Class 10 -नियंत्रण एवं समन्वय

Class 10 -नियंत्रण एवं समन्वय

नियंत्रण एवं समन्वय(Class 10)

(Control and Coordination)

जीवों का शरीर संरचनात्मक दृष्टि से कई भागों से मिलकर बना होता है।Class 10 प्रत्येक भाग के अपने कुछ विशिष्ट कार्य होते हैं। इन सभी अंगों के कार्यों को सुचारु रुप से तथा व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न कराने के लिए आपसी सामन्जस्य बहुत आवश्यक है। जैसे- जब हम तेज गति से दौड़ते हैं , तो हमारी श्वासोच्छवास (Breathing) प्रक्रिया तेज हो जाती है, क्योकि शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन व ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसी तरह एक कोशकीय जीवों जैसे अमीबा में भोजन की ओर कोशिका का फैलाव तथा गर्म जल होने की दशा में कोशिका में संकुचन होना आदि।class 10

पौधों में भी अपने वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया प्रदर्शित की जाती है जैसे -सूर्यमुखी के पौधा का सूर्य के प्रकाश की दिशा में गति करना आदि।

अतः जीवों के सभी अंगों का आपस में सामंजस्य बनाकर कार्य करना नियत्रण एवं समन्वयय कहलाता है। एक कोशिकीय जीवों में नियंत्रण एवं समन्वय अपनी ही कोशिका में होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है

, जबकि बहुकोशीय जीवों में नियंत्रण एवं समन्वय दो प्रकार से होता है-

 (1) रासायनिक समन्वय( chemical coordination) (2) तंत्रिकीय समन्वय  (Nerves coordination)।। 

 पौधों में रासायनिक समन्वय (coordination in Plant) Class 10

 

सभी पौधों में कुछ विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थ पाये जाते हैं, जो उनकी वृद्धि तथा विभेदन संबंधी क्रियाओं पर नियंत्रण रखते हैं। इन पदार्थो को पादप वृद्धि नियंत्रक (Plant growth regulators) या पादप हार्मोन (Phytoharmones) कहते हैं। ये रासायनिक पदार्थ किसी विशेष प्रक्रिया को उत्तेजित (Stimulate) या संदमित (inhibit) कर सकते हैं।

पादप वृद्धि नियंत्रक मुख्यतः पाँच प्रकार के होते हैं

  1. ऑक्सिन (Auxins)

2 . जिबरेलिन (Gibberellenis )

3 . सायटोकायनिन (Cytokinines)

  1. एबसिसिक एसिड (Abscisic acid)
  2. ऐथलीन (Ethylene)

ऑक्सिन (Auxins)

Class 10

ऑक्सिन वे प्रथम पदार्थ है जिन्हे वृद्धि नियामक के रूप में जाना गया। यह वृद्धि को नियंत्रित करता है। ये जड़ एवं तनों के शीर्ष पर उत्पन्न होते हैं तथा नीचे की ओर प्रवाहित होकर पादप वृद्धि का नियंत्रण करते हैं। 




ऑक्सिन क्या है

ऑक्सिन जड़ों और तनों के शीर्ष पर बनते हैं। ये

हमेशा पेडों की वृद्धि को उत्तेजित नही करते , कभी-कभी रोकते भी हैं। जैसे-जैसे ये तने में नीचे उतरते हैं ये पार्श्व शाखाओं को उगने नहीं देते, इसलिए पेड़ लम्बा और

सीधा हो जाता है। यदि पेड़ के शीर्ष को काट दिया जाय

तो ऑक्सिन का प्रवाह बंद हो जाता है और नई शाखाएँ

निकलने लगती हैं।  

ऑक्सिन (Auxins) के कार्य Class 10

  1. कोशिकाओं का दीर्धीकरण (elongation) करना

 2 बीज रहित (seedless) फलों के उत्पादन में सहायता करन

3 खरपतवारों के नियंत्रण में उपयोग (weedicides)

  1. पुष्पन को प्रेरित करना
  2. जड़ों के निर्माण (Root initiation) में सहायक 

जिबरेलिन्स (Gibberellins)

इन वृद्धि नियामकों (growth regulators) का शरीर कार्यकी (physiological) प्रभाव तो

होता है, किन्तु रासायनिक दृष्टि से यह ऑक्सिन से बहुत भिन्न होते हैं। यह ऑक्सिन के समान ही होता है, किन्तु रासायनिक दृष्टि से यह आक्सिन पौधों के तने की लम्बवत वृद्धि के लिए उत्तरदायी होते हैं।

 जिबरेलिन के कार्य (Function of Gibberellins)

  1. इसके द्वारा पौधों की लम्बाई में वृद्धि होती है।
  2. आनुवांशिक रुप से बौने पौधों की लम्बाई भी इसको देने से बढ़ जाती है।
  3. पुष्पन तथा फल निर्माण पर नियंत्रण
  4. बीजों की प्रसुप्ति समाप्त करने व अंकुरण में ।

 साइटोकाइनिन (Cytokinins)Class 10

साइटोकाइनिन वे पदार्थ हैं जो मुख्यतः कोशिका विभाजन को प्रेरित करते हैं।




 साइटोकाइनिन के कार्य (Function of Cytokinins)

  1. कोशिका विभाजन व विभेदन करना 
  2. अग्रीय प्रभाविता का प्रतिरोध करना 
  3. जीर्णता में विलम्ब
  4. प्रसुप्तता से जागरण

 एबसिसिक एसिड

यह प्राकृतिक रुप में पाया जाने वाला वृद्धि रोधक पदार्थ है। यह पौधों को प्रतिकूल वातावरणीय दशाओं का सामना करने में सहायता करता है।

 एब्सिसिक एसिड के कार्य

  1. यह पतझड़ क्रिया को बढ़ाता है। 
  2. यह रंध्रों को बंद करके वाष्पोत्सर्जन क्रिया को कम करता है। 
  3. यह बीजों के अंकुरण एवं कलिका वृद्धि को रोकता है।

एथिलीन

यह एकमात्र गैसीय प्राकृतिक वृद्धि नियंत्रक है। इसका संश्लेषण सभी पादपांगों में होता है। इसे पकाने वाला हार्मोन भी कहते हैं।

एथिलीन के कार्य

  1. यह फलों के पकने के लिए प्रेरित करता है
  2. तनों की लम्बाई में वृद्धि, नर पुष्पों के विकास गुरुत्वाकर्षण आदि को संदमित करता है।

Nervous coordination

मानव तंत्रिका तंत्र (Nervous System)Class 10

हम नेत्र , कान, नाक, त्चचा तथा जिव्हा को क्रमशः देखने, सुनने, सूंघने, स्पर्श तथा स्वाद का अंग मानते हैं परन्तु

ये अंग केवल मस्तिष्क के मार्गदर्शन में सहयोग करते है। अपने आस-पास वस्तुओं के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं के लिए मूलतः हमारा तंत्रिका तंत्र ही जिम्मेदार होता है। 

Class 10 -नियंत्रण एवं समन्वय

तंत्रिका तंत्र के अंतर्गत वातावरणीय परिवर्तनों को ग्रहण करने के लिए ग्राही अंग (receptors) ग्राही अंगों से उद्दीपनो (stimulations) को शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाने के लिए तंत्रिका कोशिकाएँ होती है तथा इन सूचनाओं (उद्दीपन) को वर्गीकृत करके प्रसारण करने वाला केंद्र मस्तिस्क होता है . अब इन सूचनाओं पर वास्तविक प्रतिक्रिया करने वाली रचनाएँ (पेशियां एवं ग्रंथियां) अपवाहक (effectors) कहलाती हैं।

तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहलाती हैं। तंत्रिका आवेग (stimuli) इन्हीं तंत्रिका कोशिकाओं के द्वारा पहले मस्तिष्क से मेरुरज्जू में पहुंचता है, जहाँ उनका विश्लेषण होता हैं और फिर दूसरी तंत्रिकायें कोशिका काय उचित अनुक्रिया के लिए संबंधित पेशियों या ग्रंथियों में भेज देती हैं। तंत्रिका आवेग एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरान में सूत्र युग्मन या साइनेप्सिस क्रिया (synapsis) द्वारा पहुंचाया जाता है।

 हाइड्रा का तंत्रिका तंत्र

हाइड्रा एक सरल बहुकोशीय जीव है, इसके पूरे शरीर में तंत्रिका कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है जो एक दूसरे से जुड़कर तंत्रिका जाल बनाती हैं। इसका तंत्रिका तंत्र बहुत ही सरल होता है तथा इसमें केन्द्रीय नियंत्रण जैसे मस्तिष्क काअभाव रहता है।

जब हाइड्रा को किसी बाह्य कारक द्वारा उद्दीपन पैदा होता है तब इसमें आवेग तथा संवेदना का संचार शरीर के समस्त दिशाओं में तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा होता है। यह तंत्रिका कोशिकाएं हाइड्रा के शरीर में अन्य कोशिकाओं को भी बनाती हैं जिससे हाइड्रा उद्दीपन के प्रति उचित प्रतिक्रिया

(response) प्रदर्शित करे। अतः हाइड्रा में उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया सिर्फ तंत्रिका कोशिकाओं द्वारा प्रभावित व नियंत्रित होती है। हाइड्रा एक निम्नतम श्रेणी का जीव है। 

मानव मस्तिष्क (Human Brain)

मनुष्य के मस्तिष्क को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा गया हैं – 1. अग्र मस्तिष्क, 2. मध्य मस्तिष्क, 3. पश्च मस्तिष्क ।

Class 10 -नियंत्रण एवं समन्वय

  1. अग्र मस्तिष्क – अग्र मस्तिष्क में निम्न भाग होता है

(1) घ्राण पिण्ड-ये बहुत छोटे होते हैं तथा. सेरीब्रल गोलार्द्ध में समेकित रहते हैं।

 कार्य – इनका कार्य गंध का ज्ञान कराना है। 

(2) सेरीब्रम-यह अग्र मस्तिष्क का सबसे प्रमुख भाग है। इसे प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध भी कहते हैं।

कार्य- यह सोचने, समझने, स्मरण करने, सर्दी, गर्मी, स्पर्श, प्रकाश, विविध भावों जैसे-क्रोध, ममता, लोभ, प्रेम आदि का केन्द्र होता है।

(3) डायनसेफेलान – यह सेरीब्रम तथा मध्य मस्तिष्क के बीच स्थित होता हैं। यह ऊपरी थैलेमस तथा निचले हाइपोथैलेमस में बँटा रहता है।

कार्य – थैलेमस– गर्मी, सर्दी, दर्द आदि संवेदनाओं का अनुभव करता है।

हाइपोथैलेमस – यह अंत: स्रावी तंत्र तथा तंत्रिका तंत्र के बीच संबंध स्थापित करता है। यह शारीरिक ताप रुधिर दाब तथा जल का नियमन करता है। इसके अतिरिक्त भूख, प्यास निद्रा थकान आदि का नियंत्रण करता है।

  1. मध्य मस्तिष्क

(1) सेरीब्रल पिडकल – यह तंत्रिका तन्तुओं की पट्टिका होती है जो सेरीबेलम तथा सेरीब्रम को जोड़ती है।

(2) कॉरपोरा क्वाड्रीजैमिना– ये चार ठोस, गोल आकृति के उभार है जो मध्य मस्तिष्क के पृष्ठ तल पर स्थित होते हैं।

कार्य– यह दृष्टि, श्रवण एवं प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण करता है। 

  1. पश्च मस्तिष्क– मस्तिष्क का पिछला भाग तीन भागों का बना होता है
  2. सेरीबेलम– यह सेरीब्रम के पश्चात् दूसरा सबसे बड़ा भाग है।

 कार्य– (1) कंकाल पेशियों के संकुचन एवं शिथिलन का नियंत्रण।

(2) यह शरीर के संतुलन रखने तथा शारीरिक गतियों को सुचारु रुप से समन्वित

करता है।

  1. पौन्स– यह मैड्यूला के अग्र भाग के ऊपर तंत्रिका तंतुओं के मोटे पूलों के रुप में स्थित होता है।

कार्य- यह लार, आंसू आदि के स्रावण पर नियंत्रण करता है

3. मेड्यूला ऑब्लांगेटा- यह मस्तिष्क का सबसे पीछे का भाग है जो मस्तिष्क बॉक्स से बाहर निकलकर मेरुरज्जू बनाता है

कार्य– यह श्वसन, हदय गति, रूधिर वाहिकाओं के शिथिलन एवं संकुचन पाचन तथा वमन

आदि का केन्द्र है।

मानव मस्तिष्क का वजन वयस्क व्यक्ति में लगभग 1500 ग्राम होता है। यह चारों ओर से एक द्रव से घिरा होता है, यह मस्तिष्क की रक्षा करता है। यदि वह नष्ट हो जाए तो इनका विस्थापन संभव नहीं है।

” इलेक्ट्रो इन्सेफेलोग्राम EEG- यह एक ऐसा तंत्र है जिससे मस्तिष्क की क्रियाशीलता को वैद्युत तरंगों के रूप में मापा जाता है। इस प्रक्रिया में सिर (खोपड़ी) पर दो इलैक्ट्रोड लगाकर मस्तिष्क से निकलने वाली वैद्युत तरंगे अल्फा, बीटा, डेल्टा और थीटा को मापा जाता है। इन तरंगों की तरंग दैर्ध्य के द्वारा मस्तिष्क की कार्य करने की प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है। इसका उपयोग चिकित्सकीय निदान में किया जाता है। “

मेरू रज्जू (Spinal Cord)

मेरूरज्जू को रीढ़ रज्जू भी कहते हैं । मस्तिष्क का पश्च भाग मेड्यूला ऑब्लांगेटा करोटि (skull) के फोरामन मैगनम (महारंध्र) से निकलने के पश्चात् रीढ़ रज्जू कहलाती है। कशेरुकाओं के बीच स्थित तंत्रकीय नाल में एक मुलायम डोरी के रुप में कशेरुक दण्ड के अंतिम सिरे तक फैला रहता है। 

मेरू रज्जू की अनुप्रस्थ काट

Class 10 -नियंत्रण एवं समन्वय

इसकी अनुप्रस्थ काट में दो भागों में बँटा हुआ स्तर होता है बाहरी भाग भी श्वेत पदार्थ (White matter) तथा आन्तरिक भाग को धूसर पदार्थ (grey matter) कहते हैं। मेरू रज्जू के मध्य में एक केन्द्रीय नाल पाई जाती है, इसके ऊपर एक गड्ढेनुमा संरचना होती है जिसे पृष्ठ विदर (dorsal fissure) कहते है, इसी प्रकार नीचे की ओर पाई जाने वाली संरचना को अधर विदर (ventral fissure) कहते है। इसके कारण मेरू रज्जू दो भागों में बँट जाता है।

मेरुरज्जू के चारों ओर तीन स्तर पाए जाते हैं।

 (1) ड्यूरामेटर, (2) पायामेटर, (3) अरेक्नाइड 

मध्य मे एक द्रव्य भरा होता है, इसे सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य कहते हैं, यह मेरूरज्जू का रक्षा करता है।

 मेरूरज्जू के कार्य




  1. मेरूरज्जू प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
  2. तत्रिकाओं और मस्तिष्क के बीच संबंध स्थापित करता है।
  3. अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करता है।
  4. यह मस्तिष्क से आने वाले उददीपनों का संवहन करता है।

 प्रतिवती क्रिया (Reflex Action)

यदि शरीर के किसी भी भाग में कोई सुई चुभा दे तो शरीर का वह भाग एकदम वहा से हट जाता है। इसी तरह किसी गर्म वस्तु के अचानक छू जाने से भी यही प्रतिक्रिया होती है। ये सभी कार्य इतने शीघ्र सम्पन्न होते हैं कि कार्य हो जाने पर प्राणी को इसका ज्ञान होता है। अतः इस प्रकार की क्रियाएँ जिनमे प्राणी कोउद्दीपन की सूचना प्राप्त होने से पहले ही ये स्वतः हो जाये, प्रतिवती क्रियायें कहलाता है। ये अनैच्छिक होती है तथा इनका नियंत्रण मेरूरज्जू द्वारा होता है। पलक का झपकना, छिंकना या खांसना प्रतिवर्ती क्रियाएं है।

 प्रतिवती क्रिया की क्रियाविधि (Mechanism of Reflex Action)

इस क्रिया में सबसे पहले संवेदी अंग उददीपन को ग्रहण करते हैं। यह उद्दीपन संवेदी तंत्रिका तंतुओं द्वारा तंत्रिका केन्द्र (मेरुरज्जू) में पहुंचा दिया जाता है। मेरुरज्जू इसे एक प्रेरणा या अपवाही आवेग में बदल देता है। यह आवेग प्रेरक तंतुओं को स्थानांतरित कर दिया जाता है जो इसे अपवाही अंगों की पेशियों को पहुंचा देते हैं। फलतः हाथ या शरीर का भाग वहां से हटा लिया जाता है। यह सब इतने कम समय में पूरा होता है कि पता नहीं चलता कि कब उद्दीपन पैदा हुआ और कब प्रतिक्रिया हो गई। प्रतिवर्ती क्रिया का पथ निम्न है- उद्दीपन – ग्राही अंग संवेदी तंत्रिका मेरुरज्जू प्रेरक तंत्रिका मांसपेशियों द्वारा क्रियाएं।

जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय (Control and Coordination in Animals)

प्राणी शरीर  के विभिन्न अंगो का समन्वय तथा क्रियाओं का नियंत्रण दो विशिष्ट तंत्रों
जैसे - (1) तंत्रिका तंत्र (2 )अंत: स्रावी तंत्र या हार्मोनल समन्वय द्वारा होता है। 

 अंत: स्रावी तंत्र या हार्मोनल समन्वय 

पौधों के समान जन्तुओं में भी कुछ विशिष्ट रसायन कार्यिकी प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं जिन्हे हार्मोन्स कहते हैं। अतः ऐसे रासायनिक पदार्थ जो शरीर के एक भाग से स्रावित होकर रुधिर के साथ सारे शरीर में पहुंचते हैं तथा इनकी सूक्ष्म मात्रा ही किन्ही विशिष्ट कोशिकाओ की कोशिकाओं की क्रियाविधि को प्रभावित करती हैं उन्हें हार्मोन कहते है। 

हार्मोन साधारणतया निम्नलिखित क्रियाओं का नियमन करते हैं

(1) जनन संबंधी क्रियायें, (2) वृद्धि एवं विकास संबंधी, (3) उपापचय और समस्थापन संबंधी

हार्मोन विशिष्ट प्रकार की ग्रंथियों में निर्मित होते हैं उन्हें अंतः स्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands) कहते हैं। ये ग्रंथियाँ नलिका विहीन होती हैं।

मानव के शरीर में पायी जाने वाली प्रमुख अंतः स्रावी ग्रंथियाँ तथा उनसे निकलने वाले हार्मोन निम्नलिखित हैं

 

ग्रंथि का   नाम -थायरॉइड

हॉर्मोन का नाम -थाइरॉक्सिन

हार्मोन के मुख्य कार्य -शरीर में होने वाली समस्त उपापचीय क्रियाओं  पर नियंत्रण वृद्धि

अल्पस्त्रावण का प्रभाव -शरीर बौना ,मस्तिष्क कमजोर

अतिस्त्रावण का प्रभाव -ग्लूकोस व O2 की  खपत आदि का बढ़ना ,थकावट ,उच्च ताप घबराहट कम्पन आदि। 

ग्रंथि का   नाम- पीयूष ग्रंथि( pituitary gland)

 हॉर्मोन का नाम-1 . वृद्धि हार्मोन का नियंत्रण 

 हार्मोन के मुख्य कार्य-शरीर के आकार का रुकना 

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव-बचपन में वृद्धि 

 अतिस्त्रावण का प्रभाव- बचपन में आनुवंशिक भीमकाय शरीर 

हॉर्मोन का नाम-   थायरोट्रॉपिक हॉर्मोन (TSH )

  हार्मोन के मुख्य कार्य- थाइरॉइड ग्रंथि का नियंत्रण

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव-

  अतिस्त्रावण का प्रभाव-

 हॉर्मोन का नाम-3 एड्रीनो -कोट्री कोट्रापिक  हार्मोन (ACTH)

 हार्मोन के मुख्य कार्य-एड्रीनल  कोर्टेक्स के स्त्रावण का नियंत्रण 

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव –

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-

 

 हॉर्मोन का नाम-फॉलिकल उत्तेजक हॉर्मोन (FSH)

  हार्मोन के मुख्य कार्य-मादा में अंडो के निर्माण तथा नर में शुक्राणुओं के निर्माण को उत्तेजित करता है। 

हॉर्मोन का नाम-लेक्ट्रोजनिक हॉर्मोन (LH)

  हार्मोन के मुख्य कार्य-गर्भित मादाओं में दुग्ध निर्माण एवं स्त्रावण 

 हॉर्मोन का नाम-एंटीडयू रेटिक (ADH )Class 10

 हार्मोन के मुख्य कार्य-रुधिर में जल की मात्रा का निर्धारण 

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव-मूत्र पतला व रुधिर गाढ़ा

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-मूत्र गाढ़ा रुधिर पतला 

ग्रंथि का   नाम-पेन्क्रियास 

 हॉर्मोन का नाम- इन्सुलिन

 हार्मोन के मुख्य कार्य- ग्लूकोस का उपापचय

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव -रक्त में शर्करा की अधिकता अर्थात मधुमेह 

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-रक्त में शर्करा की कमी अर्थात हाइपोग्लाईसेमिया 

 

ग्रंथि का   नाम-पेन्क्रियास

 हॉर्मोन का नाम-एंटीडयू रेटिक

 हार्मोन के मुख्य कार्य- रुधिर में जल की मात्रा का निर्धारण

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव -मूत्र पतला व रुधिर गाढ़ा

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-मूत्र गाढ़ा रुधिर पतला

 

ग्रंथि का   नाम-  अंडाशय (जनन ग्रन्धि )Class 10

 हॉर्मोन का नाम-एस्ट्रोजन 

 हार्मोन के मुख्य कार्य-द्वितीयक लैंगिक लक्षण (मादा में )

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव -मादा में जनन क्षमता की विकास दर धीमी 

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-कम उम्र में ही लड़कियों में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों की उपस्तिथि 

 

ग्रंथि का   नाम-  वृषण

 हॉर्मोन का नाम-टेस्टोस्टीरोन 

 हार्मोन के मुख्य कार्य- नर में लैंगिक लक्षण

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव -लैंगिक अंगो का कम विकास होना 

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-अल्प आयु में ही लैंगिक लक्षणों का दिखाई देना 

 

ग्रंथि का   नाम-पैरा थायरॉइड ग्रंथि Class 10

 हॉर्मोन का नाम-पैरा थार्मोन 

 हार्मोन के मुख्य कार्य-रुधिर में  Ca  तथा PO4  आयनों की संख्या का नियमन

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव -तंत्रिकाओं और पेशियों में उत्तेजना के कारण ऐंठने व फड़कन 

 अतिस्त्रावण का प्रभाव- शरीर में गुर्दे की पथरी संभव

 

ग्रंथि का   नाम- एड्रिनल ग्रंथि

 हॉर्मोन का नाम-कार्टि स्टीरोन Class 10

 हार्मोन के मुख्य कार्य- प्रोटीन को शक्कर में बदलना

 अल्पस्त्रावण का प्रभाव-पुरषों में स्तन का निकलना ,स्त्रियों में दाढ़ी मूछों का निकलना

 अतिस्त्रावण का प्रभाव-

पीयूष ग्रंथि सभी अतः स्रावी ग्रंथियों का नियत्रंण करती हैं, इसलिए

 इसे मास्टर ग्रंथि भी कहते है। पीयूष ग्रंथि पर नियंत्रण मस्तिष्क के 

हाइपोथैलेमस द्वारा होता है। थायरॉइड उत्तेजक हॉर्मोन (T. S. H. )

थायरॉइड ग्रंथि पर नियंत्रण करता है। हाइपोथैलमस और( TSH) 

एक दूसरे को नियंत्रण करता है।

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