रभाव का वर्णन है।
उपर्युक्त विवेचन से महाभारत की विषय-वैविध्यता स्पष्ट हो जाती है और विचारकों ने उचित ही कहा है- “महाभारत का रचयिता अपने युग की समग्र साहित्यिक और साँस्कृतिक निधि को अपनी कला के माध्यम से एक सूत्र में उपनिबद्ध करने में सफल हुआ
है।” हम यह भी स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं कि कुछ समीक्षक महाभारत को एक ग्रन्थ न मानकर प्रकाण्ड संग्रह-ग्रंथ मानते हैं और उनका विचार है कि यह इसके प्रत्येक पर्व की पुष्पिका से ही प्रभावित होता है, जिसमें इसके लिए संहिता अर्थात् संग्रह ग्रन्थ का प्रयोग हुआ है।
इस प्रकार-“यह कवि-रूपी माली का यत्नपूर्वक संवारा हुआ उद्यान नहीं है, जिसके, लता, पुष्प, वृक्ष अपने सौन्दर्य के लिए बाहरी सहायता की अपेक्षा करते हैं। बल्कि यह अपने आपकी जीवनी शक्ति से परिपूर्ण वनस्पतियों और लताओं का अत्यन्त परिवर्धित
विशाल वन है जो अपनी उपमा आप ही है। इसीलिए महाभारत को केवल महाकाव्य या पुराण मात्र न मानकर एक ऐसा विशाल विश्वकोष माना जाता है जिसमें प्राचीन भारत की ऐतिहासिक धार्मिक, नैतिक और दार्शनिक आदर्शों की अमूल्य निधि संचित है तथा स्वयं महाभारत में लिखा है- “वह सर्वप्रधान काव्य है, सब दर्शनों का सार, स्मृति इतिहास और पंचम वेद है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में इस काव्य में जो कुछ कहा गया है, वही अन्यत्र है, जो इसमें नहीं वह अन्यत्र नहीं है-
धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षमः ।
यदिहास्ति तदयन्त्र यनेहास्ति तत् कवचित्।

Mahabharat के साहित्य व समाज में
कहा जाता है कि-“जैसे दही में मक्खन, मनुष्यों में ब्राह्मण, वेदों में आरण्यक, औषधियों अमृत, जलाशयों में समुद्र और चतुष्पादों में गौ श्रेष्ठ है, उसी प्रकार समस्त इतिहासों में यह”भारत श्रेष्ठ” है।” महाभारत के पात्र और उनका चरित्र भारतीय संस्कृति की अक्षयनिधि है। इनके गौरव गरिमा के मण्डिल चरित्र का विश्लेषण करते हुए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-
“महाभारत उज्जवल चरित्रों का विशाल वन है। इस ग्रन्थ में ऐसे पात्र बहुत कम हैं- नहीं है, कहना अधिक ठीक है- जो पहले पलकर चमके हों। सब के सब एक तूफान के भीतर से गुजरे हैं। उनका विकास कवि की सुनियन्त्रित योजना के इशारे पर नहीं हुआ है, बल्कि अपने आप की भीतरी शक्ति के द्वारा हुआ है, जैसे महावन का विशाल वनस्पति हो, जो तूफानों और शिला वृष्टियों की चोट सहकर और पार्श्ववर्ती वनराज की भयंकर प्रतिद्वन्द्विता को पछाड़कर आकाश में सिर उठाता है इन पात्रों ने अपना रास्ता स्वयं निकाला है, अपनी ही रची हुई विपत्ति की चिन्ता में ये हंसते-हंसते कूद गये हैं। “महाभारत” का अदना से अदना
चरित्र भी डरना नहीं जानता, आत्म विश्वास की ऐसी उच्छल-धारा सर्वत्र नहीं मिल सकती।
सबके चेहरे पर अकुतोभाव है। अविश्वास की छाया कहीं नहीं पड़ी, भीति की शिकन से कोई विकृत नहीं हुआ- “निर्भीक, साहसी, तेजस्वी,” “महाभारत” पढ़ते समय पाठक एक जादू भरे वीरत्व के अरण्य मे प्रवेश करता है, जहाँ विपत्ति तो है परनतु भय नहीं है, असफलता तो है परन्तु निराशा नहीं है, जीवन की गल्तियाँ तो हैं परन्तु उनके लिए अनुताप नहीं है।
सरल तेज, अकृत्रिम, दर्प, निर्भीक वीरत्व, विवेकयुक्त कर्त्तव्य और अकपट आचरण महाभारतीय वीरों के चरित्र के मूल स्वर हैं।”
इस प्रकार यहाँ निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि यह अमर भारत वृक्ष भावी कर्मियों के लिए उसी प्रकार आशय है, जैसे प्राणियों के लिए मेघ-
सर्वेषां कविमुख्यानपजीव्यो भविष्यति।
पर्जन्य इव भूतानामक्षयों भारतद्रमः।

General Science Questions in Hindi-जनरल साइंस प्रश्न हिंदी में