विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है -11 जुलाई

आज हम  जानेगे विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है इसके मनाने की वजह क्या है ये निबंध के रूप एक लेख है जिसका उद्देश्य  जागरूकता  को बढ़ाना है

World Population Day Essay in Hindi में आपको सादर समर्पित है

विश्व जनसंख्या दिवस

 प्रस्तावना- जनसंख्या   का महत्व पुराकाल से मानवीय इतिहास में सदा रहा है। जिस जाति, वर्ग अथवा सम्प्रदाय की संख्या अधिक थी, उनका वर्चस्व रहा, इसके विपरीत जिन लोगों की संख्या घट गई वे निर्बल हो गए उनका अस्तित्व ही मिट गया। इसीलिए ऐसे साधन और विधियाँ अपनाई गई जिनसे संख्या में वृद्धि हो। धर्म परिवर्तन भी उसी का एक अंग रहा है। आधुनिक युग में जब जनसंख्या पृथ्वी की क्षमता की सीमा को पार करती नजर आती है तो परिस्थिति विपरीत हो गई। मानव समाज के सामने जनसंख्या वृद्धि आज एक भीषण समस्या हो गई है। यद्यपि कुछ देशों के सामने नियंत्रित जनसंख्या के कारण संख्या घटने की स्थिति भी पैदा होती जा रही है, फिर भी विश्व स्तर पर इस समस्या का स्वरूप दृष्टिगत करने एवं उसके भविष्य की कल्पना करने से इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण आवश्यक है।

इसी उद्देश्य को लेकर 11 जुलाई 1987 को जब विश्व की जनसंख्या पाँच अरब हो गई तो जनसंख्या के इस विस्फोट की स्थिति से बचने के लिए इस खतरे से विश्व को आगाह करने एवं बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु 11 जुलाई 1987 को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई। तब से ग्यारह जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।

माल्थस ने कहा भी है “प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए लगी है। जो बिना आमंत्रण आएगा, उसे अवश्य ही भूखों मरना पड़ेगा।”

पानी की समस्या के लिए विश्व बैंक ने भविष्यवाणी की है कि 21वीं शताब्दी में खनिज तेल के लिए नहीं अपितु पानी के लिए युद्ध होगा।

विश्व की जनसँख्या  कितनी है 

विश्व की आबादी अब 6 अरब को पार कर गई है। आबादी में अधिकांशतः वृद्धि दुनिया के सबसे गरीब देशों में हो रही है, जो कि बढ़ती आबादी के संकट का सामना करने के लिए सक्षम नहीं हैं। इन देशों में बीस प्रतिशत पाँचवीं कक्षा तक स्कूलविश्व विश्व जनसंख्या दिवस जाने योग्य बच्चे स्कूलों में जाते ही नहीं हैं। निरन्तर बढ़ती हुई आबादी से पृथ्वी की क्षमता पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है, जिससे खाद्यान्न और पानी की मांग बढ़ रही है। धरती के बढ़ते तापमान, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी, बाढ़ और तूफानों में बढ़ोतरी होने से करोड़ों लोगों का जीवन दुष्प्रभावित हो रहा है। बढ़ती जनसंख्या के लिए शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, भोजन एवं पानी की व्यवस्था करना हमारे लिए चिन्ता का विषय है। इस तरह एक तरफ जनसंख्या बढ़ती जा रही है, दूसरी तरफ संसाधन घटते जा रहे हैं।

प्रजातंत्र का मूल आधार बहुमत है। बहुमत कभी-कभी शासन नीति या अर्थ नियंत्रण नीति के स्थान पर जाति, सम्प्रदाय आदि क्षुद्र एकता के आधार पर निर्धारित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप वे उस संगठन को जनसंख्या नियंत्रण को त्यागकर भी कायम रखना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में विश्व की इस समस्या का समाधान और भी जटिल हो जाता है। धार्मिक एवं साम्प्रदायिक संगठन और वोट बैंकों की नीति भी जनसंख्या नियंत्रण की समस्या के समाधान में बाधक हैं।

ज्यादा जनसंख्या वाले देश 

जनसंख्या में भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। 1901 में भारत की जनसंख्या 23.8 करोड़ थी जो बढ़कर 2001 में 107.7 करोड़ हो गई है। देश में प्रतिवर्ष 1.7 करोड़ के लगभग लोग जनसंख्या में जुड़ जाते हैं जो आस्ट्रेलिया की वर्तमान जनसंख्या के बराबर है। देश में प्रतिदिन 10,००० से अधिक शिशु जन्म लेते हैं। जन्म दर की अपेक्षा मृत्यु दर में तीव्र कमी, औसत आयु में वृद्धि, अकाल मृत्यु एवं महामारियों पर नियंत्रण, साक्षरता में कमी, उष्ण जलवायु, लड़का होने की चाह और बाल विवाह इत्यादि जनसंख्या वृद्धि के मुख्य कारण रहे हैं। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति हजार पुरूषों के पीछे स्त्रियों की संख्या 933 है। कुल जनसंख्या का 33 प्रतिशत भाग कार्यशील हैं। 40 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। पाँच करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं।

2011 में लगभग 125 करोड़ जनसंख्या थी जो आज  लगभग 135 करोड़ के आसपास भारत की जनसँख्या हो गयी है

जनसँख्या के परिणाम 

भारत में इस समय चार करोड़ लोग फ्लोराइड, नाइट्रेट और खारे पानी की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण प्राकृतिक साधनों का अत्यधिक दोहन होने से प्राकृतिक सन्तुलन दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा है। अकाल, भूकम्प, बाढ़ जैसी समस्याएँ अक्सर मुँह बांये खड़ी रहती हैं। विकास की प्रक्रिया इससे प्रभावित होती है। जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास पर ऋणात्मक प्रभाव डालती है, बचत घटाती है और विनियोग कम करती है।

जागरूकता अभियान

विद्यालय में उत्सव एवं जयन्तियाँ रोजगार की तलाश में लोगों का पलायन गाँवों से शहरों की ओर हो रहा है जिससे शहरीकरण की समस्या उत्पन्न हो रही है। आवास की समस्या के कारण कच्ची बस्तियों की समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। देश में अभी तक 34.6 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। सब समस्याओं के मूल में जनसंख्या वृद्धि की समस्या स्पष्टतः देखी जा सकती है। अतः इसकी ओर प्रत्येक नागरिक का ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है।

प्रत्येक देश की अपनी स्थिति समस्या और उसके हल करने का तरीका होता है। भारतभूमि की अपनी स्थिति है, इसका अपना भूगोल है, संस्कृति और मान्यताएं हैं। जनसंख्या की समस्या का स्वरूप भी भारत का अपना विशिष्ट है। उस स्वरूप की विशिष्टता की गहराई में पहुँच कर ही कारण जाने जा सकते हैं और निदान भी सोचा जा सकता है। इसकी तह में कुछ धार्मिक मान्यताओं के कारण है, तो कुछ राजनीतिक कारण हैं।

कुछ आर्थिक कारण हैं तो कुछ सामाजिक हैं। इन सब के हल भी बहुविध हैं। कभी-कभी किसी समाज, वर्ग या जाति का हित करते हुए भी राष्ट्रीय अहित होता है और समस्या के निदान के स्थान पर उसे बल मिल जाता है। वोटों की राजनीति और विभाजित कर शासन करने की अंग्रेजों से विरासत में मिली नीति द्वारा अनेक समस्याओं की वृद्धि होती है। अतः इस गम्भीर समस्या पर गहन विचार और सत्य निष्ठा पूर्वक कार्य करने की आवश्यकता है।

  • विद्यालयों और महाविद्यालयों में इस विषय पर गोष्ठियाँ, सम्मेलन एवं विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
  • पिछड़े इलाकों, कच्ची बस्तियों में छात्र-छात्राओं द्वारा नुक्कड़ नाटकों का आयोजन कर उनकी पारंपरिक धारणाओं को बदलने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • बचपन से ही बालकों में इस विषय में जागरूकता होगी तो उनका भविष्य भी उज्ज्वल होगा और देश भी विकास कर सकेगा। विश्व भी इस समस्या से आक्रान्त नहीं रहेगा।

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