Galileo Galilei-गैलीलियो गैलिली एक महान अविष्कारक

आज हम जानेगे एक महान अविष्कारक Galileo Galilei-गैलीलियो गैलिली के जीवन परिचय  ,योगदान ,सिद्धांत ,उनके महत्वपूर्ण खोज जिनसे मानव इतिहास में नवीनतम ऊँचाइयों को छुआ ही

गैलीलियो गैलिली (Galileo Galilei : 1564-1642)

पंद्रहवी शताब्दी में लगभग 400 वर्ष पूर्व, यूरोप के इटली देश में पिसा नगर(Pisa Town) के कैथेड्रल चर्च में बैठा एक नवजवान छात्र , छत से झूलते हुए लैम्प(Lamp) को लगातार टकटकी लगाकर निहार रहा था। न जाने कई हजार व्यक्तियों ने लैम्प को इस प्रकार झूलते देखा होगा। परन्तु यह छात्र ने, जिसका नाम गैलीलियो गैलिली (Galileo Galilei )था,

उसने बड़े ही ध्यानपूर्वक देखा कि लैम्प का झूलना धीरे-धीरे स्वतः बन्द हो जाता है, किन्तु हर बार झूलने में लगा समय कम या अधिक नहीं होता। उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण मस्तिष्क ने तुरंत इसकी अवलोकन किया । Galileo Galilei  अपनी नाड़ी पर अँगुली रखकर, उसने प्रत्येक बार झूलने में लगा समय ज्ञात किया और उसे स्थिर पाया। यद्यपि तब वह केवल सत्रह वर्ष का ही था, परन्तु उसे तुरन्त ज्ञात हो गया कि उसने पैण्डुलम (Pendulum) का नियम खोज निकाला है।

उसने देखा कि जिस प्रकार नाड़ी-स्पंदन से पैण्डुलम का समय ज्ञात किया जा सकता है, उसी प्रकार पैण्डुलम के दोलन द्वारा नाड़ी-स्पंदन का समय भी ज्ञात किया जा सकता है। यह बात डॉक्टरों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई और गैलीलियो अतिशीघ्र प्रसिद्ध हो गये। यह दोलन का सिद्धांत था

 जीवन परिचय 

गैलीलियो असाधारण प्रतिभा के विद्यार्थी थे। उनका जन्म 15 फरवरी, सन 1564 को पिसा (Pisa) में हुआ था। बाल्यावस्था में ही वे अपनी विज्ञान की प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके थे। उनके पिता एक दक्ष संगीतज्ञ एवं गणितज्ञ थे।

उनके पिता का ऐसा विश्वास था कि गैलीलियो को विज्ञान एवं गणित से कोई अधिक लाभ नहीं होगा और इसलिये वे गैलीलियो को कपड़े का व्यापार कराना चाहते थे। परन्तु गैलीलियो को व्यापार में न तो कोई रुचि थी और न ही उसके लिए योग्यता। अतः उन्होने अपने पिता को पिसा विश्वविद्यालय में डॉक्टरी एवं दर्शन-शास्त्र का अध्ययन कराने हेतु राजी कर लिया।

एक सच्चे वैज्ञानिक की भाँति सत्रह वर्षीय गैलीलियो विश्वविद्यालय में पढ़ाये गये प्रत्येक सिद्धांत की प्रायोगिक जाँच करना चाहते थे। उन्हें प्राचीन समय से पढ़ाये जाने वाले ग्रीक-दर्शन से संतोष नहीं होता था।

जब वे उन्नीस वर्ष के थे, तब एक बार उन्हें गणित के प्रसिद्ध शिक्षक का व्याख्यान सुनने का संयोग हुआ। चूँकि वे गणित के विद्यार्थी नहीं थे, इसीलिये उन्होंने गुप्त रूप से गणित शिक्षक के व्याख्यान सुने । उनका रुझान गणित की ओर बढ़ता गया। गणित शिक्षक ने उनकी मदद की और अत्यल्प समय में वे प्रतिभाशाली गणितज्ञ माने जाने लगे।एक वर्ष बाद ही उन्हें पिसा विश्वविद्यालय में गणित के अध्यापक के पद पर नियुक्त कर दिया गया।

ग्रीक दर्शनशास्त्रियों का ऐसा मत था कि यदि उपर से कोई 100 पौंड वजन का पत्थर और 1 पौंड वजन के पत्थर को छोड़ा जाय तो वजनी पत्थर 1 पौंड वजन के पत्थर की अपेक्षा सौ गुना अधिक शीघ्रता से गिरता है। गैलीलियो ने इसे असत्य प्रमाणित कर दिखाया। उन्होंने समान आकार की विभिन्न वजन वाली दो गेंद पिसा की मीनार से गिराकर दिखा दिया कि वे एक समान वेगवृद्धि से गिरती हैं।

खगोलीय दूरबीन की खोज 

दूरदर्शी (Telescope) गैलीलियो की ही देन है। सन् 1608 ई. में लीपसे नामक एक चश्मा बनाने वाले व्यक्ति को एक विचित्र अनुभव हुआ। उसने देखा कि कुछ दूर रखे दो लेंसों की सहायता से दूर की चीजें भी स्पष्ट दिखाई पड़ सकती हैं। सन् 1609 ई. में गैलीलियो ने इस खोज से लाभ उठाया।

उन्होंने सोचा कि क्या इसकी सहायता से तारों का निरीक्षण नहीं कर सकते। आर्गन बाजे की नली और चश्मे के काँच उन्होने इकट्ठे किये। काँचों को उन्होंने नली में बैठाया और यही बैडोल यंत्र गेलिस्कोप कहलाया। इसकी सहायता से गैलीलियो ने अनेक तारों को देखा, जिन्हें पहले किसी ने नहीं देखा था।

सप्तर्षि के समूह में उन्हें 36 तारे दिखे। आकाशगंगा की ओर जब उन्होने इस बैडोल यंत्र को घुमाया, तो उन्हें असंख्य तारे दिखे, चन्द्रमा को देखकर तो वे दंग रह गये। खगोलीय अध्ययन में उनके दूरदर्शी का अत्यन्त महत्वपूर्ण उपयोग हुआ।

इसी की सहायता से उन्होने बृहस्पति ग्रह के चार उपग्रहों की खोज की, शुक्र की कलाएँ देखीं । सूर्य के धब्बों और चन्द्रमा पर पर्वतों का अवलोकन प्रथम बार गैलीलियो ने ही किया था।

सिद्धांत 

गैलीलियो  गणितज्ञ, खगोल विज्ञानी और भौतिक शास्त्र के धुरंधर विद्वान थे। आधुनिक वैज्ञानिक इन्हें भौतिक शास्त्र का आदिपुरुष मानते हैं। वैज्ञानिक कथनों की जाँच प्रयोग द्वारा करना गैलीलियो ने ही सिखाया। उनका कहना था कि वैज्ञानिक कथनों को, चाहे वे किसी भी के क्यों न हों, प्रयोग की कसौटी पर कसना चाहिये और फिर जो निष्कर्ष निकले, उसे मान लेना चाहिये।
गैलीलियो ने ही, इस धर्मान्ध धारणा को, कि पृथ्वी स्थिर है, असत्य बताया। उन्होंने कोपरनिकस के इस मत का समर्थन किया कि सूर्य स्थिर है औरपृथ्वी उसकी परिक्रमा करती है। इस मत का उन्होंने प्रचार करना आरम्भ किया।

इससे अधिकारीगण नाराज हो गये। सन् 1616 ई. में इन्हें चेतावनी दी गई, पर इन्होने सत्य से मुँह न मोड़ा। इन पर नास्तिक होने के कई अभियोग लगाये गये । इस सत्य को प्रदर्शित करने के अपराध में धर्मान्ध पोप ने सत्तर वर्षीय गैलोलियो को कठोर कारावास का दण्ड दे दिया।

कारावास में इन्हें रोज घुटने टेक कर यह प्रार्थना करनी पड़ती थी कि पृथ्वी स्थिर है, सूर्य और अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं।
इस अमर पुरुष ने गणित और भौतिक-शास्त्र में भी अनेक महत्वपूर्ण अन्वेषण किये। पैण्डुलम, तापमापक यंत्र, वायुमंडल और दबाव, गति के नियम इत्यादि इनकी अन्य खोजें हैं।
सन् 1642 ई. में गैलीलियो की मृत्यु हो गई। टेलिस्कोप गैलीलियो की अमर देन है और आज 400 सालों में खगोल और अंतरिक्ष विज्ञान में जो उन्नति हुई है, उसका सर्वप्रथम श्रेय गैलीलियो को ही जाता है।