Amir khusro in Hindi -अमीर खुसरो जीवन परिचय

रचनाकार अमीर खुसरो का जीवन परिचय व रचनाए  ( Amir khusro biography in Hindi ) हिंदी व फारसी भाषा के पहले रचनाकार , सूफी संत निजामुद्दीन ओलिया का शिष्य जिन्होंने संगीत की को एक नया आयाम दिया तथा नवीन रागों का निर्माण किया जिन्हें तूतिये हिन्द कहा जाता था

अमीर खुसरो जीवन परिचय- Amir khusro biography in Hindi


अमीर खुसरो (Amir khusro) का जन्म भारत में उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के पटियाला गाँव में 1254 ई. को हुआ था। अमीर खुसरो का वास्तविक नाम मुहम्मद हसन था। उसके पिता का नाम सेफुद्दीन मेहमूद था जो कि तुर्क था, उसकी माता एक उच्च पदाधिकारी इमादुलमुल्क की पुत्री थी। अमीर खुसरो के पिता इल्तुतमिश और उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में उच्च प्रशासनिक पदों पर कार्य कर चुके थे। अल्पायु से ही अमीर खुसरो की लेखन कला में गहरी रुचि थी। जब वह 12 वर्ष का था तब से ही वह गीत लिखने में कुशल हो गया था।

Amir khusro-अमीर खुसरो ने बलबन के भाई किशली खाँ के पास रहकर उसकी प्रशंसा में अनेक कसींदों की रचना की। इसके बाद वह बलबन के छोटे पुत्र बुगरा खाँ जो कि पंजाब के गवर्नर थे, के पास चला गया। तत्पश्चात् वह बलबन के बड़े पुत्र राजकुमार मोहम्मद के पास पाँच वर्ष तक रहा। 1284-85 में मोहम्मद मंगोलों के विरुद्ध लड़ता हुआ मारा गया।
तब वह मुइज्जुद्दीन कैकुबाद के दरबार में चला गया और उसके आदेशानुसार अमीर खुसरो ने अपनी पहली रचना किशस्नुसादेन‘ की रचना की।


अमीर खुसरो उर्दू का पहला मुसलमान कवि था। वह कैकुबाद से लेकर ग्यासुद्दीन तुगलक तक शाही दरबार में रहा । वह फारसी का महान् विद्वान था। उसने 92 के लगभग रचनाएँ लिखीं। जिसमें आइना-ए-सिकन्दरी, देवलरानी, लैला-मजनूं, खिज्रखाँ की प्रेम कहानी आदि प्रमुख हैं।

वह विख्यात सूफी संत निजामुद्दीन ओलिया का शिष्य तथा उच्च कोटि का संगीतकार, कवि एवं साहित्यकार था । वह अपनी रचनाओं में हिन्दी तथा फारसी भाषाओं का प्रयोग करने वाला पहला भारतीय लेखक था। वह अपनी कविताओं की मधुरता के कारण तूतिये हिन्द’ कहलाता था।

अमीर खुसरो की रचनाये Amir khusro Compositions


खुसरों ने हिन्दी शब्दों एवं मुहावरों का प्रयोग कर भारतीय भाषाओं पर लिखा तथा उर्दू को अपनाने वाला पहला कवि था। उसने उर्दू में अनेक
गजलें एवं कविताएँ लिखीं। उसके प्रयासों से ही उर्दू का अत्यधिक विकास हुआ। उसकी गजलों में हिन्दी तथा फारसी शब्दों का सम्मिश्रण था, इसका खुसरो ने ‘गुर्रत-उल-कमाल‘ में प्रयोग किया है। खुसरो हिन्दी कविता में निपुण था एवं उसकी गजलें एवं गीत उसके जीवनकाल में ही काफी लोकप्रिय हो गये थे।


अमीर खुसरो सल्तनतकाल का सर्वाधिक महान् संगीतज्ञ था। उसने संगीत कला पर ‘आवाजे खुसरवी‘ नामक ग्रन्थ लिखा, जिसमें उसने
अलाउद्दीन खिलजी के दरबारी संगीतकारों का विवरण दिया है। खुसरो को भारतीय संगीत से अत्यधिक प्रेम था, उसने अपनी एक अन्य पुस्तक
नूर सिपहर (नव आकाश)’ में लिखा है कि भारतीय संगीत से मानव हृदय और उसकी आत्मा उद्वेलित हो जाती है। भारतीय संगीत केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशुओं तक को मंत्रमुग्ध कर देता है।


अमीर खुसरो ने भारतीय तथा ईरानी संगीत का मिश्रण कर कुछ नवीन रागों की उत्पत्ति की, जिनमें कव्वाली प्रमुख थी। ‘ख्याल, तराना सरपर्द, सजगीरी, सिलाफ’ जैसे रागों का आविष्कार भी खुसरो ने किया । खुसरो ने ईरानी तम्बूरे एवं भारतीय वीणा को मिलाकर सितार और तबले का
आविष्कार किया। वह बलबन का राजकवि और संगीतकार था। वह कविता, गीतों, लोकगीतों एवं गजलों के लिए भी काफी प्रसिद्ध था। संगीत में
उसकी अत्यधिक महारत के कारण अलाउद्दीन खिलजी ने उसे भारत शुक’ की उपाधि प्रदान की।
उसने हिन्दी एवं फारसी की कई रचनाएँ कर हिन्दुओं एवं मुसलमानों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया।
अमीर खुसरो ने अनेक रचनाओं की उत्पत्ति की। उसकी रचनाओं में जलालुद्दीन खिलजी से लेकर गयासुद्दीन तुगलक तक के शासनकाल की
घटनाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें मिलती है। अमीर खुसरो की कुछ कृतियों का वर्णन निम्न प्रकार है:

Amir khusro Poetry-किरानुरसादेन


किशस्नुसादेन (किरानुरसादेन): इस कविता की रचना अमीर खुसरो ने मुइजुद्दीन कैकुबाद (1287-90 ई.) के आदेशानुसार अपनी 36 वर्ष की
आयु में की। इस कविता में उसने बंगाल के शासक बुगरा खाँ व उसके पुत्र मुइजुद्दीन कैकुबाद के बीच हुई भेंट का वर्णन किया है। खुसरो के एक
साधारण वर्णन से हमें उस समय की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का वर्णन मिलता है । यह कविता नसीरुद्दीन बुगरा खाँ और कैकुबाद के चरित्र पर भी महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती है।

आशिका


इस कविता की रचना अमीर खुसरो ने कुतुबुद्दीन मुबारकशाह खिलजी (1316- 20) के शासनकाल में की। इस कविता अर्थात्
आशिका को ‘मन्सूरे शाही ‘अथवा ‘इश्किया’ भी कहा जाता है। इस कविता में खुसरो ने अलाउद्दीन खिलजी के बड़े पुत्र खिज्र खाँ और गुजरात के राजा कर्ण की पुत्री देवल देवी की प्रेम कहानी का वर्णन किया है। इस पुस्तक के आरम्भ में अलाउद्दीन खिलजी का राजसी वैभव एवं दिल्ली नगर का वर्णन है। इसके बाद खिज्रखां का देवल देवी से विवाह के लिए अलाउद्दीन से झगड़ा और उससे विवाह का वर्णन है। इस रचना से उस समय की सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें मिलती है।

तुगलक नामा

अमीर खुसरो ने इस कविता की रचना 75 वर्ष की आयु में की थी। इस रचना में उसने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक एवं खुसरो खाँ के मध्य हुए युद्ध का वर्णन किया है। इस कविता में मुबारकशाह की विलासप्रियता, खुसरो खाँ की पदोन्नति एवं उसके विश्वासघात एवं छल द्वारा सुल्तान मुबारकशाह की हत्या का वर्णन है। इसके बाद गयासुद्दीन तुगलक जो पंजाब के गवर्नर थे, ने अपने स्वामी की हत्या का बदला उससे कैसे लिया, का वर्णन है तथा गयासुद्दीन का दिल्ली पर अधिकार एवं उसके राज्याभिषेक का वर्णन है।
इस कविता को खुसरो ने सरल भाषा में लिखा है। इसमें ऐतिहासिक तथ्यों के साथ साहित्यिक तथ्य भी दिये हैं । खुसरो ने इसमें आँखों देखे युद्ध का वर्णन किया है। इससे हमें उस समय की राजनैतिक स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है। इस कविता में उसने कई जगह हिन्दी शब्दों का प्रयोग किया है

तारीख-ए-अलाई


तारीख-ए-अलाई : इस पुस्तक की रचना अमीर खुसरो ने 1311ई. में की । खुसरो की इस गद्य रचना का विशेष स्थान है, इसे खजाइनुल फुतूह भी कहा जाता है। इस ग्रन्थ की रचना में हिन्दी शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। जो कि उसकी हिन्दी के प्रति प्रेम को दर्शाता है । क्योंकि उस समय मुस्लिम लेखक हिन्दी शब्दों के प्रयोगको पसन्द नहीं करते थे।
यह ग्रन्थ 6 खण्डों में विभक्त है। इसमें अलाउद्दीन खिलजी के राज्यारोहण (1296 ई.) से लेकर माबर विजय (1901 ई.) तक की घटनाओं
का वर्णन किया है। इसमें उस समय की घटनाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है । खुसरो ने यह पुस्तक बड़ी क्लिष्ट एवं अलंकारिक भाषा में सीधी- सीधी घटनाओं को भी अलंकार युक्त शैली में लिखा है। खुसरो का समकालीन कवि होने के कारण यह ग्रन्थ अधिक महत्त्व का है।

नूह सिपहर

नूर सिपहर का अर्थ होता है नव आकाश’ । यह कविता ऐतिहासिक तथ्यों के कारण अति महत्त्वपूर्ण है । इस कृति के नौ भाग हैं, इसलिए खुसरो ने इसका नाम ‘नूर सिपहर’ रखा । खुसरो ने 1318 ई. में इस ग्रन्थ की रचना कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिजली के राज्यकाल में की। उस समय अमीर खुसरो की आयु 67 वर्ष थी।

इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में खुसरो ने अपने गुरु निजामुद्दीन ओलिया, जो कि एक महान सूफी सन्त थे, उनकी प्रशंसा, मुबारक शाह खिलजी का शासन एवं उसके देवगिरी के आक्रमण करने की घटना का वर्णन किया है।

द्वितीय भाग में कुतुबुद्दीन द्वारा दिल्ली में निर्मित भवन, तेलंगाना एवं वारंगल पर आक्रमण एवं दिल्ली की प्रशंसा का विस्तारपूर्वक वर्णन है ।

तृतीय भाग में भारत वर्ष की जलवायु, धार्मिक विश्वास, भाषा एवं पशु-पक्षियों का वर्णन किया है। उसने आगे लिखा है कि भारत ज्ञान का भण्डार है, यहाँ बड़े-बड़े विद्वान एवं मनीषी निवास करते हैं तथा यहाँ विदेशों से लोग अध्ययन के लिए आते हैं। जबकि यहाँ का कोई भी व्यक्ति विद्याध्ययन हेतु बाहर नहीं जाता है।
उसका कहना है कि गणित का जन्म स्थान भारत है और गणित का जन्मदाता आशा नामक ब्राह्मण है। इसलिए अरबी भाषा में गणित शास्त्र को
‘हिन्द शा’ कहते हैं। गणित के अलावा शतरंज भी भारत की उत्पत्ति है जिसका संस्कृत नाम चतुरांग है। इसमें दोनों ओर से खेलने वाले पक्ष के मोहरे एक सुसज्जित सेना की भाँति रखे जाते हैं।

नूह सिपहर

चौथे भाग में बादशाओं एवं जनता के लिए शिक्षा का वर्णन है।
पाँचवे भाग में बादशाह के प्रति दरबारियों को स्वामिभक्त होने की सलाह का वर्णन है।

छठे भाग में मुबारकशाह के पुत्र राजकुमार मोहम्मद के जन्म का वर्णन है ।

सातवें भाग में राजकुमार मोहम्मद का जन्म समारोह में बिजली की सजावट एवं बसन्त ऋतु का वर्णन है।

आठवें भाग में आध्यात्मवाद का एवं नवें भाग में दिल्ली के उस समय के कवियों एवं उनकी रचनाओं का वर्णन है। इस रचना में अनेक शाही
अभियानों एवं शासन व्यवस्था की जानकारी होने के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

अमीर खुसरो का दृष्टिकोण बहुत ही उदार था। उसने भारतीय विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त किये हैं। अमीर खुसरो प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन ओलिया के शिष्य थे। खुसरो पर उनका अत्यधिक प्रभाव था । फारसी साहित्य के प्रत्येक इतिहास में खुसरो की रचनाओं का वर्णन है।

Amir khusro पर इतिहासकारों का मत 


कई इतिहासकारों ने अमीर खुसरो को साहित्यकार नहीं माना है तो कई अनेकों विद्वानों ने उनके इतिहासकार होने में अनेक पक्ष दिये हैं। अमीर
खुसरो में अन्य समकालीन इतिहासकारों की तरह गुण एवं अवगुण थे। उनकी भाषा बनावटी एवं शैली अधिक स्पष्ट नहीं थी और कई घटनाओं को उसने छुपाने का प्रयास किया है। फिर भी 13वीं सदी के इतिहास लेखन के तत्त्व अमीर खुसरो में मौजूद थे। अमीर खुसरो इतिहासकार के साथ-साथ उच्च कोटि का महान् लेखक, कवि एवं कई आविष्कारों का जन्मदाता था।

अमीर खुसरो की मृत्यु Amir khusro Death


अमीर खुसरो की1325 ई. में मृत्यु हो गई और उसे उसके गुरु शेख निजामुद्दीन ओलिया की दरगाह जो कि दिल्ली में स्थित है, उसके पास ही
दफन कर दिया गया। अमीर खुसरो उर्दू के साथ ही हिन्दी भाषा के भी बहुत अच्छा कवि थे। लेकिन उनकी हिन्दी की कोई भी रचना आज हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
अमीर खुसरो की अनेक कृतियाँ हमें उस काल के बारे में जानकारी देती है। वह उच्च कोटि के संगीतज्ञ, कवि, इतिहासकार थे।