जनजातीय लोक कला (Lok Kala chattishgarh)

जनजातीय लोक कला– प्रागैतिहासिक युग की गुफाओं में आदि मानव द्वारा बनाए हुए रेखाचित्र
ही लोकचित्रों का उद्भव और विकास का माध्यम है। छत्तीसगढ़ की
लोकचित्र कला एक प्रकार से महिलाओं की कला है। विभिन्न अवसरों
पर लोक चित्रकारी का वर्णन निम्नलिखित है-
(1) सवनाही-सावन महीने के अमावस्या के दिन छत्तीसगढ़ी महिलाएँ घर के
मुख द्वार पर दीवारों में गोबर से सवनाही चित्र बनाती हैं। ऐसी मान्यता है कि
इस चित्र के अंकन से घर में किसी प्रकार की बाहरी बाधा नहीं आती है।
(2) गोबर चित्रकारी-दीपावली के समय गोवर्धन पूजा में घर के धान की कोढी
में चित्रकारी की जाती है। इसमें अन्न लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस चित्रकारी
को समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
(3) हरितालिका-हरितालिका में शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। हरितालिका
चित्र त्योहार में बनाया जाता है।
(4) चौक-विभिन्न शुभ अवसरों एवं त्योहारों पर चौक पूजने की परम्परा छत्तीसगढ़
में प्रचलित है। गोबर की लिपाई के ऊपर भीगे चावल के घोल से चौक पूरा जाता है।
(5) आठे कन्हैया-छत्तीसगढ़ की स्त्रियाँ आठे कन्हैया (आठ पुतरियाँ) बनाकर व्रत
पूजा करती हैं। आठे कन्हैया मिट्टी के रंग से भित्ति पर बनाया जाने वाला कथनात्मक
चित्रण है। कृष्ण जन्माष्टमी पर बनाये जाने वाले इस चित्र में कृष्ण की जन्म कथा का
चित्रण रहता है।
(6) बालपुर चित्रकला-छत्तीसगढ़ में बालपुर (ओडिशा) से चितेर जाति के लोग
आकर बसे हैं। ये लोग पेशेवर कलाकार हैं। यही लोग महानदी के किनारे बसे गाँव
में विभिन्न पौराणिक चित्र दीवारों पर चित्र कथा के रूप में चित्रित करते हैं। इसे ही
बालपुर लोकचित्र शैली के नाम से जाना जाता है।
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