15 अगस्त पर निबंध हिंदी में Independence Day Essay in Hindi 2020 . 15 अगस्त हमारे देश का अपना विशेष दिन है। 1947 में इस दिन लम्बे संघर्ष के बाद हमें विदेशी शासन से मुक्ति मिली थी; हम स्वतत्र हुए थे।
जवाहर लाल नेहरु के शब्दों में नियति के साथ जो हमने करार किया था उसे हम इस दिन पूरा कर सके थे – सर्वांश में नहीं तो अधिकांश में ।
तो क्या इस दिवस का महत्व केवल हमारे राष्ट्रीय जीवन में है। नहीं, भारत की स्वतंत्रता का महत्व विश्व परिप्रेक्ष्य में बहुत अधिक रहा है।
15 अगस्त पर निबंध(स्वतंत्रता-दिवस)
भारतीय स्वतंत्रता एक आलोक-स्तंभ के रूप में विश्व के राजनीतिक क्षितिज पर उदित हुई थी। उसकी प्रेरणा से एशिया और अफ्रीका के एक-एक करके सभी देशों ने स्वतंत्रता का विहान देखा। भारतीय स्वतंत्रता के पूर्व अफ्रीका के अधिकतर देश परतंत्र थे, एशिया में भी साम्राज्यवाद छाया था।
तब स्वयं चीन भी गृहयुद्ध की लपटों में झुलस रहा था – अमेरिका की काली छाया उस पर मंडरा रही थी।
भारत की स्वतंत्रता के बाद चीन में वर्तमान साम्यवादी शासन की विजय हुई – वह भी ताइवान प्रजातंत्र के रूप में विभाजन की कीमत चुका कर।
इंडोनेशिया, कम्बोडिया , बर्मा, लाओस, वियतनाम, सिंगापुर, मलाया, फिलीपीन्स, पश्चिम एशिया के सभी देश और अफ्रीका महाद्वीप में साम्राज्यवादी शासन के नीचे पिसते सारे देश भारत की स्वतंत्रता से प्रेरणा लेकर स्वतंत्र बने।
दक्षिण अफ्रीका को स्वतंत्र हुए तो कुछ समय ही बीता है। अत: भारतीय स्वतंत्रता का महत्व विश्व के संदर्भ में भी बहुत बड़ा है।
जवाहर लाल नेहरु के शब्दों में 15 अगस्त को हमारी स्वतंत्रता सर्वांश मे पूर्ण नहीं थी, यद्यपि वह अधिकांश में पूर्ण इस अर्थ में कही जा सकती है कि राजनीतिक दृष्टि से हमारे ऊपर से विदेशी शासन का 15 अगस्त को अंत हो गया।
राष्ट्रपिता गाँधी, जिसके नायकत्व में यह स्वतंत्रता मिली थी, 15 अगस्त को दिल्ली में स्वतंत्रता का जश्न मनाने को उपस्थित नहीं थे।
वे बंगाल में सांप्रदायिकता की अग्नि में भस्मसात् होते विशाल जनसमुदाय की रक्षा में लगे थे।
बाद में उन्होंने कहा था- हमारे लिए स्वतंत्रता तब सार्थक होगी जब एक भी गरीब की आंखों में आँसू नहीं दिखाई देगा।
उन्होंने ऐसा ही दिन लाने का व्रत लिया था और इसी लक्ष्य के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया।
Independence Day Essay in Hindi- 15 August
राष्ट्रपिता गाँधी जी ने एक बात और भी कही थी। उन्होंने कहा था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इंडियन नेशनल कांग्रेस का लक्ष्य पूरा हो गया। इस लिए एक राजनीतिक दल के रुप में उसे अपने को समाप्त कर देना चाहिए।
उसकी देश सेवा के कार्य का एक चरण पूरा हो गया, दूसरा चरण समाज-सेवा का है। जो इस कार्य में आगे आना चाहें, वे नया संगठन बना सकते हैं।
राष्ट्रीय कांग्रेस ने उनकी बात नहीं मानी। उसे राज करने का लोभ जो था।
देश की आजादी के बाद राष्ट्रीय कांग्रेस के चरित्र में जो गिरावट आई है और उसके कारण देश की जो दशा हो रही है, उस पर टीका-टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं है।
कोई भी विचारशील व्यक्ति देख सकता है कि देश इस समय किस तरह भ्रष्टाचार में लिप्त है और किस तरह राजनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र होते हुए भी हमारी आर्थिक स्वतंत्रता पर पाश्चात्य विकसित देश दृष्टि गड़ाए हैं।
इतना ही नहीं हमारी सांस्कृतिक अस्मिता पर भी घोर आपदा के बादल मंडरा रहे हैं।
आज भी लोकतान्त्रिक संस्थाओं व सरकार को धार्मिक संगठन अपने मनमुताबिक चलाते है जिससे आपसी विश्वास में कमी आई है यह भारतीय एकता को तार तार कर सकती है जो संविधान के मूलभावना के विपरीत होगा .सबल व निर्बलों में अंतर की भरपाई को सरकारों को पाटना जरुरी है
आत्ममंथन
तात्पर्य यह है कि 15 अगस्त जहां हमारे लिए प्रसन्नता, आनंद और उत्सव का अवसर है, वहीं वह हमें यह याद दिलाने आता है कि हम अपने उन तपः पूत, आत्मबलिदानी और त्यागी राष्ट्रभक्तों के स्मरण से अपने मन और आत्मा को स्वच्छ-निर्मल करें और प्रेरणा लें जिनके संघर्षपूर्ण उत्सर्ग से १५ अगस्त का शुभ दिन हमारे राष्ट्रीय इतिहास में घटित हुआ।
15 अगस्त केवल झंडा फहराने का दिन नहीं है। यह दिन आत्ममंथन का है। यह दिन पूण्य स्मरण का है, पूण्य स्मरण देश की बलिवेदी पर प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों और वीरांगनाओं का। उनका स्मरण करने से हो सकता है कि हम अपनी उस तुच्छता और स्वार्थपरता की कीचड से अपने को उबार सकें जिसमें आज का हमारा राष्ट्रीय जीवन उत्तरोत्तर धंसता जा रहा है। 15 अगस्त को स्वराज्य-सिद्धि का दिन मानना भूल होगी। अभी और बहुत कुछ करना शेष है।
उपसंहार
अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता को हमें अर्थवत्ता से विभूषित करना है। राष्ट्र-निर्माण के काम को नए सिरे से शुरू करना है। अभी तक जो कुछ हो सका है, उसे झुठलाना नहीं हैं, उसे इनकारना नहीं है। किन्तु मानना पड़ेगा कि राष्ट्र-निर्माण के कार्य में हमारी प्राथमिकताएं उल्टी-पुल्टी रही हैं। जो बाद में करना था, हम अपनी पूरी शक्ति के साथउसी में लग गए हैं।
जो पहले करना था. वह अब तक पीछे पड़ा है। राष्ट्रनिर्माण का कार्य ऐसे नहीं होता। हम बात करते हैं दरिद्र नारायण की सेवा की, हम काम करते हैं धन्नासेठों के स्वार्थ साधन की। विश्वास न हो तो आज के हमारे जन-प्रतिनिधियों की जीवन-शैली देख लीजिए।
आज जैसी अराजकता देश में पहले कभी नहीं थी। जन-सामान्य में जैसा डर आज व्याप्त है, वैसा विदेशी शासन में भी नहीं था। कारण, तब कानून का राज था, वे कानून जैसे भी अन्यायपूर्ण क्यों न रहे हो।
आज जो भी कानून बन रहे हैं, प्रजा के हित के लिए बन रहे हैं, उसे न्याय दिलाने के लिए बन रहे हैं, किन्तु उनका उल्लंघन सबसे पहले वे करते हैं जो उन्हें बनाते हैं। कितनी भयावह स्थिति है!
15 अगस्त का दिन अर्थपूर्ण तभी होगा जब हम अपने राष्ट्रीय जीवन की आज की विकृतियों पर दृष्टि ले जायँ और उन्हें जड़-मूल से निरस्त करने को दृढ़ संकल्प हों।
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