आज हम बात करेंगे Biography of Sukrat -socrates सुकरात की जीवनी के बारे यह पश्चिम जगत के महान दार्शनिक व गुरु है जो प्रचलित मान्यताओं के विरोध में अपना जीवन त्याग दिया।
सुकरात – Biography of Sukrat (Socrates )
ईसा से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व सुकरात एथेन्स का निवासी था। बचपन से ही वह बदसूरत और नाटा था। उसकी नाक सपाट थी और आँखें फूली हुई थीं। उसके पिता एक प्रस्तरकर्मी थे।
वह सदैव मैले-कुचैले कपड़े पहने रहता था। वह विद्यालय भी गया तथा कुछ विज्ञान, गणित व खगोल की शिक्षा प्राप्त की। वह बचपन से ही विचारों में डूबा रहता था। सुकरात गरीब था और धन-संपन्नता की उसे चाह भी नहीं थी।
उसका ध्यान तो सदैव महान विषयों के चिन्तन में रहता।
वह पैदल ही सड़कों-गलियों में घूमता रहता और लोगों से बात करता रहता। लोग उसकी प्रतीक्षा करते। वह शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध हो गया। उससे बहस करने पर लोग उलझन में पड़ जाते । सुकरात कहता प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं सत्य की खोज करना चाहिए और तदनुसार आचरण करना चाहिए। वह एथेन्स को आदर्श राज्य के रूप में देखना चाहता था। यह तभी संभव था जब प्रत्येक व्यक्ति सत्य और श्रेष्ठ की खोज स्वयं करे। उसका विश्वास था-‘वादे वादे जायते तत्वबोधः।
जब सुकरात वृद्ध हुआ, तब तक उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। लोगों के द्वार उसके लिए खुले रहते थे और लोग उसे अपने यहाँ पाकर गौरवान्वित महसूस करते । शनैः शनैः एक विशेष समूह उसका अनुयायी बन गया और वह जहाँ भी जाता, यह समूह उसके पीछे-पीछे जाता। इनमें प्लेटो (अफलातून-अरस्तू का गुरु, अरस्तू सिकन्दर महान का गुरु था) नामक युवक भी था, जो उसका अत्यन्त प्रशंसक था और जो स्वयं भी बाद में सुकरात जैसा दार्शनिक और शिक्षक बन गया।
सुकरात महान दार्शनिक
यद्यपि अनेक लोग सुकरात के प्रशंसक और अनुयायी थे, फिर भी कुछ लोग उससे असहमत रहते। वह कहता कि भाग्य और ईश्वर से अधिक मनुष्य के स्वयं के विचार उसके आचारों को प्रभावित करते हैं। कुछ लोगों को यह विचार नया, गलत और धर्म-विरुद्ध लगता। सुकरात कहता कि देवताओं को बलि देने की अपेक्षा उच्च और श्रेष्ठ विचार अधिक महत्वपूर्ण हैं । लोगों को लगता वह युवकों को गुमराह कर रहा है।
एथेन्स की सरकार ने उस पर मुकदमा चलाया। मित्रों ने उसे पलायन की राय दी, पर सुकरात कायर नहीं था। वह सत्य पर अडिग रहना चाहता था। वह न्यायालय गया। उर्जा से भरा गरिमामय भाषण दिया। उसे मृत्युदण्ड दिया गया। उसने प्लेटो इत्यादि शिष्यों से कहा-प्रसन्न रहो, मुझे तो जाना ही है । मृत्यु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। सिपाही आए, उसे कैदखाने ले जाया गया। उसके तीन बच्चों सहित उसकी पत्नी उसके पीछे-पीछे थी। उसके अनेक शिष्य उसके साथ थे। सुकरात सबसे बात करता रहा। उन्हें अनेक अच्छी शिक्षाएँ दीं। शिष्य अत्यन्त दुःखी थे।
सूर्यास्त के समय जेलर आया। उसने दुःखी होकर कहा-“सुकरात, अभी तक इस स्थान पर जितने भी लोग आए, आप उनमें सर्वाधिक महान्, विनम्र और श्रेष्ठ हैं। मैं आपको पीने के लिए जहर का प्याला दूं तो आप नाराज न हों क्योंकि दोषी मैं नहीं, दूसरे लोग हैं।” उसके धैर्य का बाँध टूट पड़ा, आँसू फूट पड़े और रोते हुए उसने सुकरात के हाथ में जहर का प्याला दे दिया।
ईश्वर करे इस संसार से दूसरे संसार को मेरी यात्रा शुभ हो।’ ऐसा कहकर सुकरात ने प्याला ओठों से लगा लिया और विषपान करने लगा। उसके शिष्यों ने आँसू रोकने की बहुत कोशिश की परन्तु एक शिष्य जोर-जोर से सिसकियाँ लेकर रोने लगा, फिर दूसरे भी न रोक सके और कक्ष रुदन से भर गया।
सुकरात रुका, प्याले को होंठो से हटाया और कहा-“विचित्र आवाज कैसी है ? मैंने सुना है कि व्यक्ति को शांति से मरना चाहिए। तुम्हें रोना नहीं चाहिए। शांत रहो, धैर्य धारण करो ।
कुछ याद करते हुए उसने चारों ओर देखा और एक शिष्य से धीरे-धीरे कहा-“क्रीटो, क्या तुम हमारे लिए एक काम करोगे? मैं ईस्क्यूलेपियस का एक मुर्गे का कर्जदार हूँ। क्या तुम कर्ज चुका दोगे?” क्रीटो बोला, चुका दिया जाएगा। क्या कुछ और कहना है?” उसने उत्तर की प्रतीक्षा की पर कोई उत्तर नहीं मिला क्योंकि यूनान का सबसे महान व्यक्ति सुकरात मर चुका था।
उम्मीद है Biography of Sukrat -socrates सुकरात की जीवनी से आपको जरूर प्रेरणा मिलेगी।
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