सिख धर्म में प्रसिद्ध –Guru Nanak Jayanti in Hindi-गुरु नानक जयंती व जीवन परिचय (Biography) इस लेख में बताने का प्रयास किया गया है उम्मीद है आपको यह जरूर पसंद आएगा
गुरु नानक देव की जयंती -Guru Nanak Jayanti in Hindi
गुरु नानक (Guru Nanak )देव का जन्म रावी नदी के तटवर्ती गांव तलवंडी में संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ। कुछ विद्वानों के मत से वैशाख सुदी तृतीया को उनका जन्म हुआ। तदनुसार यह काल 15 अप्रेल 1469 ई. हुआ। नानक देव के सम्मान में इस स्थान को ‘ननकाना साहब’ भी कहा जाता है। यह स्थान या जगह वर्तमान समय में लाहौर से दक्षिण-पश्चिम में लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है।
जीवन परिचय Guru Nanak Biography
नानक देव(Guru Nanak ) के पिता का नाम मेहता कल्याणदास था। लेकिन वे मेहता कालू या कालू मेहता के नाम से प्रसिद्ध थे। जाति से वेदी वंशीय क्षत्रिय (खत्री) थे। माता का नाम तृप्ता था।
कालू मेहता तलवंडी के जमींदार रायबुलार के तहसीलदार थे। जब नानक देव का जन्म हुआ तब मेहता की नौकरानी यह सुखद समाचार देने उनके पास गई और बोली कि ऐसा बालक मैंने कभी नहीं देखा। इस बालक के जन्म के समय कमरे में चारों ओर अलौकिक प्रकाश फैल गया। बालक के मुखमंडल पर दिव्य मुस्कान है। शीश के चारों ओर आभावृत्त है। यह अलौकिक जान पड़ता है।
नानक का बचपन
नौकरानी से यह सुखद समाचार पाकर मेहता घर पहुंचे और कुल ज्योतिषी पं. हरदयाल को बालक की जन्म कुंडली बनवाने के लिये बुलवाया।
कुल ज्योतिषी पं. हरदयाल ने जब बालक को देखा तो देखते ही रह गए। वे मन में विचार करने लगे कि यह बालक बड़ा विलक्षण है। यह अपने तेज से लोगों को सुख पहुँचाएगा। धर्मावलंबियों को एक सूत्र में बांधेगा। सबमें प्रेमभाव जाग्रत करेगा और मानव प्रेम का पाठ लोगों को पढ़ायेगा। यह सोच हरदयाल ने बालक को शीश झुकाकर नमन किया।
फिर उन्होंने मेहता को बधाई देते हुए कहा कि तू भाग्यवान है। तेरा यह पुत्र बादशाह बनेगा। इसका यश दूर-दूर तक फैलेगा। ज्योतिषी की बात सुनकर माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।
गुरु नानक जी की शिक्षा
(Guru Nanak ) गुरुनानकजी के पिता ने उन्हें पढाने-लिखाने का बड़ा प्रयत्न किया। पर वह सांसारिक विद्या पढ़ नहीं सके। उनका मन सदा ईश्वर के प्रेम में लीन रहता था। उन्होंने एक बार स्वयं कहा था-मैं एक ऐसी विद्या पढ़ना चाहता हूँ जिससे मैं अपने आप को जान सकूं नानक देवजी(Guru Nanak ) के पिता ने उन्हें काम काज में लगाने का प्रयत्न किया, पर किसी भी काम-काज में उनका मन लग नहीं सका। उनकी बहन नानकी ने उन्हें अपने घर बुला लिया।
गुरुनानक व अध्यात्म
बहन के पास रहकर बालक नानक ने कई कार्य किए पर उन पर आध्यात्म का रंग दिन दिन गहरा होता गया। मोदी की दुकान पर बैठे तो “तेरा है तेरा है” कहकर तौलते ही चले गए। सौदा खरीदने गये तो साधुओं को ही भोजन करा आये। खेतों की रखवाली पर गये तो चिड़ियों को कौन उड़ावे ?
‘रामजी की खेती और रामजी की चिड़िया’ फिर उन्हें क्यों न खाने दें।
पशु चराने गए तो खेत में से उनको हटाया नहीं।
इस प्रकार उनके रंग ढंग देखकर पिता ने पुत्र का विवाह कर देना उचित समझा।
बटाला के मूलचंद खत्री की पुत्री सुलखनी से उनका विवाह कर दिया। ईश्वर ने उन्हें दो पुत्र रत्न प्रदान किये।
बड़े का नाम श्री चन्द तथा छोटे का नाम लक्ष्मीचंद रखा।
पिता ने सोचा कि नानक अब पूर्ण गृहस्थ हो गया है। परन्तु उन्होंने गृहस्थ
जीवन छोड़ने का संकल्प कर लिया और सेवक मरदाना को साथ लेकर घर छोड़ दिया।
साधु वेश धारण कर लिया।
गुरुनानक(Guru Nanak ) श्री लंका, मक्का, मदीना, बगदाद और बर्मा में धूम-धाम कर 40 वर्ष तक
धर्मोपदेश देते रहे।
गुरु नानक जी की शिक्षाएं- Guru Nanak Jayanti in Hindi
दिल्ली से नानक हरिद्वार गये। वहां अनेक यात्री पूर्व की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों के लिये सूर्य को पानी दे रहे थे। यह देखकर गुरुजी ने पश्चिम की ओर पानी देना शुरू कर दिया। लोगों ने उनसे पूछा “आप पश्चिम की ओर पानी क्यों दे रहे हैं ?
गुरुजी ने उत्तर दिया “लाहौर के पास मेरे खेत है, मैं उनको पानी दे रहा हूँ।” लोगों का दूसरा प्रश्न था, “खेतों में पानी कैसे पहुंच सकता है ?” उनका जवाब था “जब आपका पानी पूर्वजों तक परलोक पहुँच सकता है तो लाहौर तो यहाँ से बहुत पास है ।
गुरु साहब नीचे वस्त्र धारण कर एक हाथ में डंडा लेकर दूसरे हाथ में लोटा, बगल पुस्तक और कन्धे पर मुसल्ला रख कर मक्का की यात्रा पर गये। वहाँ एक मस्जिद में ठहरे । रात को सोते समय अपने पैर मेहराब की तरफ कर लिये। एक भाई उनसे
लगा महराब की तरफ पैर करके सोना कुफ्र है, क्योंकि इस ओर परमात्मा का घर है
. गुरुनानक ने कहा(Guru Nanak Quotes ) “भाई, जिस तरफ परमात्मा-नहीं रहता, उस तरफ मेरी टाँगें कर दो।” ऐसा ज्ञानप्रद उत्तर सुनकर लोग हैरान व आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने आदर सहित उनसे कई प्रश्न पूछ कर अपनी शंकाओं का समाधान किया।
नानक के धार्मिक सदभाव
एक व्यक्ति ने सवाल पूछा-“हिन्दू बड़ा या मुसलमान?” उन्होंने कहा(Guru Nanak Quotes ) सत्कर्मों के बिना न तो हिन्दू सच्चा हिन्दू है और न ही मुसलमान सच्चा मुसलमान। लोग अपनी अज्ञानता की वजह से एक दूसरे से नफरत करते हैं। वे नहीं जानते कि राम और रहीम एक ही रब के नाम है।”
उन्होंने 18 वर्ष रावी के किनारे करतारपुरा में गुजारे। यहाँ उन्होंने एक गृहस्थ के रूप में एक मार्गदर्शक का जीवन व्यतीत किया। इस समय उन्होंने दो मुख्य कार्य किये।
एक तो लंगर लगाना। यह उनकी समानता, नम्रता और भ्रातृत्व भाव का प्रतीक था। इसमें बिना किसी जाति-पाँति, अमीर-गरीब के भेद के सब साथ बैठकर भोजन करते हैं।
नानक जी के प्रमुख कार्य
उनका दूसरा कार्य सेवा था। सेवा में, संगत में विभिन्न प्रकार के कार्य यथा बर्तन साफ करना आटा पीसना, भोजन बनाना, पानी लाना आदि किये जाते थे। अन्त समय में उन्होंने लहना को अंगद के नाम से अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
आश्विन बदी दशमी संवत् 1596,7 सितम्बर 1539 के दिन उन्होंने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया, लेकिन अपने कहानी, उपदेशों से जनता को मालामाल कर गये।
गुरुनानक देव(Guru Nanak ) ने जहाँ अध्यात्म की चरम अनुभूतियों को एक आम आदमी की भाषा में पिरोया, वहीं मध्ययुग से पूर्व संभवत: वे अकेले ऐसे धर्मगुरु थे जिन्होंने उस समय के राजनीतिक आतंकवाद, अत्याचार, हिंसा और दमन के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया। वे समाज धर्म और तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था के प्रति पूरी तरह से जागरूक रहे। इसीलिए जहां भी उन्हें कहने और करने में भेद नजर आया, उसे बिना किसी भय के उन्होंने मुखर रूप से अभिव्यक्त किया। इसी कारण नानक को जगतारक सद्गुरु के रूप में विश्व ने स्वीकार किया। सतिगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जगि चानण होया। उनके भजन, जपुजी आदि कृतियों का गान हो। जानकार व्यक्ति के द्वारा सिख सम्प्रदाय के सिद्धांतों और नानक के उपदेशों से छात्रों को परिचित कराया जाय।
नानक जी के सुविचार Guru Nanak Quotes in Hindi
उस गुरु की कृपा से, जो एक ही है, जिसका नाम सत्य अर्थात जो सदा एक
रस रहता है, जो सबका सृष्टा है, जो समर्थ पुरूष है, जिसे किसी का भी भय नहीं, न
किसी से जिसका बैर है, जिसका अस्तित्व काल की पहुँच से परे है. जिसका जन्म नहीं
है, जो स्वयंभू है।
नानक
(यह सिख धर्म का मूल मंत्र है।)
गुरु नानक देव जी की कहानी
गुरु नानकदेव जी बचपन से ही दयालु प्रकृति के थे ।
एक बार इनके पिता जी ने इन्हें कुछ रुपए दिए और कहा कि पास वाली मंडी से कुछ सौदा ले आओ । जब नानकदेव जी जाने लगे तो उनके पिता जी ने समझाया, “बेटा,समझ-बूझकर सौदा करना।”
नानकदेव जी इनकी बात सुनकर चल दिए । रास्ते में कुछ साधु मिले । संतों ने बालक नानकदेव को रोककर पूछा “बेटा ! तुम किधर जा रहे हो?”
नानकदेव जी ने उत्तर दिया, “महात्मा जी, मैं तो बाजार से सच्चा और अच्छी सौदा खरीदने जा रहा हूँ।”
संतों ने उन्हें समझाया, बेटा, “सबसे सच्ची और अच्छी सौदा तो भूखों को भोजन देने में है । यह पुण्य का काम है। हम लोग भूखे हैं हमें भोजन कराओ।”
बालक नानक के मन में साधु-संतों की बात जम गई ।
उन्होंने उन पैसों से आटा-दाल खरीदकर संतों को दे दिया । घर आकर उन्होंने अपने पिता जी को घटना बता दी ।
गुरु नानक देव जी की 2 री कहानी Guru Nanak Jayanti
गुरु नानक देव जी ने अपने शिष्य बाला और मरदाना के साथ भारत के प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा की। फिर वे देश के बाहर मक्का, मदीना और बगदाद गए ।
कहा जाता है कि वे एक रात काबा की ओर पैर करके सो गए थे। जब वहाँ के एक अधिकारी ने उन्हें इस तरह सोते देखा तो वह उन पर बहुत बिगड़ा ।
उन्हें जगाते हुए बोला, “मूर्ख, तू कौन है जो खुदा के घर की तरफ इस तरह पैर फैलाये हुए पसरा है।” गुरु नानक जी ने विनम्र शब्दों मेंकहा,
“बाबा, मैं एक थका-हारा मुसाफिर हूँ । मुझसे गलती हुई है। अब आप मेहरबानी करके मेरे पैर उधर कर दें जिधर खुदा का घर न हो।”
उस अधिकारी ने नानक देव जी के पैर पकड़कर दूसरी ओर कर दिए । जिस ओर नानकदेव के पैर घूमे उस ओर ही उसे काबा दिखाई पड़ा ।
अंत में वह थककर रह गया और समझ गया कि वे अवश्य ही कोई सिद्ध पुरुष हैं ।
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