जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान (Giv Vigyan Gk)
अरस्तू (Aristotle) जन्तु विज्ञान का पिता
जीव विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम लैमार्क एवं है ट्रेविरेनस ने किया था।
विज्ञान -सामान्य ज्ञान Giv Vigyan Gk विज्ञान सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
जीव विज्ञान की शाखाएँ… Branches of biology (Giv Vigyan Gk)
माइकोलॉजी( mycology) कवको का अध्ययन
फाईकोलॉजी (Phycology) शैवालों का अध्ययन
एन्थोलॉजी (Anthology ) पुष्पों का अध्ययन
पोमोलॉंजी फलों का अध्ययन
डेड्रोलॉजी वृक्ष एवं झाडियों का अध्ययन
औफियोलॉंजी सर्पो का अध्ययन
सॉरोलॉंजी छिपकलियों का अध्ययन
एण्टमोलॉजी-कीटों का अध्ययन
सेरीकल्चर रेशम कीट पालन –
Giv Vigyan Gk
एपीकल्चर मधुमक्खी पालन
पीसीकल्चर मत्स्य पालन
सिल्वीकल्चर काष्ठी पेडो का सवर्घन
आर्निथोलॉजी पक्षियों का अध्ययन
इकथयोलॉजी मछलियों का अध्ययन
न्यूरोलॉजी तंत्रिका तंत्र का अध्ययन
मैमोलॉंजी स्तरधारी जन्तुओं का अध्ययन
इकॉलॉजी पर्यावरण का अध्ययन
डेड्रोकोनोलॉजी वृक्ष आयु का अध्ययन
एन्थ्रोलॉजी मनुष्य की जाति का अध्ययन
एम्ब्रियोलॉजी भ्रूण का अध्ययन
कार्डियोलॉंजी हृदय का अध्ययन
ओर्निथोलॉजी पक्षी अध्ययन
पेलिएण्टोलॉंजी जीवाष्मों का अध्ययन
हार्टिंकल्चर’ उद्यान बागवानी
यूथेनिक्स मनुष्य की आधूनिक पीढी का पालन पोषण द्वारा सुधार का अध्ययन
यूफेनिक्सआनुवांशिक रोगी को दूर कर नई पीढी में सुधार का अध्ययन
युजेनिक्स आनुवांशिक सुधार के द्वारा मानव जीवन में सुधार
एंथोनीबोटोनी आदिवासियों द्वारा जंगल का उपयोग
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान Giv vigyan gk- Biology Question in Hindi
जीवधारियों का वर्गीकरण-द्वि…जगत classification of animal
० अरस्तू द्वारा दो समूहो में…
1. जन्तु समूह Animal Group 2. वनस्पति समूह Plant Group
केरोलस लीनियस द्वारा दो जगतों मे
1. जन्तु जगत 2. पादप जगत ।
केरोलस लीनियस… आधुनिक वर्गीकरण का पिता
वर्गीकरण-पाँच-जगत (प्रतिपादन-व्हीटलर)
प्रोटिस्टा
1 एककोशिय एवं जलीय जीव सम्मिलित किये है
युग्लीना पादप एवं जन्तु के बीच की कडी है।
2 मोनेरा तन्तुमय जीवाणु , सायनोबैक्टीरिया तथा आर्की बैक्टीरिया को रखा गया हैं ।
3 पादप प्रकाश-संश्लेषी उत्पादक ।
जंतु
मछली, सरीसृप, उभयचर, पक्षी तथा समस्त स्तनधारी जीव ।
कवक
कोशिका भित्ति काइटिन नामक जटिल शर्करा की बनी होती हैं । ये परजीवी तथा मृतोपजीवी होते हैं ।
जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति…
कैरोलस लीनियस….वर्गीकरण का पिता
कैरोलस लीनियस ने जीवों को द्विनाम पद्धति में प्रचलित किया हैं । जैसे मानव का वैज्ञानिक नाम होमो सैपियन्स लिन है ।
कुछ जीवधारियाों के वैज्ञानिक नाम
मेढक… रेना टिग्रिना
बिल्ली फेलिस डोमेस्टीका
कूल्ता केनिस फेमिलियरिस
गाय बॉस इंडिकस
मक्खी म्यूस्का डोमेस्टीक
गेंहू ट्रिटियम एस्टीवम
कोशिका विज्ञान
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान
जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार ।
० नामकरण 1839 ई . में पुरकिंजे ने किया।
० सारी जैविक क्रियाएँ जीवद्रव्य के कारण ही निर्भर होती हैं ।
जीवद्रव्य के दो भाग…
1. कोशिका द्रव्य… यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली . के बीच मे रहता है ।
2. केन्द्रक द्रव्य
० कैन्द्रक के अन्दर में स्थित रहता है।
कोशिका
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान
खोज राबर्ट हूक ने 1665 ई. में की। .
कोशिका की अध्ययन…साइटोलॉंजी ।
सबसे लम्बी कोशिका… तंत्रिका-तंत्र ।
सबसे बडी ….. शुतुरमुर्ग केअंडे ।
कोशिका सिद्धांत.…स्लाईडेन और स्वान ।
इसके केन्द्रक की खोज सर्वप्रथम राबर्ट ब्राउन
ने किया। ये दो प्रकार के होते हैं
प्रोकैरियोटिक कोशिका
इसमे हिस्टोन प्रोटीन नहीं होती हैं ।
यूकैरियोटिक कोशिका
प्रोटीन के संयुक्त होने से हिस्टोन बनती हैं ।
अन्तर
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान -Science Samanya Gyan
दोनों में कोशिका भित्ति पायी जाती हैं प्रोकैरियोटिक प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रैट की बनी होती है जब कि यूकैरियोटिक सैल्युलोज की बनी होती हैं ।
प्रोकैरियोटिक में राइबोसोम 70 s प्रकार कै हौते है जब यूकैरियोटिक में 80s प्रकार के होते हैं ।
प्रोकैरियोटिक
श्वसन प्लाज्मा झिल्ली द्वारा होता है , जबकि यूकैरियोटिक में माइटोकॉंड्रिया द्वारा होता है ।
लिंग प्रजनन नहीं पाया जाता है जबकि यूकैरियोटिक में लिंग प्रजनन पाया जाता हैं ।
प्रकाश संश्लेषण थायलेकाइड मे होता है जबकि यूकैरियोटिक में क्लोरोप्लास्ट में होता हैं ।
कोशिका के अंग
कोशिका भित्ति
यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है । यह सैल्यूलोज का बना होता है।
कोशिका झिल्ली
अन्दर एवं बाहर जाने वाले पदार्थों का निर्धारण करता है ।
तारककाय
तारककाय को खोज बोवेरी ने की थी। केवल जन्तु में पाया जाता है।
समसूत्री विभाजन में यह ध्रुव का निर्माण करता है
अन्त: प्रद्रव्य जालिका
इसमे एक ओर केन्द्रक झिल्ली तथा दूसरी ओर कोशिका कला से सम्बन्ध होता है ।
गॉल्जीकाय
कोशिका का . यातायात-प्रबंधक हैं 1
केन्द्रक
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान
खोज राबर्ट ब्राउन
इसे कोशिका का मस्तिष्क कहा जाता है
आनुवांशिकता का वाहक होता है ।
केन्द्रक में धागेनुमा पदार्थ जाल रूप में पाया जाता हैं । इसे या गुणसूत्र कहते हैं ।
गुणसूत्र की संख्या मानव में 23 जोड़ा ,चिम्पाजी में 24 जोड़ा ,बंदर में 21 जोडा
माइटोकॉंड्रिया
खोज आल्टमैन । वेंडा ने नाम दिया ।
यह कोशिका का स्वसन स्थल है
एटीपी का निर्माण करता है
माइटोकॉंड्रिया को कोशिका का शक्ति केंद्र कहा जाता हैं ।
लाइसोसोम
यह बाहरी पदार्थों का भक्षण एवं पाचन करता है। इसलिए आत्महत्या थैली भी कहा जाता हैं ।
राइबोसोम
यह प्रोटीन संश्लेषण कं लिए स्थान प्रदान करती है । प्रोटीन का फेक्टरी कहलाता है।
लवक
केवल पादप कोशिका में पाये जाते हैं । ये तीन प्रकार के होते हैं.…
1. हरित लवक (chloroplast )
पर्णहरित होता है. जिसमें मैग्नीशियम होता है ।
केरोटीन के कारण पत्तियों का रंग पीला होता है
2. अवर्णी लवक (Leucoplast )
जहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता। जैसे जडों में , भूमिगत तनों में
3. वर्णी लवक (Chromoplast )
वर्णी लवक के अन्य उदाहरण… टमाटर मेँ लाइकोपीन, गाजर में केरोटिन, चुकन्दर मेँ बिटाणिन पाया जाता हैं
क्रोमोसोम (गुणसूत्र)
खोज वाल्डेयर
यह केन्द्रक मे होता है
मनुष्य मैं 46 गुणसूत्र होते हैं
प्रकार1. आँटोसोम्स 22 जोड़े होते हैं ।
2. लिंग गुणसूत्र1 जोडी होता हँ ।( x और y )
जीन आनुवांशिकी की सबसे छोटी इकाई
हैं ।
डी एन ए मॉडल 1953 में वॉटसन एबं किक ने दिया 1
डी एन ए -(डीआक्सीराइबोस शर्करा)
पॉलिन्यूबिलयोटाहइड होते है
Polynucleotide Chain दो प्रकार कं होत्ते हैं
1Nucleoside
2 Phosphate
० Nucleoside ये दो प्रकार के होते हैं। 1. Sugar 2. Base क्षार
क्षार
एडीनीन, गुआनीन, थायमिन तथा साइटोसीन उपस्थित रहते है ।
वाटसन एवं किक ने 1953 ई . में DNA की ट्विकुंडलित संरचना मॉडल प्रतिपादन किया
DNA के प्रमुख कार्य
० यह सभी आनुवांशिकी क्रियाओं का संचालन करता हैं। जीन इसकी इकाई हैं
1 यह प्रोटीन का संश्लेषण को नियंत्रित करता है।
RNA (राइबोस शर्करा )
यह प्रोटीन संशलेषण का कार्य करता है।
RNA तीन प्रकार के होते हैं।
1 r -RNA (Ribosomal RNA )
ये राइबोसोम पर लगे रहते हैं और प्रोटीन संस्लेषण में सहायता करता है।
2 t -RNA (Transfer RNA )
अमीनो अम्लों को राइबोसोम पर लाते है जहां पर प्रोटीन बनता है।
3 m -RNA (Messenger RNA )
केन्द्रक के बाहर विभिन्न आदेश लेकर अमीनो अम्लों को चुनने में मदद करता है।
DNA एवं RNA की कुछ मात्रा माईट्रोकॉंड्रिया तथा हरित लवक भी मिलती है।
कोशिका विभाजन
तीन प्रकार के होते हैं।
1 असूत्री विभाजन -अविकसित कोशिकांएं जैसे -जीवाणु ,नील हरित शैवाल ,यीस्ट ,अमीबा में।
2 समसूत्री विभाजन –
यह विभाजन कायिक कोशिका में होता है।
3 अर्धसूत्री विभाजन –
यह विभाजन जनन कोशिकाओं में होता है
यह दो चरणों में होता है।
1 अर्धसूत्री-1 2 अर्धसूत्री-2
अनुवांशिकी
ऑस्ट्रिया के ग्रेगर जोहान। मेण्डल – अनुवांशिकता का जनक मटर में
जेनेटिक्स नाम का सर्वप्रथम प्रयोग -वाटसन।
जॉहन्सेन -जीन शब्द का प्रयोग किया।
मनुष्य में लिंग -निर्धारण
मनुष्य में गुणसूत्र की संख्या 46 होती है।
यदि गुणसूत्र xx मिले तो पैदा होने वाली लिंग स्त्रीलिंग होगी।
यदि पुरुष की y तथा स्त्री की x गुण सूत्र मिलें तो पैदा होने वाली लिंग पुल्लिंग होगी।
परखनली शिशु के मामले में निषेचन परखनली के अंदर होता है।
जैव विकास
समजात अंग
ऐसे अंग जो कार्य के लिए असमान दिखाई पड़ती है। परन्तु उसकी मूल रचना समान होती है उसे समजात अंग
कहते हैं। उदा.चमगादड़ के पंख ,घोड़े की अगली टाँग ,बिल्ली का पंजा
समरूप अंग
ऐसे अंग जो समान कार्य के लिए उपयोग किया जाने के कारण समान दिखाई पड़ती हैं, लेकिन इसकी मूल रचना में भिन्नता होती हैं।
उदाहरण– तितली, पक्षियों तथा चमगादड़ के पंख उडने का कार्य करती हैं, देखने में यह समान लगती हैं लेकिन ये सबकी उत्पत्ति भिन्न-भिन्न ढंग से हुआ हैं।
अवशेषी अंग
उदा- कर्ण-पल्लव त्वचा के बाल, बर्मीफॉर्म एपेण्डिक्स आदि।
मनुष्य में…… लगभग 100 अवशेषी अंग।
वनस्पति विज्ञान (Botany)
थियोफेस्टस…वनस्पति विज्ञान का जनक कहा जाता हैं।
वर्गीकरण
(a) अपुष्पोदभिद पौधे-
इस वर्ग के पौधों में पुष्प तथा बीज नहीं होता हैं। इसे
निम्न समूहों बांटा गया है
थैलोफाइटा(Thalophyta)
यह वनस्पति जगत का सबसे बड़ा समूह है।
शैवाल (Algae)
इसके अध्ययन को फाइकोलॉजी कहते हैं।
लाभ
नॉस्टॉक, एनाबीना, केल्प आदि का प्रयोग खाद बनाने में किया जाता हैं।
औषधि का बनाने में भी क्लोरेला से क्लोरेलिन नामक प्रतिजैविक एवं लेमिनेरिया से टिंचर आयोडिन बनायी जाती हैं।
कवक(fungi)
कवकों के अध्ययन को कवक विज्ञान (माइकोलॉजी) कहा जाता हैं।
हानियाँ एवं रोग
फसलों में होने वाले रोग- धान का ब्लास्ट, मुंगफली का टिक्का रोग, आलू का अंगमारी रोग।
पशुओं में होने वाले रोग-चपका रोग, खुर पका।
मनुष्यों में होने वाले रोग- अस्थमा, ऐथेलिट फुठ, गंजापन, दाद, खुजली।
जीवाणु (Bacteria) –
खोज…..एण्टोनीवान ल्यूवेनहॉक…जीवाणु विज्ञान का पिता कहा जाता हैं।
लुई पाश्चर ने रेबीज के टीके का तथा दूध में पाश्चुराइजेशन की खोज की।
राइजोबियम
यह नाइट्रोजन के स्थरीकरण में मदद करती है
राइजोबियम जीवाणु मटर के जड़ों में उपस्थित रहती हैं। राबर्ट कोच ने कॉलरा ओर तपेदिक के जीवाणुओं की खोज की।
विषाणु
खोज…. इवानोवस्की ने की।
सजीव एवं निर्जीव की कड़ी हैं।
ब्रायोफाइटा(Bryphyta) –
वनस्पति जगत का एम्फीबिया वर्ग
स्फेगनम- नामक मॉस स्वयं के भार से 18 गुना अधिक पानी सोखने की क्षमता रखता हैं।
टेरिडोफाइटा(Pteridophyta)
पौधे का शरीर जड़, तना, शाखा, एवं, पत्तियों में विभेदित रहता है।
(b) पुष्पोदभिद पौधे
पौधों में फूल, फल तथा बीज होते हैं। दो उपवर्ग हैं- नग्न बीजी व आवृतबीजी
नग्न बीजी(Gymnospem)
सिकोया सेम्परविरेंस.. वनस्पति जगत का सबसे ऊँचा पौधा हैं जो इसके अन्तर्गत आता हैं।
सबसे छोटा अनावृतबीजी पौधा जैमिया पिग्मिया
आवृतबीजी(Angiosperm) –
दो वर्ग है- 1. एकबीजपत्री पौधे 2. द्विबीजपत्री
एकबीजपत्री पौधे
जिनके बीज में सिर्फ एक बीजपत्र होते है। उदाहरण:- लहसुन, प्याज, सुपारी, नारियल, खजूर, ताड़
द्विबीजपत्री पौधे
जिनके बीज में दो बीजपत्र होते है।
उदाहरण- भिंडी, गुड़हल, सूरजमुखी, छुईमुई, कत्था, गुलमोहर, गेंदा, कुसुम, मूली, शलजम, सरसों, कपास, जीरा।
पादप आकारिकी
जड़(Root)
मूलांकुर से विकसित होता हैं
जड़ मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं1. मूसला जड़ 2. अपस्थानिक जड़
तना(Stem)
प्रांकुर से निकलकर गुरूत्व से दूर प्रकाश की ओर वृद्धि करता हैं।
1. प्रकन्द- हल्दी, अदरक, केला
2. शल्ककंद- प्याज, लहसून,
3. कंद- आलू
4. धनकंद- कचालू, जिमिकंद
पत्ती(Leaf)
पत्ती हरे रंग की होती हैं, पत्ती क्लोरोफिल, ऑक्सीजन, जल तथा सूर्य की प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की किया करके अपना भोजन बनाते हैं
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया
6CO2 + 6H2O → C6H12O6 + 6O2
पुष्प (flower )
यह पौधे का जनन अंग होता हैं। पुष्प में बाह्य दलपुंज, दलपुंज, पुमंग और जायांग पाये जाते हैं। इनमें से पुमंग नर जननांग तथा जायांग मादा जननांग हैं।
फल का निर्माण
फल का निर्माण अंडाशय से होता हैं।
पादप ऊतक (Plant tissue)
जाइलम यह संवहनी ऊतक है। इसके प्रमुख कार्य
यांत्रिक दृढ़ता प्रदान एवं जल एवं खनिज लवणों का संवहन करता हैं।
फ्लोएम– भोजन को पौधे के अन्य भागों तक पहुंचाने का कार्य करता हैं।
प्रकाश संश्लेषण की क्रिया
6CO2 + 12H2O → C6H12O6 + 6H2O+ 6O2
जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान
क्लोरोफिल और सूर्य प्रकाश की उपस्थिति
क्लोरोफिल पत्तियों के केन्द्रक में मैग्नीशियम का एक परमाणु होता हैं।
प्रकाश-संश्लेषण की दर लाल रंग के में सबसे अधिक एवं बैगनी रंग के प्रकार सबसे कम होती हैं।
पादप हॉर्मोन (Plant Hormones
एथिलीन(Ethylene)
एकमात्र हार्मोन,जो गैसीय रूप पाया जाता है। विलगन को प्रेरित करती हैं।
यह फलों को पकाने में सहायता करता हैं।
ऑक्सिन्स(Auxins)
पत्तियों के विगलन को रोकता हैं। ।
खर-पतवार को नष्ट कर देता हैं।
इसके द्वारा अनिषेक फल प्राप्त किये जाते हैं
फ्लोरिजन्स(Florigens)
– ये पत्ती में बनते हैं, लेकिन फूलों के खिलने में मदद करते हैं।
जिबरेकिलन्स(Gibberellins)
बौने पौधे को लंबा कर देता हैं। यह फूल बनने में मदद करता हैं। यह बीजों की प्रसुप्ति भंग कर उनको अंकुरित होने के लिए मदद करती हैं।
एबसिसिक एसिड( ABA)
वृद्धिरोधक हार्मोन हैं, यह बीजों को सुषुप्तावस्था में रखता हैं।
पत्तियों के विलंगन में भूमिका निभाता हैं।
यह पुष्पन में बाधक होता हैं।
साइटोकाइनिन(Cytokinins)
ऑक्सिन की उपस्थिति में कोशिका-विभाजन और विकास में मदद करता हैं। यह जीर्णता को रोकता हैं।
पादप रोग
वायरस 1. बंकी टॉफ ऑफ बनाना- वायरस-1 द्वारा
2. रंग परिवर्तन-हरिमहीनता.. विषाणुजनित
3. पोटैटो मोजैक….पोटैटो वाइरस-X से
जीवाणुजनित रोग
आलू का शैथिल रोग 2. धान का अंगमारी
गेहूँ का टून्डू रोग 3. साइट्रस कैंकर (नींबू)
3. ब्लैक आर्म ऑफ काटन
तत्वों की कमी से उत्पन्न रोग
जस्ता की कमी से आम एवं बैगन में लिटिल लीफ तथा धान में खैरा रोग होता हैं।
मैंगनीज की कमी से मटर में मार्श रोग होता है
ताँबा की कमी से नींबू में लिटिल लीफ एवं डाईबैक रोग होता हैं।
बोरीन की कमी से ऑवले में निकोसिस रोग होता हैं तथा से कैल्शियम की कमी शलजम में वाटर कोर रोग होता हैं।
पारिस्थितिकी Giv Vigyan Gk
जीव विज्ञान की उस शाखा को जिसके अन्तर्गत जीवधारियों और उनके वातवरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करते हैं, उसे पारिस्थितिकी कहते हैं।
रचना एवं कार्य की दृष्टि से विभिन्न जीवों और वातावरण की मिली-जुली इकाई को पारिस्थितिक तत्र कहते हैं। पारिस्थितिक-तंत्र शब्द का प्रयोग सबसे पहले टेन्सले नामक वैज्ञानिक ने दिया।
एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र या वास-स्थान में निवास करने वाली विभिन्न मसष्टियों को जैविक समुदाय कहते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र के दो घटक होते हैं
A. जैविक घटक B. अजैविक घटक
A. जैविक घटक (Biotic components)- इसे तीन
भागों विभक्त किया जाता हैं- 1. उत्पादक 2.उपभोक्ता 3. अपघटक
उत्पादक- वे घटक जो अपना भोजन स्वयं बनातेहैं, जैसे- हरे पौधे।
2. उपभोक्ता-वे घटक जो उत्पादक द्वारा बनाये गये भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। ये तीन प्रकार
के होते हैं।
a. प्राथमिक उपभोक्ता- इसमें वे जीव आते हैं, जो हरे
पौधों या उनके किसी भाग को खाते हैं। जैसेगाय, भैंस, बकरी आदि।
द्वितियक उपभोक्ता-इसके अन्तर्गत वे जीव आते हैं, जो प्राथमिक उपभोक्ताओं को अपने भोजन के रूप
में प्रयुक्त करते हैं। जैसे-लोमड़ी, भेड़िया, मोर आदि
c. तृतीयक उपभोक्ता- इसके अन्तर्गत वे जीवे आते हैं जो द्वितियक उपभोक्ताओं का अपघटन कर उन्हें भौतिक तत्वों में परिवर्तित कर देते हैं।
B. अजैविक घटक (Abiotic components)
1. कार्बनिक पदार्थ 2. अकार्बनिक पदार्थ 3. जलवायविक कारक
जैसे- जल, प्रकाश, ताप, वायु, आर्द्रता, मृदा एवं खनिज तत्व इत्यादि।
महत्वपूर्ण जानकारियाँ
कोयंबटूर में सांस्कृतिक विज्ञान केन्द्र हैं।
खनन पर्यावरण केन्द्र धनवाद में हैं।
सीपीआर पर्यावरण शिक्षा केन्द्र चेन्नई में हैं।
पर्यावरण शिक्षा केन्द्र अहमदाबाद में हैं।
सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं सांस्कृतिक केन्द्र कोयंबटूर में हैं।
जन्तु ऊतक(Animal)
1. उपकला ऊतक
ये ऊतक जन्तु की बाहरी, भीतरी या स्वतंत्र
सतहों पर पाये जाते हैं।
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2. संयोजी ऊतक
यह शरीर के अन्य ऊतको तथा अंगो को
आपस में जोड़ने का कार्य करता हैं।
3. पेशी ऊतक • तीन प्रकार के होते हैं
i.हृदय पेशी
केवल हृदय की दीवारों में पायी जाती हैं
ii.रेखित पेशी.
जो अंग अपने इच्छानुसार कार्य करते हैं।
iii. आरेखित पेशी- अनैच्छिक रूप से गति करते
हैं- जैसे- आहारनाल, रक्तवाहिनी आदि।
मानव शरीर में मांसपेशीयों की संख्या 639 होती हैं, शरीर की सबसे छोटी मांसपेशी स्टैपिडियस हैं।
शरीर की सबसे बड़ी मांसपेशी ग्लूटियस मैक्सीमस हैं।
मानव शरीर तंत्र
पाचन तंत्र(Digestive system) –
पाचन की निम्न पाँच अवस्थाएँ होती हैं
1. अन्तर्ग्रहण 2. पाचन 3.अवशोषण 4. स्वांगीकरण 5. मल परित्याग
मुख में पाचन- चार प्रकार के दॉत पाये जाते जो भोजन को तोड़ने में मदद करते हैं। टॉयलीन इन्जाइम लार में पाया जाता हैं।
अमाशय (Stomach) में पाचन
पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस का स्त्रावण होता है
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता जो भोजन के जीवाणुओं को नष्ट कर देता हैं।
जठर रस में इन्जाइम होती हैं- पेप्सिन एवं रेनिन। पेप्सिन प्रोटीन को खंडित कर सरल पदार्थों में बदल देता हैं।
रेनिन दूध की धुली हई प्रोटीन केसीनोजेन को ठोस प्रोटीन कैल्शियम पैराकेसीनेट के रूप में बदल देता
पक्वाशय (Duodenum)में पाचन- . पक्वाशय में अग्नाशय से अग्न्याशय रस आकर भोजन में मिलता हैं, इसमे तीन प्रकार के एन्जाइम होते हैं
लाइपेज-इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन तथा फैटी एसिड्स में परिवर्तित करता हैं।
एमाइलेज- मांड को घुलनशील शर्करा में परिवर्तित करता हैं।
टिप्सिन- प्रोटीन एवं पेप्टोन को पॉलीपेप्टाइड्स तथा अमीनो अम्ल में परिवर्तित करता हैं।Giv Vigyan Gk
छोटी आँत में पाचन
यहाँ भोजन की पाचन एवं अवशोषण की पूर्ण किया होती हैं।
एन्जाइम
माल्टोस- यह माल्टोस को ग्लूकोज में बदलता है
सुकोस- सुकोस को ग्लूकोज में बदलता हैं।
लाइपेज- इमल्सीफाइड वसाओं को ग्लिसरीन
लैक्टेस- लैक्टोस को ग्लूकोज में बदलता
रेप्सिन- प्रोटीन तथा पेप्टोन को अमीनो अम्ल
अवशोषण
छोटी आंत की रचना उद्धर्घ के द्वारा होता
4. स्वांगीकरण- अवशोषित भोजन को शरीर के उपयोग में लाये जाने की प्रकिया ।
5. मल-परित्याग- अपच भोजन बड़ी आँत में गुदा
द्वारा बाहर निकाल दिया जात हैं।
पाचन कार्य में भाग लेने वाले प्रमुख अंग
यकृत
यह मानव शरीर की सबसे ग्रंथि है।
अमोनिया को यूरिया में बदलता हैं।
ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित करता हैं।
मृत आर.बी.सी. को नष्ट यकृत द्वारा किया जाता हैं।
यकृत थोड़ी मात्रा में लोहा ताँबा और विटा. को एकत्रित करके रखता हैं।
पित्ताशय(Gall-bladder) –
आकार नाशपाती के समान ।
पित्त का PH मान 7.7 होता हैं।
लैंगरहैंस द्वीपिका
यह अग्नाशय का ही एक भाग होता हैं।
इन्सुलिन(Insulin)
खोज वैटिंग एवं वेस्ट ने की थी।
इन्सुलिन की कमी से मधुमेह (डाइबीटिज)नामक रोग होता हैं। टीप- रूधीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाना मधुमेह कहलाता हैं।
सोमेटोस्टेटिन– यह पॉलीहार्मोन होता हैं, जो स्वागीकरण की अवधि को बढ़ाता हैं।
परिसंचरण तंत्र
खोज विलियम हार्वे ने की थी।
इसके अन्तर्गत हैं- 1. हृदय 2. धमनियाँ 3. शिराएँ 4. रूधिर।
हृदय- लगभग 300 ग्राम होता हैं।
मनुष्य का हृदय चार कोष्ठों में बटा होता हैं।
दायें आलिंद एवं दायें निलय के बीच त्रिवलनी कपाट होता हैं तथा बायें आलिंद एवं बाये निलय के बीच द्विवलनी कपाट होता हैं।
शरीर से हृदय की ओर रक्त ले जाने वाली रक्तवाहिनी शिरा कहलाता हैं। तथा हृदय स शरीर की ओर रक्त ले जाने वाली रक्तवाहिना धमनी कहलाता हैं।
क्रमशः शिरा एवं धमनी में अशुद्ध रक्त अर्थात कार्बन-डाइऑक्साइड युक्त रक्त रहता हैं उसे पल्मोनरी शिरा एवं पल्मोनरी धमनी कहते हैं।
हृदय की मांसपेशीयों रक्त पहँचाने वाली वाहिनी को कोरनरी धमनी कहते हैं इसी में किसी प्रकार की रूकावट होने से हार्ट अटैक आ जाता हैं।
सामान्य अवस्था में मनुष्य एक मिनट में 72 बार घड़कता है
सामान्य मनुष्य का रक्तदाब 120/80 mmhg होता है। इसे मापने के लिए स्फिग्मोमेनोमीटर है।
हृदय की धड़कन को नियंत्रित करने का कार्य थायरॉक्सिन एवं एड्रीनल हार्मोन होता हैं।
उत्सर्जन तंत्र
शरीर से विषैलें अपशिष्ट पदार्थो के निष्कासन को उत्सर्जन कहते हैं।
• प्रमुख उत्सर्जी अंग- 1. वृक्क 2. त्वचा 3. यकृत 4. फेफड़ा।
वृक्क
140 ग्राम होता हैं, इसके दो भाग होते हैं बाहरी भाग को कोर्टेस तथा भीतरी भाग को मेडूला कहते हैं।
प्रत्येक वृक्क वृक्क-नालिकाओं से मिलकर बना हैं, जिन्हें नेफान कहते हैं। नेफान एक प्यालेनुमा आकार होता हैं तथा छन्ने की भांति करता हैं।
वृक्क में प्रति मीनट औसतन 125 मिली. बनता
मूत्र(PH – 6) का रंग यूरोकोम के कारण पीला होता हैं, हीमोग्लोबिन के विखंडन से बनता हैं।
त्वचा
तैलीय ग्रन्थि सीबम पसीने का स्त्रवण करती हैं।
यकृत
यकृत कोशिकाएँ आवश्यकता से अधिक अमीनो अम्लों तथा रूधिर की अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करके उत्सर्जन में भूमिका निभाती हैं।
फेफड़े
कार्बनडाइऑक्साइड और जलवाष्प का उत्सर्जन करता है।
तंत्रिका तंत्र
तंत्रिका तंत्र ही वातावरणीय परिवर्तनो के द्वारा सुचनाएँ संवेदी अंगो से प्राप्त करके विद्युत आवेशो के रूप में इनका द्रुत गति से प्रसारण करती हैं।
तंत्र तीन भागो में विभाजित होता हैं
केद्रीय तंत्रिका तंत्रिका
– 1 मस्तिष्क 2. मेरूरज्जू मस्तिष्क- 1. अग्र 2. मध्य 3. पश्च मस्तिष्क ।
अग्र मस्तिष्क के तीन भाग हैं- 1. सेरीब्रम 2. डाइएनसिफेलॉन 3. घ्राण पिण्ड।
इसके अन्तर्गत डाइएनसिफेलॉन के दो भाग हैं1. थैलमस 2. हाइपोथैलमस।
मध्य मस्तिष्क – 1. कॉरपोरा 2. सेरीब्रल।
पश्च मस्तिष्क के तीन भाग- 1. सेरीबेलम 2. मेड्यूला ऑब्लाँगेटा 3. पौन्स।
मस्तिष्क का वजन 1400 ग्राम होता हैं।
मस्तिष्क का सबसे विकसित भाग- सेरिब्रम हैं। सेरिब्रम को बुद्धिमत्ता, स्मृति, इच्छा-शक्ति, ऐच्छिक गतियों, एवं चिन्तन का केन्द्र हैं।
हाइपोथैलमस के कार्य
भूख, प्यास, ताप नियंत्रण, प्यार, घृणा आदि के केन्द्र होती हैं। जल के उपापचय, पसीना, गुस्सा, खुशी आदि इसी के द्वारा ही नियंत्रण होता हैं।
थैलमस के कार्य- यह दर्द, ठण्डा तथा गरम को पहचानने का कार्य करता हैं।
टीप:- Elecroencephalograph के द्वारा मरिष्क के कार्यो का पता लगाया जाता हैं।
दृष्टि एवं श्रवण शक्ति का नियंत्रण- कारपोरा क्वार्डिजेमिना।
शरीर का संतुलन एवं ऐच्छिक पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण का कार्य- सेरीबेलम।
मस्तिष्क के सबसे पिछे का भाग- मेड्यूला ऑब्लागेटा।
मेरूरज्जु- यह प्रतिवर्ती कियाओं का नियंत्रण समन्वय करना। इसका पता सर्वप्रथम मार्शल हाल नामक वैज्ञानिक ने लगाय था।
परिधीय तंत्रिका तंत्र- 12 जोड़ी कपाल-तंत्रिकाएँ तथा 31 जोड़ी मेरूरज्जु तंत्रिकाएँ पायी जाती हैं।
स्वायत्तता तंत्रिका- यह शरीर के सभी आंतरिक अंगो को व रक्त वाहिनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता हैं।
नोट-ऑखों की पलकों का झपकना एक अनैच्छिक किया है। औसतन हर 6 सेकण्ड में एक बार पलक झपकती है । ऑसू का निकलना एक प्रतिवर्ती किया है
कंकाल तंत्र
दो भाग – 1. अक्षीय कंकाल 2. उपांगीय
अक्षीय कंकाल- खोपड़ी, कशेरूक दण्ड, तथा छाती की अस्थियाँ आती हैं
खोपड़ी
29 अस्थियाँ होती हैं। इसमें से 8 अस्थियाँ संयुक्त रूप से मनुष्य के मस्तिष्क को सुरक्षित रखती हैं।
इनके अतिरिक्त 14 अस्थियाँ चेहरे तथा 6 अस्थियाँ कान ।
कशेरूक दण्डमनुष्य का कशेरूक दण्ड 33 कशेरूकाओं से बनी होती हैं। कशेररूक दण्ड के काय यह मनुष्य को खड़े होकर चलने, तथा सिर को साधे रखता हैं।
कंकाल तंत्र के कार्य
मनुष्य के शरीर में कुल 206 . तथा बाल्यावस्था में 208 हड्डियाँ होती हैं नोट….. गर्भ मे जब बच्चे रहते हैं, तो 300
हड्डी ।
जनन ग्रंथि
1. अंडाशय- इसके द्वारा स्त्राव होने वाले
हार्मोन
एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन, रिलैक्सिन
2. वृषण- इससे निकलने वाले हार्मोन को टेस्टोस्टीरॉन कहते हैं।
श्वसन-तंत्र
नासामार्ग, ग्रसनी लैरिंक्स या स्वरयंत्र, ट्रैकिया, ब्रोंकाई, ब्रोकियोल्स तथा फेफड़े । नासामार्गयह जीवाणु एवं अन्य कीटाणुओं को शरीर के अंदर जाने से रोकती हैं।
ट्रैकियाट्रैकिया की प्रमुख शाखाओं को प्राथमिक ब्रों कियोल कहते हैं।
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ग्रसनी
यह नासा के गुहा के ठीक पीछे होता हैं। लैरिंक्स या स्वर यंत्र
श्वसन मार्ग को वह भाग जो ग्रसनी को टेकिया जोड़ता है, लैरिंक्स या स्वर यंत्र कहलाता हैं।
फेफड़ा
दायाँ फेफड़ा बायें फेफड़े की तुलना में बड़ा होता श्वसन की प्रकिया को चार भागों में बाँटा सकता हैं-
1. बाह्य श्वसन 2. गैसों का परिवहन 3. आंतरिक श्सवन 4. कोशिकीय श्वसन।
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बाह्य श्वसन दो प्रकार के होते हैं
1. श्वासोच्छवास श्वासोच्छवास में ली गयी वायु 78.090/नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन तथा 0.03% कार्बानडाइऑक्साइड। तथा बाहर निकाली गइ वायु 78.09% नाइटोजन17% ऑक्सीजन तथा 4% कार्बनडाइऑक्साइड।
2. गैसों का विनिमय – गैस का विनिमय फेफड़े के अंदर ही होता हैं।
2. गैसों का परिवहन- कार्बनडाइऑक्साइड का परिवहन कोशिकाओं से फेफड़े तक हीमोग्लोबिन के द्वारा केवल 10 से 20% तक ही हो पाता हैं। ऑक्सीजन का परिवहन रूधिर में पाये जाने वाले लाल-वर्णक हीमोग्लोबिन के द्वारा होता हैं। बाइ-कार्बोनिक के रूप में कार्बनडाइक्साइड का लगभग 70% भाग परिवहन होता हैं।
आंतरिक श्वसन
शरीर के अन्दर रूधिर एवं ऊतक द्रव्य के बीच गैसीय विनिमय होता हैं, उसे आन्तरिक श्वसन कहते
हैं।
कोशिकीय श्वसन
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खाद्य पदार्थो के पाचन के फलस्वरूप प्राप्त
ग्लूकोज का कोशिका में ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकरण किया जाता हैं। इस किया का कोशिकीय श्वसन कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं
1. अनॉक्सी श्वसन ये ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती हैं। इसे किण्वन भी कहते हैं। यह प्रायः यीस्ट एवं जीवाण में पाया जाता है अंत में पाइरूविक अम्ल बनता है।
2. ऑक्सी श्वसनऑक्सीजन की उपस्थिति में होता हैं। इसमें कार्बनडाइऑक्साइड एवं जल का निमा होता हैं। यह दो भागों में सम्पन्न होती है1. ग्लोइकोलिसिस 2. क्रेब्स चक। Giv Vigyan Gk जीव विज्ञान -सामान्य ज्ञान GK
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