kridant Pratyaya कृदन्त प्रत्यय

कृत प्रत्यय , kridant Pratyaya कृदन्त प्रत्यय ,क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय ,कृदंत प्रत्यय के उदाहरण ,तुमुन् प्रत्यय ,धातु शब्द ,शानच् प्रत्यय ,क्त प्रत्यय ,वतवतु प्रत्यय ,तद्धित प्रत्यय
कृत प्रत्यय से आप क्या समझते हैं?
कृत-प्रत्यय जो प्रत्यय धातुओं के बाद जुड़कर उनसे संज्ञा, विशेषण या अव्यय शब्द बना देते हैं, उन्हें कृत् प्रत्यय कहा जाता है। क्त्वा, ल्यप् ऐसे प्रत्यय है।

कृदन्त प्रत्यय – kridant Pratyaya

कृदंत किसे कहते हैं ? कृदंत प्रत्यय किसके साथ जुड़ते हैं ?
कृदन्त-इन कृत प्रत्ययों के योग से बने संज्ञादि शब्दों को कृदन्त कहा जाता है, जैसे-गम् + क्त्वा से बना शब्द गत्वा एक कृदन्त शब्द है।

  1. क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय क्त्वा पूर्वकालिक क्रिया को बनाने के लिए ‘क्त्वा’ प्रत्यय का उपयोग होता है। इस पूर्वकालिक क्रिया तथा उसके बाद की पूर्ण क्रिया का कर्ता एक ही होता है।

(1) क्त्वा प्रत्य ‘कर’ करने के बाद अर्थ में प्रयुक्त होता है।

(2) क्त्वा का ‘त्या’ शेष रहता है और इससे बना शब्द अव्यय होता है, अर्थात् उसके रूप नहीं चलते।
इसमें धातु से पूर्व में उपसर्ग नहीं लगता है।
यथा – गम् + क्त्वा (त्वा) गत्वा
(3) ‘सेट्’धातुओं में ‘इट्’ हो जाता है, परन्तु चुरादिगण की धातुओं और णिजन्त धातुओं से क्त्वा प्रत्यय करने पर इ के स्थान पर ‘अय्’ हो जाता है।


कृदंत प्रत्यय (kridant Pratyaya)के उदाहरण

kridant Pratyaya
चल् + क्त्वा (त्वा)
चल् + इ + क्त्वा = चलित्वा

ल्यप्-जब धातु से पूर्व में उपसर्ग लगा हो जब क्त्वा के स्थान पर ‘ल्यप्’ होता है परन्तु नञ् समास में क्त्वा को ल्यप् नहीं होता है।

(1) ल्यप् प्रत्य भी कर या करके अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘ल्यप्’ का ‘य’ शेष रहता है। यह धातु से पूर्व उपसर्ग लगने पर ही युक्त होता है।
(2) ल्यप् प्रत्यय लगने पर यदि उससे पूर्व ह्रस्व स्वर हो, तो तुक् का आगम होता है अर्थात् ‘य’ से पूर्व ‘त्” जुड़ जाता है।
जैसे प्र + ह +कत्वा -ल्यप् = प्रहत्य
(3) दीर्घ स्वरान्त धातुओं का तुक आगम नहीं होता

तुमुन् प्रत्यय

  1. तुमुन् प्रत्यय-क्रियार्थक क्रियावाचक पद उपपद हो तो धातु से भविष्यत् काल में तुमुन् प्रत्यय होता है। अर्थात् जब एक क्रिया दूसरी क्रिया के लिए की जाती है, तब उस दूसरी क्रिया की धातु में तुमुन प्रत्यय होता है।
    (1) तुमुन प्रत्यय ‘को’ के लिए अर्थ में होता है। तुमुन का तुक शेष रहता है, तुमुन प्रत्ययान्त शब्द अव्वय
    होता है। अतः इसके रूप नहीं चलते हैं।
    (2) तुमुन प्रत्यान्त क्रिया तथा उसके साथ में आने वाली क्रिया का कर्ता एक ही होना चाहिए, भिन्न कर्ता होने पर तुमुन् प्रत्यय नहीं होता है।
    जैसे—कृष्णः कंसं हन्तुं याति
    (3) काल समय और वेला वाचक शब्दों के साथ में आने वाली तुमुन प्रत्यय का प्रयोग होता है।
    (4) शक्, मृज, ज्ञा, इच्छार्थक धातुओं के योग में तुमुन् प्रत्यय का प्रयोग होता है।
    (5)सेट् धातुओं से तुमुन् प्रत्यय होने पर इद (इ) का आगम हो जाता है। तुमुन् प्रत्ययान्त शब्द
    धातु शब्द

अर्च -अर्चितुम्
क्री -क्रेतुम्
खन् -खनितुम्
कम्प कम्पितुम्
गृह् गृहीतुम
ज्ञा ज्ञातुम
दा दातुम
बृ वक्तुम्
श्रु श्रोतुम
क्रीड क्रीडितुम्
खाद खादितुम्
गम् गन्तुम्
कृ कर्तुम
चल् चलितुम्
त्यज् त्यक्तुम्
पठ् पठितुम्
भू भवितुम्
हन् हन्तुम्

शतृ प्रत्य

  1. शतृ प्रत्यय – किसी कार्य को ‘करते हुए’ का अर्थ प्रकट करने के लिए धातुओं में शतृ प्रत्यय जोड़ा जाता है। जुड़ते समय शतृ का केवल ‘अत्’ शब्दांश ही जुड़ता है।
    पठ् + शतृ पठ् +अत् =पठत्
    गम् + शतृ गच्छ+अत् =गच्छत्

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यह प्रत्यय केवल परस्मैपदी धातुओं में ही जोड़ा जाता है। इससे बने कृदन्त शब्द के पुल्लिंग में ‘पठत्’ के समान नपुंसकलिंग में जगत् शब्द के समान तथा स्त्रीलिंग में ई जोड़कर नदी शब्द के समान रूप चलते हैं। को जोड़कर बने कृदन्त शब्द पुल्लिंग कर्ता के विशेषण होते हैं तथा उनके लिंग वचन और के समान ही होते हैं। प्रत्यय जोड़कर बने कुछ शब्द

धातु +शतृ = कृदन्त शब्द
चल्+अत् =चलत्
खेल+अत् =खेलत्
इष्+अत् =इच्छत
नी+अत् =नयत्
गै+अत् =गायत्
कृष+अत् =कर्षत्
सृ+अत् =सरत्
क्रुध्+अत् =क्रुध्यत्

शानच् प्रत्यय

4.शानच् प्रत्यय-यह प्रत्यय भी किसी कार्य को करते हुए के अर्थ को प्रकट करने के लिए उसी प्रकार
धातु के पीछे जोड़ा जाता है, जैसे-शतृ प्रत्यय जोड़ते हैं। अन्तर केवल यह है कि शतृ प्रत्यय केवल परस्मैपद
की धातुओं में जोड़ते हैं और शानच् प्रत्यय केवल आत्मनेपदी धातुओं में जोड़ा जाता है।
धातु में जोड़ते समय शानच् प्रत्यय का ‘मान’ या ‘आन्’आकर जुड़ता है
जैसे-वन्द+ शानच् =वन्द +मान =वन्दमान
शानच् प्रत्यय से बने कृदन्त शब्द
धातु+शानच् =कृदन्त रूप
सेव + मान=सेवमान
लभ् + मान=लाभमान
याच् +मान =याचमान
वृत् +मान =वर्तमान

क्त प्रत्यय

5.क्त प्रत्यय-किसी कार्य के पूर्ण हो जाने के अर्थ को प्रकट करने के लिए क्त प्रत्यय धातु के पीछे
जोड़कर भूतकालिक विशेषण कृदन्त बनाया जाता है। वत् को जोड़ते समय इसका त वर्ण ही जुड़ता है।
भू+क्व=भूतः
गम् + क्त=गतः
पठ्+ क्त= पठित:

वतवतु प्रत्यय

6.वतवतु प्रत्यय-इस प्रत्यय से बनने वाले कृदन्त शब्दों का प्रयोग भी ‘क्त’ प्रत्यय से बनने वाले शब्दों
के समान ही भूतकाल की क्रिया के या भूतकालिक विशेषण के रूप में किया जाता है।

(1) धातु में जोड़े जाते समय क्तवतु प्रत्यय का तवत् शब्दांश जुड़ता है. जैसे-
पठ्+क्तवतु= पठ् तत्= पठवत्
गम् + क्तवतु =गतवान्
(ii) इससे बने कृदन्त शब्दों के रूप पुस्लिंग में मरूत् के समान स्त्रीलिंग में ‘ई’ लगाकर नदी के समान और
नपुंसकलिंग में जगत् शब्द के समान चलते हैं।
(iii) क्रिया के रूप में इससे बने शब्द का प्रयोग होने पर कर्ता प्रथमा में रहता है और उसके लिंग वचन
के अनुसार इस कृदन्त शब्द के लिंग वचन होते हैं, जैसे-
बालकः गृहं गतवान्।
पत्राणि पतितवति ।

तद्धित प्रत्यय ( Taddhit Pratyay)

तद्धित प्रत्यय: जो प्रत्यय धातुओं को छोड़कर अन्य सभी शब्दों( जैसे -सर्वनाम, संज्ञा, विशेषण आदि) के अंत में जोड़ दिया जाता है, तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं
इन्हें तद्धितान्त (तद्धितांत प्रत्यय) प्रत्यय भी कहते हैं

तद्धित प्रत्यय के उदाहरण

मामा + एरा = ममेरा
भूख + आ = भूखा
धर्म + इक = धार्मिक
मेहनत + आना = मेहनताना
पूजा + आरी = पुजारी
मेहनत+ ई = मेहनती
इतिहास + इक = ऐतिहासिक
लुहार+ इन = लुहारिन
दिन + इक = दैनिक
पुजारी+ इन = पुजारिन
मीठा + आस = मिठास
रंग + ईला = रंगीला
भिखारी + इन = भिखारिन
कहानी + कार = कहानीकार
भला + आई = भलाई
जादू + गर = जादूगर
जेठ + आनी = जेठानी
सब्जी + वाली = सब्ज़ीवाली

Bhartendu Harishchandra