चन्द्रशेखर आज़ाद की जीवनी Chandrashekhar Azad Biography in Hindi भारतीय स्वतंत्रता के महानायक अमर शहीद के बारे हिंदी में chandra shekhar azad in hindi story
ऐसी कोई समस्या नहीं जो हल न हो जाए, इसलिए मनुष्य को कभी भी घबराना नहीं चाहिए।
० Chandrashekhar Azad
आजाद का बचपन [ Chandrashekhar Azad Biography ]
भारत को स्वतंत्र कराने वाले जिन महापुरुषों का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। उन्हीं में से एक है महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद।
आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1905 ई. को मध्य प्रदेश के झाबुआ तहसील के भावरा नामक गाँव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री सीताराम तिवारी और माता का नाम श्रीमती जगरानी देवी था। पिता सीताराम तिवारी एक बगीचे की देखवाल करके परिवार का पेट पालते थे। इस प्रकार चन्द्रशेखर का बचपन गरीबी एवं अभावों से भरा हुआ था।
गरीबी की अवस्था में भी चन्द्रशेखर ने हार नहीं मानी वे बडे साहसी थे। पिता चाहते थे कि आज़ाद कोई छोटी-मोटी नौकरी करके परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहयोग करे लेकिन चन्द्रशेखर इन सब के लिए तैयार नहीं थे। वे घर का सब कुछ काम छोड़कर मुम्बई पहुँचे।
आजाद की शिक्षाChandrashekhar Azad
चन्द्रशेखर अपने जीवन में कुछ बड़ा काम कर दिखाना चाहते थे।वे घर से निकल मुम्बई तथा वहाँ से वाराणसी चले गये। वाराणसी में एक संस्कृत पाठशाला में वे पढाई के लिए भर्ती हो गए।
यहाँ पढ़ते हुए उनका मन संस्कृत में कम ही लगता था। उन्हें क्रान्तिकारियों के रोमांचक किस्से पढ़ने में असीम आनन्द प्राप्त होता था।
निडरता की अनोखी मिशाल
सन् 1921 की बात है जब अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन शुरु किया था। तब चन्द्रशेखर मात्र तेरह-चौदह साल के थे वे भी गाँधीजी को सहयोग देने हेतु आंदोलन में कूद पड़े।
जब चन्द्रशेखर के नेतृत्व में छात्रों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई तो वे पकड़े गए एवं पारसी मजिस्ट्रेट के सामने पेशी हुई।
मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में सवाल किया तुम्हारा नाम क्या है?
बालक ने निडरता से जवाब दिया-‘आजाद‘ मजिस्ट्रेट ने फिर पूछा-तुम्हारे बाप का नाम क्या है ?
चन्द्रशेखर ने उत्तर दिया—
‘स्वाधीन’ मजिस्ट्रेट का अगला प्रश्न था’तुम्हारा घर कहाँ है ?
चन्द्रशेखर ने उत्तर दिया- ‘जेलखाना’।
चन्द्रशेखर के इस प्रकार के जवाबों से मजिस्ट्रेट बुरी तरह से चिढ़ गया और उसने उन्हें पन्द्रह बेंत लगाकर छोड़ दिया। जेल के अन्दर यह सजा चन्द्रशेखर ने बिना उफ किये और हर बेंत पर महात्मा गाँधी की जय। कहते हुए सहन की।
उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया था। तन की चमड़ी कई जगह से उघड़ चुकी थी। अब वह बालक चन्द्रशेखर से चन्द्रशेखर आजाद बन गया था। स्वस्थ होकर वे वापस काशी विद्यापीठ में पढ़ाई करने चले गये।
आज़ाद क्रान्तिकारी के रूप में
उन दिनों भारत पर अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेज सभी भारतीयों को अपना गुलाम समझकर उनके साथ मनमाना अत्याचार करते एवं परेशान करते यह सब देखकर आजाद के मन में अपने देशवासियों के प्रति सहानुभूति पैदा हुई। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया कि अब अंग्रेजों को यहाँ से मार भगाना है।
उन दिनों एक संगठन बना था जो अंग्रेजों का कड़ा मुकाबला कर रहा था। उस संगठन का नाम था। “हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी।” चन्द्रशेखर आज़ाद इस संगठन के प्रधान सेनापति थे।
उनके साथ प्रमुख सहयोगी, सरदार भगतसिंह, शिवराम, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव जैसे महान वीर कँधे से कँधा मिलाकर डटे हुए थे। क्रान्तिकारियों को हथियार उपलब्ध करवाने एवं धन की कमी पूरी करने हेतु आज़ाद दिन-रात लगे रहते थे।
काकोरी कांड
धनाभाव की समस्या को हल करने हेतु क्रान्तिकारियों ने चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में एक योजना बनाई तथा उसी योजनानुसार उन्होंने मिलकर 9 अगस्त, 1925 को उत्तर प्रदेश के काकोरी स्टेशन से गुजर रही अंग्रेजी ट्रेन को रोका एवं सारा खजाना लूट लिया। अनेक क्रांतिकारी पकड़े गये।
उन पर मुकदमा चला। इस मुकदमे में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खानऔर रोशन सिंह को फाँसी की सजा हुई। परन्तु आजाद अंग्रेज पुलिस की पकड़ में नहीं आए वे वहाँ से भाग कर फरार हो गये।
लाख कोशिष के बाद भी ब्रिटिश सरकार उन्हें पकड़ नहीं पाई। साइमन कमीशन का विरोध करने पर लाहौर में लाला लाजपत राय को लाठीयों की मार खानी पड़ी जिससे उनकी मृत्यु हो गई ।
इसका बदला लेने हेतु भारतीय क्रान्तिकारियों ने मिलकर एक योजना बनाई तथा चन्द्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में 27 सितम्बर, 1928 को पुलिस ऑफीसर साण्डर्स को गोली मार दी ।
केन्द्रीय असेम्बली में पेश हो रहे बिलों का विरोध करने हेतु भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने वहाँ हो रही सभा पर बम फेंका उस समय आज़ाद भी साथ थे।
इसके आरोप में भगतसिंह और राजगुरु गिरफ्तार कर लिए गये। लेकिन चन्द्रशेखर आजाद इस बार भी पकड़ में नहीं आए वे वहाँ से फरार हो गए। Chandrashekhar Azad Biography
ब्रह्मचारी के वेश में आज़ाद
अंग्रेजी विद्रोह को दबाने हेतु भारतीय अपने तन-मन से जुटे थे। लेकिन अंग्रेजों ने कई क्रान्तिकारियों की गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया था। अब आज़ाद अकेले हो गए थे। लेकिन उन्होंने अंग्रेजों की पुलिस की आँखों में धूल झोंककर फिर से एक क्रांतिकारी संगठन बनाना आरम्भ किया।
वेश बदलने में आज़ाद बड़े कुशल थे। फरारी के दिनों में वे लम्बे समय तक झाँसी और ओरछा के बीच सतारा नदी के किनारे ब्रह्मचारी के वेश में अपना नाम हरिशंकर रख कर रहने लगे। अपने क्रांतिकारी दल के साथी आज़ाद को बलराज कहकर पुकारते थे।
शहीद के रूप में मातृभूमि के सपूत
क्रांतिकारी संगठन में काम करते हुए आज़ाद किसी काम से इलाहाबाद पहुंचे। तब उनके साथ सुखदेव भी थे। वहाँ वे अल्फेड पार्क में ठहरे,यहाँ पर ठहरने की सूचना किसी गद्दार ने अंग्रेजी पुलिस तक पहुँचा दी।
अंग्रेजी पुलिस को जब आज़ाद की सूचना मिली वे अचानक अल्फेड पार्क आए और उसे चारों ओर से घेर लिया। तब आज़ाद पर क्या गुजरी उसका वर्णन आज़ाद की जीवनी का एक लेखक ने इन शब्दों में किया है
जैसे ही अंग्रेज पुलिस अफसर नाट बाबार ने हाथ में पिस्तौल लिए हुए पार्क में घुस कर आज़ाद को ललकारा—तुम कौन हो? यहाँ क्या कर रहे हो ! साथ ही गोली चला दी। तब आज़ाद ने भी अपनी कमर के बैल्ट से पिस्तौल निकाली तथा गोली का जवाब गोली से दिया। नाट बाबार की गोली आज़ाद के जाँघ में लगी।
आज़ाद के गोली नाट बाबर के पिस्तौल वाले हाथ में लगी और पिस्तौल उसके हाथ से छूटकर जमीन पर गिर पड़ी।
तब आजाद ने स्वयं को सँभालते हुए सुखदेव को वहाँ से भाग जाने का आदेश दिया एवं स्वयं पुलिस का सामना करने हेत वहाँ डटे रहे। इतने में ही डी.वाई .एस.पी .विश्वेश्वर सिंह ने पुलिस दल के साथ चन्द्रशेखरआजाद को घेर लिया। दोनों और से गोलियाँ चलने लगी।
इसी समय विश्वेश्वर सिंह ने आज़ाद के लिए कुछ अपशब्दों का प्रयोग किया। इस पर आज़ाद बोले-अच्छा तो इसका प्रसाद तुम तो लो और ऐसा निशाना लगाया कि गोली जाकर उसके जबड़े में लगी फिर वह पूरी जिन्दगी ठोस अन्न नहीं खा सका।
आज़ाद Chandra Shekhar Azad
लगभग 1 घंटे तक आज़ाद अंग्रेजी पुलिस की गोलियों से जूझते रहे अन्त में आज़ाद के पिस्तौल में केवल एक गोली शेष रह गई वे जिंदा पुलिस के चुगल में नहीं फँसना चाहते थे, तब उन्होंने अंतिम गोली स्वयं अपने सीने में उतार दी जिससे वे वहीं पर शहीद हो गए।
28 फरवरी, 1931 का वह दिन आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ याद किया जाता है। उनकी शहादत को याद कर आज भी आँखों से आँसु छलक पड़ते हैं।
वह पार्क जिस में लड़ते हुए आज़ाद ने अंतिम श्वास ली थी। एवं मातृभूमि की खातिर शहीद हुए उसे अब चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क के नाम से जाना जाता है।
स्त्री जाति का सम्मान
चन्द्रशेखर आज़ाद स्त्री जाति का बड़ा सम्मान करते थे। इन दिनों एक अंग्रेज सम्पादक क्रान्तिकारियों के विरुद्ध लिखा करता था। इस पर एक साथी ने कहा कि उस सम्पादक को गोली मार दी जाये। उसने एक योजना भी पेश की कि वह सम्पादक सपत्नीक अमुख समय पर मोटर से गुजरता है, उसको खत्म कर दिया जाये। इस बात पर चन्द्रशेखर आज़ाद क्रुद्ध होकर बोले स्त्रियों और बच्चों पर हाथ उठाना, क्या यही क्रान्तिकारी का धर्म है? साथी चुप रह गया और अपनी भूल स्वीकार की।
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