बस्तर संभाग ( Bastar Division )एक नजर ,Fact about Division Bastar | bastar university |social| famous proverb-हामचो बस्तर कितरो सुन्दर ,
रोचक तथ्य -बस्तर के बारे में -fact about Bastar Division
बस्तर संभाग में जगदलपुर में बस्तर विश्व विद्यालय (bastar University ) स्थित है।
NMDC (National mineral Development Corporation ) दंतेवाड़ा जिले में स्थित है .
बस्तर संभाग में अब छः जिले हो गये हैं-कांकेर, बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर व कोंडागांव ।
बस्तर संभाग का प्रवेश द्वारा मचांदूर (कांकेर जिला) है।
नागवंशी शासन काल में बस्तर का नाम चित्रकोट था।
भारतीय रियासतों की समस्याओं के निराकरण हेतु केबिनेट मिशन योजना के तहत कांकेर रियासत से राम प्रसाद पोटाई नई व्यवस्था के तहत चुन कर भेजे गये थे।
बस्तर के आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ सन् 1857, 1890 तथा 1910 ई. में सशस्त्र क्रांति की गई थी।
सन् 1910 ई. में भारत के सबसे बड़े जनपद बस्तर में अल्पवयस्क महाराजा रुद्रप्रताप देव का शासन था।
बस्तर देशी रियासत के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेण्ट दीवान राय बहादुर पण्डया बैजनाथ थे।
कर्नल गेयर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज इंद्रावती के तट पर आ गयी थी। आदिवासियों द्वारा डारा और मीरी (आम की हरी शाखा और लाल मिर्च) के माध्यम से नारा बुलंद किया गया था।
Chattisgarhi- सुप्रसिद्ध छत्तीसगढ़ की फ़िल्में व राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मी कलाकार
सन् 1370 संवत् में अन्नमदेव महाराज ने दंतेश्वरी माई की मंदिर की स्थापना की थी।
सन् 1896 ई. में बस्तर में वन विभाग की स्थापना की गई थी। जिसके प्रथम अधिकारी ए. हंट थे।
बस्तर में न्याय सुविधा 1969 में स्वंतत्र रूप से उपलब्ध हुई। इससे पूर्व बस्तर व्यवहार जिला राजनांदगांव से संबद्ध था।
पहले जिला जगदलपुर देशी रियासत व उसकी छोटी जमींदारियों भोपालपट्टनम, सुकमा, दंतेवाड़ा, कुटरू, चिन्तलनार, तोकापाल, फोतकेल व परलकोट तथा कांकेर देशी रियासत को मिलाकर बनाया गया हथा ।
Bastar Division -सन् 1888 ई. तक बस्तर में एक भी डाकघर नहीं था।
बस्तर का अबूझमाड़ क्षेत्र आम आदमियों के प्रवेश के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है।
एशिया की सबसे बड़ी इमली मण्डी जगदलपुर है।
अबूझमाड़ में आज भी आदिवासियों की आदिम संस्कृति विद्यमान है।
रामकृष्ण मिशन नारायणपुर में है। जो माड़ बच्चों में शिक्षा एवं संस्कृति विकास के लिए कार्यरत है।
बस्तर में आज भी मुर्गी लड़ाई, बटेर लड़ाई व शिकार मनोरंजन के साधन हैं।
बस्तर संभाग क्षेत्रफल की दृष्टि से डेनमार्क, स्विट्जरलैण्ड व बेल्जियम से भी बड़ा है। यह हमारे देश के केरल राज्य से भी बड़ा है।
विश्वप्रसिद्ध लौह अयस्क खदान और बैलाडीला बस्तर संभाग जिला दंतेवाड़ा विकास खण्ड कुंआकोण्डा में है।
बस्तर के महाराजा प्रवीरचन्द्र भंजदेव को आदिवासी अपना मसीहा मानते थे।
31 मार्च, 1961 को लोहान्डीगुड़ा गोलीकाण्ड हुआ था।
बस्तर के वनों से शासन को प्रतिवर्ष लगभग 5 अरब रुपये राजस्व की प्राप्ति होती है।
बस्तर में आदिवासियों के मढ़ई मेलों का समय शीतऋतु से बसन्त व ग्रीष्म ऋतु तक होता है।
बोरगांव (फरसगांव) में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र है एवं कांकेर (पथरीं) में काउन्टर टेरोरिज्म जंगलवार (CTJW ) कालेज है।
बस्तर कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एशिया का प्रथम जीव मण्डल है जो की 28 कि. मी. क्षेत्र तक फैला है।
महाराजा प्रवीरचन्द्र भंजदेव की शिक्षा लंदन, कलकत्ता, देहरादून, रामपुर और इन्दौर में हुई थी। बस्तर की गद्दी के लिए राजतिलक लंदन में हुआ था।
‘बस्तर भूषण’ नामक पुस्तक का प्रथम प्रकाशन सन् 1908 में हुआ। ‘फूल पदर’ का मेला फाल्गुन होली के अवसर पर होता है।
8 मार्च सन 1910 को अंग्रेजों के विरुद्ध आदिवासियों द्वारा किये गये विद्रोह का नेतृत्व गुण्डाधूर ने किया था। जिसमें 500 से अधिक आदिवासी पुलिस की गोलियों से. मारे गये थे।
उत्तर बस्तर में भानुप्रतापपुर तहसील में सोने की नई खदान का पता वैज्ञानिक सर्वेक्षण से प्राप्त हुआ है।
बस्तर का बेलमेटल धातु शिल्प विश्व प्रसिद्ध है।
बस्तर का चन्द्रू विदेशी फिल्म में काम कर चुका है।
कोण्डागांव के कुम्हारपारा में ‘साथी’ टेराकोटा व शिल्प ग्राम मिट्टी शिल्प केन्द्र है।
म.प्र. शासन द्वारा सन 1981-82 में बस्तर के बेलमेट धात शिल्पकार जयदेव बघेल को रूपकर कला के राज्य स्तरीय शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया।
साहित्य के क्षेत्र में बस्तर के यशस्वी साहित्यकार गुलशेर खान शानी को सन् 1981-82 में राज्य स्तरीय शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया था । लाला जगदलपुरी को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए ‘गुण्डाधूर’ सम्मान से सम्मानित किया गया।
बस्तर का आकाश नगर बचेली में है।
बस्तर के गौरसिंग माड़िया का नृत्य विश्व प्रसिद्ध है।
राज्य शासन का मृगनयनी एम्पोरियम बस्तर संभाग में जगदलपर. पचरनपाल, कोण्डागांव, बचेली व नारायणपुर में है।
बस्तर में वन विकास केन्द्र अंतागढ प्रोजेक्ट है। जिसका मख्यालय भानुप्रतापपुर है।
बिगड़े वनों के सुधार की योजना आर. डी. एफ. मण्डल का मुख्यालय कोंडागांव में है।
बस्तर काष्ठशिल्प कलाओं के लिए जगदलपर कोण्डागांव व नारायणपुर प्रसिद्ध है ।
रायपुर, बस्तर संभाग का समीपवर्ती सबसे बड़ा व्यापारिक केन्द्र है। रायपुर से कांकेर की दूरी 139 कि. मी. तथा जगदलपुर की 296 कि. मी . है।
राष्ट्रीय राजमार्ग 30 रायपुर से विजयनगरम की लम्बाई 551 कि. मी. है, जो आगे राष्ट्रीय राजमार्ग 5 से जुड़ता है।
बस्तर संभाग में 32 जनपद पंचायत हैं।
कांकेर नगर का सबसे निकटतम रेल्वे स्टेशन धमतरी है।
बस्तर संभाग का संभागीय मुख्यालय जगदलपुर है।
बस्तर संभाग का प्रमुख वनोपज महुआ, हर्रा, टोरा, बहेड़ा, लाख, साल, बीज, इमली, चिरौंजी, तिखुर, शहद, आंवला. जूट, फूलबाहरी, तेन्दूपत्ता, कोसुम, सियारी पान आदि है।
सियारी पान से दोना-पत्तल बनाया जाता है।
गरूड़ नामक सांप की आकृति वाले फल का वृक्ष बैलाडीला के जंगलों में है।
अबूझमाड़ में पेंदाखेती की प्रथा आज भी प्रचलित है।
बस्तर महाराजा प्रवीरचन्द्र भंजदेव का जन्म दार्जिलिंग में 25 जून, 1929 ई. को हुआ था ।
केन्द्रीय जेल जगदलपुर को देश की प्रथम औद्योगिक जेल होने का गौरव प्राप्त है।
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की कोटमसर गुफा भारत की प्रथम भूगर्भित गुफा है।
1824-25 ई. में गैंद सिंह के नेतृत्व में परलकोट में आदिवासी विद्रोह हुआ जिसमें गैंद सिंह को फांसी की सजा दी गई थी।
सन् 1910 में विद्रोहियों ने वीर गुण्डाधूर के नेतृत्व में महान भूमकाल विद्रोह किया जिसे अंग्रेज कमांडर मेयर ने दबा दिया था।
एन्थ्रोपोलोजिकल म्यूजियम बस्तर (जगदलपुर) में स्थित है।
प्रवीर चन्द्र भंजदेव के शासन के समय बस्तर रियासत का भारतीय संघ में विलय हो गया था।
बस्तर संभाग का अधिकांश भाग 93 प्रतिशत भाग गोदावरी बेसिन में तथा 7 प्रतिशत भाग महानदी बेसिन में है।
छत्तीसगढ़ में तेन्दू पत्ता के प्रमुख उत्पादक बस्तर संभाग एवं दूसरा बिलासपुर संभाग का सरगुजा जिला है।
बस्तर संभाग ‘शाल वनों का द्वीप’ कहलाता है।
मिश्रित वन छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक कांकेर में है।
छत्तीसगढ़ राज्य की वनधन नीति बस्तर से प्रारम्भ की गई हैं।
सर्वाधिक इमारती लकड़ी छत्तीसगढ़ में बस्तर से प्राप्त होती है।
छत्तीसगढ़ में वन प्रशिक्षण महाविद्यालय, जगदलपुर में है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जगदलपुर में दुर्लभ स्टेलेग्माइट गुफाएँ हैं। राज्य का पशु वन भैंसा पामेड़ और भैरमगढ़ में भी अधिक संख्या में है।
दण्डकारण्य –Bastar Division
का पठार पूर्व में उड़ीसा के पठार से जुड़ा हुआ है।
के पठार की औसत ऊँचाई 150 मी. व अधिकतम ऊँचाई 1210 मी. (बैलाडीला) है।
दण्डकारण्य की जलवायु मानसूनी है। यहाँ का अधिकतम तापमान अबूझमाड़ में मिलता है।
पठार का लगभग सम्पूर्ण भाग गोदावरी बेसिन के अन्तर्गत आता है।
के पठार में मूलतः स्थानान्तरित कृषि का प्रचलन है व औषधीय पौधे पाये जाते हैं।
दण्डकारण्य के पठार की प्रमुख चोटियाँ-तुलसीडोंगरी, टोकनपल्ली, अबूझमाड़ व बैलाडीला हैं।
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