भा.द.सं. की धारा 211 क्या है IPC Section 211 in Hindi आरोप का प्रारूप,परिभाषा क्या है
‘आरोप’ की परिभाषा कीजिए तथा बताइये कि उनमें किन-किन बातों का उल्लेख होना चाहिये?
Form of Charge– IPC Section 211 in Hindi–भा.द.सं. की धारा 211 क्या है
आरोप (Charge)-आरोप वह लिखित कथन है जो किसी व्यक्ति पर किसी अपराध के यथार्थ निरूपण के लिये लगाया जाता है या कारागार में बन्द किसी व्यक्ति को उन अपराधों के बारे में सूचित करना है जिनको अभियोजन सिद्ध करना चाहता है।
दण्ड प्रक्रिया की धारा 2 (ख) में आरोप शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है बल्कि सिर्फ इतना ही बताया गया है कि जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हों तो कोई-सा भी शीर्षक हो सकता है।
अत: आरोप किसी विशिष्ट अभियोग का संक्षिप्त सूत्र है, जो किसी व्यक्ति के विरुद्ध लगाया जाता है, जिसकी प्रकृति को कार्यवाही की पहली अवस्था में ही जानने का अधिकारी है।
Charge अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता जिसके आरोप के आधारों के साथ-साथ समय, स्थान, व्यक्ति एवं वस्तु का भी उल्लेख रहता है। जिसके बारे में अपराध किया गया है।
आरोप का मुख्य उद्देश्य अपराधी को इस बात की जानकारी देना है कि उसने क्या-क्या अपराध किये हैं जिससे कि वह परीक्षण के समय उनसे बचाव के लिए अपने स्पष्टीकरण और प्रमाण दे सके।
Contents of charge–आरोप की अन्तर्वस्तु
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 211 में इस सम्बन्ध में यह व्यवस्था की गई है कि आरोप में निम्नलिखित विवरण होने चाहिये-
(1) जो अपराध अभियुक्त पर लगाया गया है उसका विशिष्ट नाम और परिभाषा ।[धारा 211 (1)]
(2) यदि किसी कानून के अनुसार उस अभियोग का, जो उस व्यक्ति पर लगाया गया है. कोई और नाम हो तो उस नाम का उल्लेख। [धारा 211 (2)]
(3) यदि उस कानून में, जिनके अनुसार अभियोग उत्पन्न हुआ है, उसके लिए कोई विशिष्ट नाम (specific name) नहीं है तो अपराध की उतनी-परिभाषा जिससे कि अभियुक्त को उस मामले के बारे में पता चल जाये जिसके लिए उसे आरोपित किया गया है।[धारा 211(3) ]
(4) वह विधि और उसकी धारा जिसके अनुसार आरोप बनता है।[धारा 211 (4)]
(5) यह तथ्य कि आरोप लगा दिया है इस कथन के समान है कि विधिद्वारा आरोपित प्रत्येक शर्त जिसके लिए आरोपित अपराध बनता है वह विशिष्ट मामलों में पूरी हो गई है।[धारा 211 (5)]
(6) आरोप को न्यायालय की आशा में लेखबद्ध किया जायेगा। [धारा 211 (6)]
(7) यदि अभियुक्त अपने किसी पूर्ववर्ती अपराध को दोष सिद्ध के कारण बढ़े हुए दण्ड का भागी है, वहाँ ऐसे पूर्ववर्ती दोषसिद्ध के तथ्य, तिथि और स्थान का उल्लेख होगा। [धारा 211 (7)]
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