मौलिक अधिकार Fundamental Rights and Duties in Hindi : मूल अधिकार और कर्त्तव्य हिंदी में,परीक्षा उपयोगी सामान्य जानकारी ,संविधान के अंतर्गत प्राप्त मौलिक अधिकार व कर्त्तव्य
Fundamental Rights and Duties in Hindi: मूल अधिकार और कर्त्तव्य
मूल अधिकार अनुछेद 12-35 – Fundamental Rights
मूल अधिकार, संविधान द्वारा प्रदत्त ऐसे अधिकार जो व्यक्ति के बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है. इन अधिकारों पर राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता तथा इन्हें न्यायालय द्वारा प्रवर्तित भी कराया जा सकता है. भारत में इसे अमेरिकी संविधान से अपनाया गया. 1931 में कांग्रेस के करांची अधिवेशन में वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में मूल अधिकारों की घोषणा की गई. मूल अधिकारों को न्यायालय द्वारा मूलभूत ढांचा माना गया है.
वर्तमान में संविधान द्वारा नागरिकों को निम्न 6 प्रकार के मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं
- समानता का अधिकार – अनु. 14-18
स्वतंत्रता का अधिकार – अनु. 19-22 - शोषण के विरूद्ध अधिकार – अनु. 23-24
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार- अनु. 25-28
- शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार – अनु. 29-30
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार – अनु. 32
समता का अधिकार (अनु. 14 से 18)
अनु. 14 – विधि के समक्ष समानता एवं विधियों के समान संरक्षण का अधिकार –
विधि के समक्ष समता (ब्रिटेन से) – प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से विधि के अधीन होंगे.
विधि का समान संरक्षण (अमेरिका से)- प्रत्येक व्यक्ति को समान विधिक संरक्षण हासिल होगा.
अपवाद –
1. राष्ट्रपति एवं राज्यपाल अपने पद की शक्तियों एवं कर्तव्य पालन के लिये न्यायालय में उत्तरदायी नहीं.
2. राष्ट्रपति, राज्यपाल की पदावधि में उनके विरूद्ध कोई दाण्डिक कार्यवाही संस्थित नहीं होगी.
3. राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरूद्ध सिविल कार्यवाही हेतु दो माह पूर्व सूचना अनिवार्य
अनु. 15 – धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध
15(1) – राज्य धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के विरूद्ध कोई विभेद नहीं करेगा.
15(2) – नागरिक धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर, दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश तथा कुओं, तालाबों, घाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के उपयोग करने के निर्योग्य नहीं समझा जाएगा.
15(3)- 15(1),(2) की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए विशेष उपबंध बनाने से नहीं रोकेगी.
15(4)- राज्य किन्हीं सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों या अनु. जातियों या अनु. जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष उपबंध कर सकता है.
15(5)- 93वां संविधान संशोधन द्वारा शामिल. राज्य किन्हीं सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को शासकीय एवं निजी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए विशेष उपबंध कर सकता है. (अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थाओं को छोड़कर)
Fundamental Rights and Duties
अनु. 16 – शासकीय सेवाओं में अवसर की समानता
• अनुच्छेद 16 उपबंधित करता है कि राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा.
इस के अपवाद हैं
16(1)- उक्त व्यवस्था केवल प्रारंभिक नियुक्तियों में नहीं वरन् पदोन्नति आदि सभी मामलों में लागू होती है.
16(2)- निवास स्थान के आधार पर आरक्षण वैध.
16(3)- सरकार कुछ सेवाओं को केवल राज्य के निवासियों के लिए आरक्षित कर सकती है.
16(4)- राज्य पिछड़े हुए नागरिकों (सामाजिक/ शैक्षणिक) के किसी वर्ग के लिए नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध कर सकता है.
16(5)- इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी जो यह उपबंध करती है कि किसी धार्मिक या साम्प्रदायिक संस्था के कार्यकलाप से संबंधित कोई पदधारी या उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट संप्रदाय का ही हो।
अनु. 17 – अस्पृश्यता का अंत
इस अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया जाता है तथा उसका किसी भी रूप में आचरण करना निषिद्ध होगा. अस्पृश्यता से संबंधित किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनसार दण्डनीय होगा. यह अधिकार न केवल राज्य वरन् निजी व्यक्तियों के विरूद्ध भी प्राप्त है. इसी क्रम में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955, सिविल अधिकार संरक्षण अधि. 1976 लागू
अनु. 18 – उपाधियों का अंत
राज्य किसी भी व्यक्ति को चाहे वह देश नागरिक हो या विदेशी उपाधियाँ प्रदान करने से मना करता है. किंतु सेवा या विद्या संबंधी उपाधि प्रदान करने की अनुमति देता है.
18(2)- यह अनु. राज्य के नागरिक को विदेशी सरकार से उपाधि स्वीकारने से मना करता है.
18(3)- कोई विदेशी व्यक्ति जो राज्य के अधीन विश्वसनीय पद में है. राष्ट्रपति की सम्मति के बिना विदेशी राज्य से उपाधि ग्रहण नहीं कर सकता.
18(4)- कोई भी व्यक्ति विदेशी राज्य से राष्ट्रपति के अनुमति के बिना कोई उपहार, उपाधि, वृत्ति या पद स्वीकार नहीं कर सकता.
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स्वतंत्रता का अधिकार (अनु.19 से 22)
अनु. 19- वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकार का संरक्षण
19(1)क- वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विचारों को व्यक्त करने वाले सभी साधन इसमें आते है
प्रेस की स्वतंत्रता – प्रेस की स्वतंत्रता में समाचार तथा सूचनाओं को जानने का अधिकार भी शामिल है
जानने का अधिकार- 19(1)क- इसके तहत सरकार को संचालित करने वाली सूचनाएं आती है.
राज्य द्वारा निर्बधन – भारत की प्रभुता एवं अखण्डता, सूरक्षा. विदेशी राज्यों से सम्बन्ध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार न्यायालय की अवमानना, मानहानि आदि के लिए.
19(1)ख – शांतिपूर्वक एवं निरायुध सम्मेलन की स्वतंत्रता इसमें सार्वजनिक सम्मेलनों, सभाओं एवं जूलूसों का अधिकार भी सम्मिलित है.
निर्बन्धन 19(3)- सभा शांतिपूर्ण एवं निःशस्त्र हो, राज्य लोक व्यवस्था के हित में युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है.
19(1)ग- संघ बनाने की स्वतंत्रता
यह अनु. भारत के समस्त नागरिकों को संस्था या संघ बनाने की और इसे चालू रखने का स्वतंत्रता प्रदान करता है. संघ में कंपनी, सोसायटी, श्रमिक, संघ, राजनीतिक दल आदि सम्मिलित है.
निर्बधन 19(4)- लोकव्यवस्था, नैतिकता, देश की अखण्डता हेतु
19(1)घ- भ्रमण (आवागमन) की स्वतंत्रता नागरिकों को देश के किसी भी भाग में भ्रमण का स्वतंत्रता प्रदान की गई है.
निर्बन्धन 19(5)- साधारण जनता के हित में, किसी अनुसूचित जनजाति के हित में संरक्षणी
19(1)ड.- आवास (निवास) की स्वतंत्रता ग इसके अंतर्गत नागरिकों को देश के किसी भी स्थान पर निवास करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है.
निर्बन्धन 19(5)- साधारण जनता के हित में हो, अनुसूचित कला जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए
19(1)छ – वृत्ति, व्यवसाय, वाणिज्य, व्यापार की स्वत नागरिक को व्यापार एवं कारोबार करने की स्वतंत्रता करता है किंतु यह अवैध या अनैतिक पेशा नही
निर्बन्धन – साधारण जनता के हित में हो. राज्य किसी वृत्ति या व्यापार के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताएं निर्धारित कर सकता है.
अनु. 20 – दोष सिद्धि के सन्दर्भ में संरक्षण
किसी व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध यदि वर्तमान विधि के अनुसार अपराध नहीं है, तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा, वह अपराध के लिये वर्तमान प्रचलित विधि के अधीन शास्ति का हकदार होगा.
दोहरे दण्डादेश का निषेध. स्वयं के विरूद्ध गवाही देने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा.
अनु. 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार
किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा,
अन्यथा नहीं.
अनु. 21(क)- शिक्षा को मूल अधिकार-
86वें संविधान संशोधन 2002 द्वारा शमिल, इसके तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है.
एकान्तता का अधिकार, निःशुल्क विधिक सहायता, जल, वायु उपभोग का अधिकार भी प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का भाग हैं
अनु. 22 – बंदीकरण एवं निरोध के प्रति संरक्षण
सामान्य विधि के अधीन गिरफ्तारी से संरक्षण – किसी व्यक्ति को सामान्य विधि के अन्तर्गत गिरफ्तार किये जाने की दशा में निम्न संरक्षण दिया जाता है
1. गिरफ्तारी के कारणों को शीघ्रातिशीघ्र बताया जाना
2. अपने रूचि के वकील से परामर्श करने और बचाव करने का अधिकार
3. गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के अन्दर किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना.
4. मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना 24 घंटे से अधिक का निरूद्ध नहीं किया जाता . –
अपवाद : शत्रु देश के व्यक्तियों की गिरफ्तारी, निवारक कल निरोध अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तारी
निवारक निरोध विधियों के तहत् गिरफ्तारी से संरक्षण –
यह एक एहतियाती कार्यवाही है, इसका उद्देश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दण्ड देना नहीं वरन् उसे अपराध करने से रोकना है. इसके तहत व्यक्ति को अपराध 6 किये जाने से पूर्व ही बिना न्यायिक प्रक्रिया के नजरबंद किया जा सकता है.
सर्वप्रथम संसद ने 1950 में निवारक निरोध (Preventive Detention) कानून पारित किया. इस तरह के अन्य प्रमुख कानून हैं
मीसा 1973 (1979 में रद्द).
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980,
टाडा Terrorist and Disruptive Activity Act (रद्द),
पोटा Prevention of Terrorism Activity Act (रद्द).
Fundamental Rights and Duties
शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनु. 23-24)
अनु. 23 – मानव दुर्व्यापार एवं बेगार प्रथा के अंत मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार के अन्य जबरदस्ती किये जाने वाले श्रम को प्रतिबद्ध करता है
अनु. 24- 14 वर्ष से कम उम्र के बालकों को कारखाने एवं संकटपूर्ण अभियोजन में लगाने पर प्रतिबंध
धार्मिक स्वतंत्रता Fundamental Rights and Duties
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनु.25 से 28)
अनु. 25 – अंतःकरण एवं धर्म के अबाध रूप से मानने एवं प्रचार की स्वतंत्रता
1. अन्तःकरण की स्वतंत्रता : तात्पर्य आत्यन्तिक आंतरिक स्वतंत्रता से है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी इच्छानुसार
ईश्वर के साथ संबंधों को स्थापित करता है.
2. धर्म को अबाध मानने, आचरण और प्रसार करने की स्वतंत्रता
अनु. 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता
1. धार्मिक और पूर्व प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण करना
2. अपने धार्मिक कार्यों संबंधी विषयों का प्रबंध करना
3. जंगम व स्थावर सम्पत्ति के स्वामित्व और अर्जन करना
4. ऐसी सम्पत्ति का विधि अनुसार प्रशासन करना
अनु. 27 – विशेष धर्म हेतु कर देने से मुक्ति
किसी व्यक्ति को, किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय की उन्नति के लिए कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा.
अन. 28 – राज्य पोषित शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या उपासना का प्रतिषेध
1. राज्य द्वारा पूर्णत: पोषित संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती.
2. राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में धार्मिक शिक्षाएं दी जा सकती है, बशर्ते इसके लिए लोगों ने अपनी सम्मति दे दी हो.
3. राज्य निधि द्वारा सहायता प्राप्त संस्थाओं में धार्मिक शिक्षाएं दी जा सकती है, बशर्ते इसके लिए लोगों ने अपनी सम्मति दे दी हो.
4. राज्य प्रशासित किंतु किसी धर्मस्व या न्याय के अधीन स्थापित संस्थाएं पर धार्मिक शिक्षा देने के बारे में कोई प्रतिबंध नहीं.
शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार (अनु. 29-30)
अनु. 29 – अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
विशेष भाषा, लिपि, संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार
अनु. 30 – अल्पसंख्यक वर्ग को शिक्षा संस्थानों की र स्थापना और प्रशासन का अधिकार
अनु. 31 – सम्पत्ति का अधिकार- 44वें संविधान संशोधन
1978 के द्वारा अनु. 31 विलोपित कर दिया गया और सम्पत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर इसे विधिक अधिकार (अनु.300अ) बना दिया गया है.